
गुरुवाणी/ केन्द्र
तेरापंथ को समझने के लिए आवश्यक है दर्शन, इतिहास और मर्यादा व्यवस्था का गहन अध्ययन : आचार्यश्री महाश्रमण
गुरु पूर्णिमा के इस पावन अवसर पर, जन-जन की आस्था के केंद्र तेरापंथ की यशस्वी आचार्य परंपरा के ग्यारहवें अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी मंगल वाणी में फरमाया—धर्म को आगम वाणी में श्रेष्ठ मंगल कहा गया है। अहिंसा धर्म है, संयम धर्म है, तप धर्म है। आज धर्म से जुड़ी एक विशेष परंपरा—तेरापंथ की स्थापना का दिन है। आषाढ़ी पूर्णिमा को तेरापंथ की स्थापना हुई थी। न कोई मंच, न कोई आयोजक, न कोई विशेष समारोह—अत्यंत सादगी के साथ यह स्थापना हुई। जब स्वामी भिक्षु ने 'करेमि भंते! सामाइयं, सव्वं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि' का पाठ उच्चारित किया, तभी तेरापंथ की स्थापना हो गई। यही त्याग और दीक्षा का पाठ तेरापंथ की नींव बन गया। तेरापंथ के संस्थापक पूज्य आचार्य भिक्षु थे। स्थापना के मूल में त्याग और संकल्प था। तेरापंथ को समझने के लिए उसका दर्शन, इतिहास और मर्यादा व्यवस्था—इन तीनों पक्षों का गहन अध्ययन आवश्यक है। तेरापंथ के इतिहास को जानने के लिए मुनि बुद्धमलजी स्वामी द्वारा लिखित 'तेरापंथ का इतिहास' एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है।
'शासन समुद्र' श्रृंखला, जिसे मुनिश्री नवरत्नमलजी स्वामी और वर्तमान में मुनिश्री जंबूकुमारजी ने लिखा, तेरापंथ के इतिहास का विस्तृत ज्ञान देती है। गुरुदेव तुलसी, जयाचार्य, माणकगणी आदि द्वारा रचित ग्रंथों से भी बहुमूल्य जानकारी प्राप्त की जा सकती है। तेरापंथ के दर्शन को जानने के लिए आचार्य महाप्रज्ञजी की पुस्तक 'भिक्षु विचार दर्शन' उपयोगी है। तेरापंथ दर्शन को स्वामीजी के मूल ग्रंथों से जानना और प्रामाणिक है, जैसे अनुकंपा की चौपाई, नवपदार्थ, व्रताव्रत आदि। जयाचार्यजी का 'भ्रम विध्वंसनम्' भी एक विशिष्ट ग्रंथ है। गुरुदेव ने मिथ्यात्वी की करणी के संदर्भ में तेरापंथ और अन्य पंथों की मान्यताओं की तुलना प्रस्तुत की और स्पष्ट किया कि कई बिंदुओं पर दोनों में समानता है—जैसे मिथ्यात्वी को भी पुण्य बंध, अकाम निर्जरा संभव है, परंतु संवर और मोक्ष की दिशा में करणी का सीमित प्रभाव होता है।
आचार्यश्री ने यह भी कहा कि तेरापंथ की स्थापना के बाद उसका संगठनात्मक पक्ष अनुकरणीय है—एक आचार्य, और संपूर्ण साधु-साध्वी समाज का एक आचार्य की आज्ञा में निष्ठा से रहना—यह व्यवस्था 250 वर्षों से सतत चल रही है। हमारे साधु-साध्वियां, समणियां व श्रावक-श्राविकाएं तो तेरापंथ के अंग हैं, हमारी ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप की आराधना अच्छी चलती रहे। हमारा संगठन, अनुशासन व व्यवस्था पक्ष भी सुदृढ़ रहे। दीक्षा के संदर्भ में आचार्य प्रवर ने कहा कि दीक्षा जांच-परख कर दी जाए। मात्र संख्या बढ़ाने के लिए नहीं, बल्कि गुणवत्ता पर ध्यान देना चाहिए। यदि कोई साधु दीक्षा के पश्चात किसी दुर्बलता का परिचय दे, तो भी उसे निभाने, सुधारने का प्रयास होना चाहिए। धर्मसंघ में जहां तक संभव हो, समायोजन का प्रयास किया जाए। सेवा के विषय में पूज्यवर ने कहा कि सेवा धर्मसंघ का एक प्रमुख स्तंभ है। जैसे जयाचार्य के समय में बीदासर में साध्वियों ने संतों की सेवा की, वैसे ही नंदनवन (मुंबई) में संतों ने साध्वियों की सेवा की। इस अवसर पर श्रावक संदेशिका के नवीन संस्करण के सन्दर्भ में पूज्यप्रवर ने अवगति दी।
साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभाजी ने भी गुरु पूर्णिमा और स्थापना दिवस के महत्व पर प्रकाश डाला। मुख्यमुनि श्री महावीरकुमारजी ने आचार्य भिक्षु के अवदानों से जनता को अवगत करवाया। साध्वीवर्या श्री सम्बुद्धयशाजी ने आचार्यश्री भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष और स्थापना दिवस के संदर्भ में उद्बोधन दिया। साध्वीवृन्द व समणीवृंद ने संयुक्त रूप से गीत का संगान किया। मुनिवृंद ने भी गीत को प्रस्तुति दी। इस दौरान शांतिदूत आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन पहुंचे। उन्होंने आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त करने के उपरान्त अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करते हुए कहा कि आज मेरा सौभाग्य है कि गुरु पूर्णिमा के अवसर पर तेरापंथ स्थापना दिवस के अवसर मुझे आपके दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। मैं आचार्यश्री महाश्रमणजी को अपना गुरु स्वीकार करता हूं और आज आपके दर्शन के लिए ही यहां पहुंचा हूं। आज आपकी वाणी की आवश्यकता पूरी दुनिया को है।
आचार्यश्री को एक सीमा में बांध कर नहीं रखा जा सकता। आपकी अहिंसा की वाणी सभी के लिए है। मेरा सौभाग्य कि आपके प्रत्येक चतुर्मास में पहुंचने का अवसर मिलता रहता है। मैं कामना करता हूं हम सभी के सिर पर आपका आशीर्वाद सदैव बना रहे। आचार्यश्री ने उन्हें मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। तदुपरान्त तेरापंथ महिला मण्डल-अहमदाबाद की पूर्व अध्यक्ष हेमलता परमार, सुशीला खतंग ने अपनी अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।