एकमात्र धर्म ही है दुःख-मुक्ति का उपाय : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कोबा, गांधीनगर। 19 जुलाई, 2025

एकमात्र धर्म ही है दुःख-मुक्ति का उपाय : आचार्यश्री महाश्रमण

प्रेक्षा विश्व भारती के वीर भिक्षु समवसरण में तेरापंथ सरताज युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के आधार पर जनता को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि इस संसार में दुःख भी है तो सुख भी मिलता है। दुःख बीमारी, बुढ़ापा, आर्थिक समस्या आदि कई रूपों में हो सकता है। सुखों की ओर ध्यान दिया जाए तो उसकी भी सूची बन सकती है कि खाने को अच्छा मिलता है, अच्छे कपड़े मिलते हैं, समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त होती है आदि। इस प्रकार संसार में दुःख और सुख दोनों मौजूद हैं। कोई कह दे कि मैं दुःख को आने नहीं दूंगा, तो ऐसा संभव नहीं है।
बीमारी को दुःख कहा गया है। शास्त्रों में जन्म, मृत्यु, बुढ़ापा, रोग—इन सभी को दुःख कहा गया है। कोई भी इस बात की गारंटी नहीं ले सकता कि जीवन में कभी बीमारी नहीं आएगी और आयुष्य सौ वर्षों का होगा। दुःख जीवन में कभी भी आ सकते हैं। इसलिए आदमी को अपने दुःख का कारण जानना चाहिए, जिससे उसके कारण का निवारण किया जा सके, लेकिन यह कहना कि दुःख कभी आएंगे ही नहीं—यह कोई गारंटी नहीं ले सकता।
आयारो में बताया गया है कि दुनिया के इस दुःख को जानकर उसके कारण को दूर करने का प्रयास करो। बहुत बड़े धनाढ्य या सबसे बड़े सत्ताधीश को भी बीमारियाँ घेर लेती हैं। मृत्यु को भी कोई पहरेदार बिठाकर रोका नहीं जा सकता। एकमात्र धर्म का तत्व ही दुःख-मुक्ति का उपाय है। धर्म के द्वारा ही आत्मा एकांत सुख वाले मोक्ष को प्राप्त कर सकती है। दुनिया में पुरुषार्थ का महत्त्व है, परन्तु पुरुषार्थ से सब कुछ प्राप्त नहीं किया जा सकता। पुरुषार्थ की भी एक सीमा होती है, उसके बाद उसकी क्षमता समाप्त हो जाती है। कई बार पुरुषार्थ करने पर भी फल मिले या न मिले, यह निश्चित नहीं होता। किसी पुरुषार्थ का फल तत्काल मिलेगा ही, यह नहीं कहा जा सकता—जैसे परीक्षा दी जाती है, उसमें सफलता मिले भी और न भी मिले। फिर भी, जहाँ तक संभव हो, पुरुषार्थ करते रहना चाहिए।
दुःख भी है, दुःख का कारण भी है। यदि हम दुःख को पाप मानें, तो दुःख का मूल कारण है—आश्रव। आदमी को दुःख से मुक्त होने के लिए उसके कारणों का निवारण करने का प्रयास करते रहना चाहिए। यदि सुख मोक्ष है, तो दुःख-मुक्ति का उपाय है—संवर और निर्जरा। यदि मनुष्य दुःख के निवारण पर ध्यान दे, तो वर्तमान जीवन भी सुखी बन सकता है। मंगल प्रवचन के उपरांत, आचार्यश्री ने ‘तेरापंथ प्रबोध’ का संगान एवं उसका व्याख्यान किया। तत्पश्चात मुनि सत्यकुमारजी ने ‘आरोहण’ कार्यशाला की संक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत की। मुनि मदनकुमारजी ने आचार्यश्री की सन्निधि में प्रारंभ होने वाले पचरंगी तप के विषय में विस्तृत जानकारी दी। रम द्वारा, आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में, ‘मेधावी विद्यार्थी सम्मान समारोह’ का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के दौरान फोरम के राष्ट्रीय अध्यक्ष हिम्मत मांडोत ने अपनी भावना और वक्तव्य प्रकट किए। इसी क्रम में इसरो के निदेशक निलेश देसाई भी आचार्यश्री के दर्शनार्थ पहुंचे। उन्होंने अपने विचार रखते हुए विद्यार्थियों को प्रेरणादायी संदेश प्रदान किया।
आचार्यश्री ने मेधावी विद्यार्थियों को मंगल आशीर्वाद एवं पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि— 'आदमी के जीवन में शिक्षा का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान होता है। अज्ञानता स्वयं में एक अभिशाप है, अंधकार है; जबकि ज्ञान एक वरदान और प्रकाश स्वरूप है। शिक्षा जगत में विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय जैसे अनेक उपक्रम दिखाई देते हैं, परंतु सभी विद्यार्थी समान क्षमता वाले नहीं होते—कोई अल्पमेधी होते हैं तो कोई अत्यंत मेधावी भी।' तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम द्वारा संचालित यह सम्मान समारोह विद्यार्थियों को ज्ञान, जागरूकता और चरित्र निर्माण की दिशा में प्रेरित करता है। शिक्षा के साथ-साथ जीवन में अच्छे संकल्पों की भी आवश्यकता होती है—जैसे नशामुक्त जीवन, नैतिकता और आत्मविकास की भावना। जब जीवन में लक्ष्य के साथ संकल्प भी जुड़ जाए, तो संकल्प से सिद्धि की प्राप्ति संभव हो सकती है।