
गुरुवाणी/ केन्द्र
कषाय क्षीण होने पर ही होती है मुक्ति की प्राप्ति : आचार्यश्री महाश्रमण
आयारो आगम पर मंगल देशना फरमाते हुए परम पूज्य गुरुदेव, तेरापंथ के एकाधिशम अधिशास्ता ने फरमाया – 'अध्यात्म की साधना आत्मिक सुख प्राप्ति का मार्ग है, और इस साधना में कषाय-विजय एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण और केन्द्रीय तत्त्व है।' कषाय चार हैं – क्रोध, मान, माया और लोभ। कषायों के संस्कार अनन्त काल से प्राणी के साथ जुड़े हुए हैं। जब कषायों का क्षय हो जाता है, तब मुक्ति निकट हो जाती है। दिगंबर बनने मात्र से, श्वेतांबर बनने मात्र से, तार्किक बनने मात्र से मुक्ति प्राप्त नहीं हो सकती। कषाय क्षीण होने पर ही मुक्ति प्राप्त होती है। यदि कोई जैनेत्तर व्यक्ति हो, गृहस्थ वेश वाला व्यक्ति हो – उसे भी कषाय क्षीण होने पर मुक्ति मिल सकती है। भगवान महावीर ने भी साधना की, और जब तक उनकी कषायों से मुक्ति नहीं हुई, उन्हें केवलज्ञान प्राप्त नहीं हुआ।
व्यवहार में भी हम देखें तो क्रोध अच्छी चीज नहीं है। गुस्सा, प्रीति का नाश करने वाला होता है। परिवार हो, समाज हो, राष्ट्र हो – कहीं भी आवेश नहीं करना चाहिए। गुस्से से बचने का प्रयास करना चाहिए। संतों के लिए कहा गया है कि संत वह होता है जो शांत होता है। अहंकार से भी बचने का प्रयास होना चाहिए – ज्ञान, अर्थ, रूप, बल, सत्ता, तपस्या आदि का अहंकार नहीं करना चाहिए। माया नहीं करें, ऋजुता (सरलता) का भाव रखें। लोभ से भी बचने का प्रयास हो – अपनी इच्छाओं का सीमाकरण करें और संयम रखें। आदमी को अपने चरित्र को अच्छा बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। इसलिए आयारो आगम में कहा गया है कि साधक को क्रोध, मान, माया और लोभ को कम करने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यप्रवर की सन्निधि में गुजरात के गृह राज्य मंत्री हर्ष संघवी उपस्थित हुए। उन्होंने अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति देते हुए कहा कि–'आचार्यश्री महाश्रमणजी के लगातार दो चातुर्मास गुजरात की धरा को प्राप्त हुए हैं, यह पूरे गुजरात की जनता के लिए गौरव की बात है। आपके चातुर्मास से अनेक लोगों को लाभान्वित होने का सुअवसर प्राप्त हो रहा है। मैं सम्पूर्ण गुजरातवासियों की ओर से ऐसा सौभाग्य प्रदान करने के लिए आपका आभार प्रकट करता हूँ।'