आज्ञा अनुसार चलने से संभव है कल्याण : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कोबा, गांधीनगर। 21 जुलाई , 2025

आज्ञा अनुसार चलने से संभव है कल्याण : आचार्यश्री महाश्रमण

शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के माध्यम से अमृत देशना प्रदान करते हुए कहा कि श्रद्धावान व्यक्ति आज्ञा के अनुसार आचरण करता है, अनुसरण करता है। साधना के क्षेत्र में श्रद्धा का भी बहुत महत्त्व है। अगर श्रद्धा न हो, मोक्ष के प्रति रुचि न हो, कोई आध्यात्मिक आकर्षण न हो, तो वह आदमी कैसे अध्यात्म के क्षेत्र में आरोहण कर सकेगा? इसलिए साधक की पहली कसौटी है कि श्रावक में सम्यक् श्रद्धा हो। सम्यक् श्रद्धा और सम्यक् रुचि होती है, तो धर्म व अध्यात्म के क्षेत्र में आगे बढ़ा जा सकता है। आगम अध्ययन के प्रति भी श्रद्धा और रुचि होती है, तो कुछ सहयोग मिल जाने से आदमी आगम के ज्ञान में आगे बढ़ सकता है। जिस कार्य के प्रति श्रद्धा व निष्ठा हो, वह कार्य सफलता को प्राप्त हो सकता है। इच्छा और श्रद्धा से किया जाने वाला उपवास अथवा अन्य किसी प्रकार की तपस्या का अच्छा प्रभाव होता है।
आगम में कहा गया है कि आदमी श्रद्धा व आज्ञा से चले, तो वह मेधावी बन सकता है। आगम वाणी को आधार मानकर धर्म के रास्ते पर चलें, तो मानव जीवन का कल्याण हो सकता है। यदि आदमी चोरी न करे, झूठ-कपट न हो, हत्या न करे, इन्द्रियों का असंयम न हो—तो आदमी का भला क्या नुकसान होगा? अच्छा, संयमयुक्त जीवन जीना भी तो अच्छी बात है और यदि पुनर्जन्म है, तो फिर आदमी का जीवन भी अच्छा हो सकता है। इसलिए आयारो में कहाa गया है कि श्रद्धा हो और आज्ञा के अनुसार चलने वाला हो, तो कल्याण संभव होता है। कई बातें हेतुगम्य होती हैं—उन्हें तर्क से समझा जा सकता है, तो कई बातें अहेतुगम्य होती हैं—उन्हें तर्क से नहीं समझा जा सकता, उन्हें आज्ञा की बातों पर विश्वास कर स्वीकार किया जा सकता है। जहां श्रद्धा होती है, वहां आज्ञा सहर्ष शिरोधार्य हो सकती है। इसलिए आदमी को अपने भीतर आस्था व श्रद्धा के भाव को पुष्ट करने का प्रयास करना चाहिए।