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आचार्य भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष, वर्षावास स्थापना एवं तेरापंथ स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में विविध आयोजन
साध्वी रचनाश्री जी के सान्निध्य में आचार्य भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष तथा 266वें तेरापंथ स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में विविध आध्यात्मिक कार्यक्रमों का भव्य आयोजन हुआ। कार्यक्रम की शुरुआत नमस्कार महामंत्र के उच्चारण और 'भिक्षु म्हारे प्रगट्या जी भरत खेतर में' गीत तथा 'ॐ भिक्षु - जय भिक्षु' मंत्र के जाप के साथ हुई। महिला मंडल और युवती मंडल की बहनों द्वारा भावपूर्ण गीत प्रस्तुत किए गए। साध्वीश्री ने अपने प्रवचन में कहा कि यह पावन दिवस आचार्य भिक्षु के 300वें जन्म दिवस और उनकी सत्य उपलब्धि से जुड़ा हुआ है। उन्होंने बताया कि आचार्य भिक्षु एक अलौकिक दिव्य पुरुष थे जिनकी वीतराग वाणी और निर्मल बुद्धि ने धर्म के लौकिक और लोकोत्तर स्वरूप को स्पष्ट किया। वे कहते थे कि शुद्ध साध्य के लिए शुद्ध साधन आवश्यक है, और धर्म त्याग में है, भोग में नहीं। आचार्य भिक्षु ने आगमों का गहन अध्ययन कर मिथ्यात्व की भ्रांति को सम्यक्त्व से दूर किया और धर्म क्रांति का सूत्रपात किया। साध्वी श्री जी ने कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ मात्र एक संगठन नहीं, बल्कि एक तेजस्वी, अनुशासित और प्राणवान संस्था है, जिसकी नींव गुरु पूर्णिमा जैसे शुभ मुहूर्त में रखी गई। अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा कि आचार्य भिक्षु का जीवन चार विशेष मूल्यों पर आधारित था – जागरूकता, विश्वास, सही चयन और अनासक्ति। उन्होंने बताया कि आचार्य भिक्षु को भावी आचार्य बनने का प्रस्ताव भी मिला, पर वे साधना से विचलित नहीं हुए। उनकी चेतना पद, प्रतिष्ठा से परे थी। आज तेरापंथ धर्मसंघ की पहचान सात समंदर पार तक फैली है और इसकी मजबूती का आधार है – अनुशासन बल, मनोबल, अध्यात्म बल और सिद्धांत बल। इस अवसर पर साध्वी प्राज्ञप्रभा जी, साध्वी नमनप्रभा जी और साध्वी गीतार्थप्रभा जी ने भावपूर्ण गीत, कविता एवं संचालन द्वारा वातावरण को भक्ति से परिपूर्ण किया। 'भिक्षु चेतना वर्ष' में प्रति शुक्ला त्रयोदशी को 13 दस प्रत्याख्यान की लड़ी, लगभग 151 भाई बहनों द्वारा 8 जुलाई से 5 अक्टूबर तक प्रतिदिन 13 माला प्रति व्यक्ति सवा लाख का जप, 13 उपवास की बारियां, 'भिक्षु विचार दर्शन' प्रश्न मंच प्रतियोगिता सहित अनेक आध्यात्मिक उपक्रमों की रूपरेखा प्रस्तुत की गई। इस अवसर पर तेरापंथ युवक परिषद के मंत्री निशांत कोठारी, फतेहचंद बोहरा सहित कई गणमान्यजनों ने अपने विचार रखे। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों द्वारा साध्वीश्री द्वारा रचित नाटक और चलचित्र की भावपूर्ण प्रस्तुति दी गई, जिसमें मुनि भीखण की दीक्षा, बोधि प्राप्ति और तेरापंथ की स्थापना का जीवंत चित्रण किया गया। समारोह में श्रावक-श्राविकाओं की उल्लेखनीय उपस्थिति रही।