सहनशील व्यक्ति कर सकता है श्रेय की प्राप्ति : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कोबा, गांधीनगर। 13 जुलाई, 2025

सहनशील व्यक्ति कर सकता है श्रेय की प्राप्ति : आचार्यश्री महाश्रमण

प्रेक्षा विश्व भारती कोबा में अमृत पुरुष आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अमृत देशना प्रदान करते हुए कहा – 'धर्म एक ऐसा तत्व है जो चित्त को समाधि देने वाला भी है और आत्मा की शुद्धि देने वाला भी। धर्म वह पाथेय है जो आगे भी अपना प्रभाव रख सकता है।' आचार्य प्रवर ने एक दृष्टांत के माध्यम से समझाया कि यदि किसी व्यक्ति को एक घना जंगल पार करके अपने गंतव्य की ओर जाना है, और उसने साथ में भोजन-पानी नहीं लिया है, तो भूख-प्यास के कारण उसे कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है। वहीं यदि दूसरा व्यक्ति पूरी तैयारी के साथ निकला है, तो वह आराम से मंज़िल तक पहुंच सकता है। उसी प्रकार, जो व्यक्ति जीवन में धर्म, संयम, तप और अहिंसा की आराधना करता है, वह अपने लिए पाथेय तैयार करता है, जिससे उसे मृत्यु के पश्चात भी सुख मिल सकता है।
जो व्यक्ति धर्म का पाथेय नहीं लेता, अधिक पाप करता है, सम्यक् दर्शन और सदाचार से वंचित है, वह जीवन में कठिनाइयों का सामना करता है। धर्म का स्वरूप अहिंसा, संयम और तप है। शास्त्र में कहा गया है – जो व्यक्ति सहनशील होता है, वह धर्म को स्वीकार कर श्रेय की प्राप्ति कर सकता है। धर्म के प्रति निष्ठा आवश्यक है। एक उदाहरण देते हुए आचार्यश्री ने कहा कि राजा प्रदेशी, जो नास्तिक था, ने जब कुमार श्रमण केशी से संवाद किया, तो उसकी विचारधारा में परिवर्तन आया। इसलिए संवाद से दृष्टिकोण में परिवर्तन संभव है। उन्होंने कहा कि 'जैसी करणी, वैसी भरणी' – अर्थात हमें पुण्य-पाप, पुनर्जन्म जैसे सिद्धांतों को मानकर चलना चाहिए।
आचारांग सूत्र में बताया गया है कि जो व्यक्ति सत्य, सम्यक् दृष्टि और सम्यक् दर्शन से युक्त होता है, वह धर्म को अपनाकर श्रेय और अंततः मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है। आदमी को धर्म के प्रति निष्ठा रखने का प्रयास करना चाहिए। सहिष्णु व्यक्ति कठिनाइयों में भी धर्म को नहीं छोड़ता। यदि दृष्टिकोण सम्यक् हो और सत्य का आधार हो, तो वह व्यक्ति चारित्र की आराधना द्वारा श्रेय की उपलब्धि कर सकता है। सहिष्णुता पारिवारिक जीवन के लिए भी अच्छी होती है। पारिवारिक जीवन में रहने के लिए सहना भी चाहिए तो कभी मौके पर कहना भी चाहिए। आचार्य प्रवर ने सहिष्णुता के महत्व को रेखांकित करते हुए पिता-पुत्र एवं आचार्य भारमलजी के प्रसंग का वर्णन किया।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि बच्चों को अच्छे संस्कार देने का प्रयास होना चाहिए। जो बच्चे ज्ञानशाला से जुड़ जाते हैं, उन्हें धार्मिक ज्ञान के साथ अच्छे संस्कार मिल सकते हैं। ज्ञानशाला में प्रशिक्षण देने वाले एक प्रकार की सेवा करते हैं। ज्ञानशाला के प्रशिक्षण देने वालों को तैयार करना भी एक सेवा का अच्छा कार्य है। छोटे बच्चों को अच्छे संस्कार दिए जाते हैं तो उनका भविष्य अच्छा हो सकता है। आदमी के व्यवहार व कर्म में भी धर्म रहे, यह काम्य है। आचार्यश्री ने इस चतुर्मास का अच्छा धार्मिक-आध्यात्मिक लाभ उठाने की भी प्रेरणा दी।
आचार्यप्रवर के मंगल पाथेय के उपरान्त साध्वीप्रमुखाजी ने उपस्थित जनता को उद्बोधित किया। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद द्वारा ‘मंत्र दीक्षा’ का उपक्रम भी समायोजित किया गया। जिसमें बड़ी संख्या में ज्ञानशाला के ज्ञानार्थी आचार्यश्री के सम्मुख उपस्थित थे। आचार्यश्री ने उपस्थित तेरापंथ की नवीन पौध को नवकार मंत्र का जप कराते हुए संकल्प स्वीकार कराए। मंत्र दीक्षा के राष्ट्रीय प्रभारी अजीत छाजेड़ ने जानकारी प्रस्तुत की।
आचार्यश्री भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष के संदर्भ में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद द्वारा युवादृष्टि का विशेषांक ‘आदिपुरुष’ आचार्यश्री के सम्मुख लोकार्पित किया गया। युवादृष्टि के कार्यकारी संपादक विपीन पितलिया ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। इस दौरान अहमदाबाद ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। अशोक पगारिया व प्रदीप बागरेचा ने अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम अहमदाबाद ने भी अपनी प्रस्तुति दी।