चातुर्मास में हो ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप की आराधना : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कोबा, गांधीनगर। 9 जुलाई, 2025

चातुर्मास में हो ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप की आराधना : आचार्यश्री महाश्रमण

आषाढ़ शुक्ला चतुर्दशी - प्रेक्षा विश्व भारती, कोबा के वीर भिक्षु समवसरण में महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी द्वारा वर्षावास स्थापना अनुष्ठान का क्रम सम्पादित किया गया। मंगल देशना में आचार्यश्री ने फरमाया कि जीवन में दो मार्ग हैं — एक मोक्ष का मार्ग और दूसरा संसार का मार्ग। शास्त्रों में कहा गया है कि मोक्ष मार्ग चतुरंग है — जिसमें चार अवयव होते हैं: ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप। जब ये चारों मिलते हैं, तो वह मार्ग मोक्ष की ओर जाता है। मोह संसार का मार्ग है, और अमोह की साधना मोक्ष मार्ग बन जाती है। आचार्यश्री ने बताया कि चातुर्मास का विशेष महत्व है। सामान्यतः चातुर्मास आषाढ़ शुक्ला पूर्णिमा या चतुर्दशी को प्रारंभ होता है। इस बार यह चतुर्दशी को प्रारंभ हुआ है। चातुर्मास के चार महीने — श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक — विशेष धार्मिक साधना, आराधना, उपासना और सेवा के लिए अनुकूल होते हैं। इस अवधि में साधु-साध्वियों का विहार स्थिर होता है, जिससे समाजजन को दर्शन, उपासना और गोचरी की सेवा का अवसर मिलता है।
चातुर्मास के दौरान धार्मिक प्रवास, त्याग, स्वाध्याय और आत्मानुशासन का वातावरण बनता है। जो व्यक्ति घर पर रहते हैं, उनके जीवन में सांसारिक प्राथमिकताएं रहती हैं, लेकिन जो इस अवधि में साधु-साध्वियों के सान्निध्य में रहते हैं, उनके जीवन में धर्म की प्रधानता हो सकती है। घर में स्वार्थ प्रधान होता है, यहां परमार्थ की भावना बलवती होती है। चातुर्मास में विशेष रूप से ज्ञानाराधना का क्रम चले, यह अपेक्षित है। ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप मोक्ष के चार प्रमुख अंग हैं। अतः ज्ञानार्जन के लिए प्रयास करें। जैसे — पच्चीस बोल कंठस्थ करना, जीव-अजीव विषयक ग्रंथों का अध्ययन करना, तत्व ज्ञान की कक्षाएं चलाना आदि। इस वर्ष आचार्य भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष होने के कारण स्वामीजी के साहित्य का स्वाध्याय, पाठ, जप आदि विशेष रूप से किए जा सकते हैं। देशभर में ज्ञानशालाएं सक्रिय हैं, उनके माध्यम से संस्कारों का सृजन किया जा सकता है।
पासक-उपासिकाओं की संख्या एवं गुणवत्ता बढ़े, इसके लिए प्रशिक्षण और तत्वज्ञान के कार्यक्रम निरंतर चलते रहें। भगवान महावीर कालीन श्रावक मद्दुक जैसे तत्वदर्शी व्यक्तित्व समाज में विकसित हों। तत्वज्ञान के कोर्स, महाप्रज्ञ श्रुताराधना, जैन विद्या परीक्षा, कार्यशालाएं, आगम मंथन प्रतियोगिताएं — ये सभी प्रयास ज्ञान संवर्धन के उत्कृष्ट साधन हैं। दर्शनाराधना के अंतर्गत सम्यक्त्व की पुष्टि पर बल देते हुए आचार्यश्री ने कहा कि सच्चाई का समर्थन करें, चाहे वह दिख रही हो या न दिख रही हो। सम्यग्दर्शन की भावना कषाय मंदता से आती है — क्रोध, अहंकार, लोभ, माया जैसे दोषों से दूर रहकर। समीक्षक बुद्धि और तार्किक दृष्टिकोण से ज्ञान निर्मल हो सकता है। चारित्र आराधना के लिए श्रावकों को प्रतिदिन सीमाकरण, प्रत्याख्यान, सामायिक, व्रत पालन, त्याग की भावना को आत्मसात करना चाहिए। साधुओं
के लिए दीक्षा स्वयं चारित्र साधना का बड़ा रूप है। तप आराधना में बेला, तेला, अढ़ाई, पखवाड़ा, मासखमण आदि तपस्याओं को अपनाने की प्रेरणा दी गई। गुरुदेव ने चातुर्मास की समाप्ति के पश्चात आगामी विहार यात्रा की संभावित घोषणा करते हुए बताया कि 6 नवम्बर 2025 को प्रेक्षा विश्व भारती से विहार और 6 फरवरी 2026 को जैन विश्व भारती, लाडनूं में प्रवेश हो सकेगा। मुनि अक्षयप्रकाशजी ने गुरुदेव के स्वागत में अपनी श्रद्धापूर्ण अभिव्यक्ति प्रस्तुत की। तेरापंथ युवक परिषद्, अहमदाबाद द्वारा स्वागत गीत की प्रस्तुति दी गई। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी द्वारा किया गया।