आचार्य भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष, वर्षावास स्थापना एवं तेरापंथ स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में विविध आयोजन

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आचार्य भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष, वर्षावास स्थापना एवं तेरापंथ स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में विविध आयोजन

आचार्य श्री महाश्रमणजी की सुशिष्या साध्वी पावनप्रभा जी के सान्निध्य में केजीएफ स्थित तेरापंथ सभा भवन में भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष, वर्षावास स्थापना दिवस एवं तेरापंथ स्थापना दिवस के विभिन्न कार्यक्रम संयोजित किए गए। भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में 24 घंटे का ॐ भिक्षु जप अनुष्ठान आयोजित हुआ, जिसकी शुरुआत नमस्कार महामंत्र और ॐ भिक्षु - जय भिक्षु मंत्र जाप से हुई। महिला मंडल ने भिक्षु अष्टकम की प्रस्तुति दी और आचार्य भिक्षु के जीवन, उनके सिद्ध व्यक्तित्व और साधना की गाथा को भावपूर्ण रूप से प्रस्तुत किया। साध्वी पावनप्रभाजी ने बताया कि आचार्य भिक्षु का जन्म आषाढ़ी तेरस को हुआ था, जो सर्वसिद्धा त्रयोदशी कहलाती है। उन्होंने बाल्यकाल से ही आत्मशुद्धि का मार्ग अपनाया और भव्य धर्म क्रांति की। साध्वी उन्नतयशा जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि व्यक्ति जन्म से नहीं, पुरुषार्थ से महापुरुष बनता है। इस अवसर पर श्रावक-श्राविकाओं ने जोड़े सहित चौबीस घंटे के अखंड जप में भाग लेकर भिक्षु भावना को जीवंत किया और रात्रि में 'धम्म जागरण – एक शाम भिक्षु के नाम' कार्यक्रम संपन्न हुआ। इसके पश्चात वर्षावास स्थापना दिवस के अनुष्ठान में मंत्रोच्चार के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई। साध्वीश्री ने मंत्रों की शक्ति और उसके प्रभाव की चर्चा करते हुए सुंदर लय में जाप करवाया, जिससे आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार हुआ। तत्पश्चात अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल के निर्देशानुसार शपथ ग्रहण समारोह भी संपन्न हुआ, जिसमें नव मनोनीत अध्यक्ष सरिता बांठिया सहित अन्य पदाधिकारियों को शपथ दिलाई गई। साध्वीश्री ने प्रेरणा देते हुए कहा कि जब हम मिलकर कार्य करते हैं तो सफलता सुनिश्चित होती है।
गुरु पूर्णिमा एवं तेरापंथ स्थापना दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में साध्वी पावनप्रभा जी ने अपने प्रवचन में बताया कि आचार्य भिक्षु ने गुरु पूर्णिमा जैसे पूर्ण तिथि के दिन तेरापंथ की स्थापना कर इस दिवस को ऐतिहासिक बना दिया। उन्होंने बताया कि तेरापंथ धर्मसंघ मात्र संख्या नहीं, गुणवत्ता पर आधारित एक जीवंत संघ है, जिसकी परंपरा में ज्ञानी, ध्यानी, तपस्वी, सेवाभावी व्यक्तित्वों की गौरवशाली परंपरा रही है। साध्वी आत्मयशा जी ने गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि गुरु अंधकार में प्रकाश का स्रोत हैं और तेरापंथ को आचार्य भिक्षु जैसा योग प्राप्त हुआ। साध्वी रम्यप्रभा जी ने तेरापंथ की महिमा को कविता के माध्यम से प्रस्तुत किया। तीनों कार्यक्रमों में श्रावक-श्राविकाओं की उल्लेखनीय उपस्थिति रही, जिन्होंने भक्ति, समर्पण और अनुशासन से वातावरण को भिक्षुमय बना दिया।