आचार्य भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष, वर्षावास स्थापना एवं तेरापंथ स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में विविध आयोजन

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बीकानेर

आचार्य भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष, वर्षावास स्थापना एवं तेरापंथ स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में विविध आयोजन

तुलसी साधना केंद्र में भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष के शुभारंभ के त्रिदिवसीय कार्यक्रम केंद्र से निर्धारित विषयों के अनुसार हर्षोल्लासपूर्वक आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या शासनश्री द्वय साध्वी मंजूप्रभा जी एवं साध्वी कुंथुश्री जी के सान्निध्य में संपन्न हुआ। तेरापंथ स्थापना दिवस के अवसर पर 'शासनश्री' साध्वी मंजूप्रभा जी ने आचार्य भिक्षु के अभिष्क्रमण से लेकर उनके जीवन के संघर्षपूर्ण प्रसंगों पर विशेष प्रकाश डाला और उनकी साहसिक संयम यात्रा का रोचक विश्लेषण प्रस्तुत किया। 'शासनश्री' साध्वी कुंथुश्री जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि आज गुरु पूर्णिमा है, और भारतीय संस्कृति में गुरु को सर्वोपरि माना गया है। गुरु स्वार्थी नहीं, परार्थी होते हैं; वे संयम की मशाल लेकर समाज का पथदर्शन करते हैं। आषाढ़ी पूर्णिमा के दिन ही तेरापंथ की स्थापना हुई थी। तेरापंथ अहंकार और ममकार के विसर्जन का प्रतीक है। आचार्य भिक्षु का हौसला बुलंद, चरित्र महान, इरादे दृढ़ और सत्य के प्रति समर्पण पूर्ण थे। उन्होंने कहा कि त्याग धर्म है, अहिंसा धर्म है, और सभी प्राणियों के प्रति सद्भावना ही धर्म है। आपने तेरापंथ दर्शन का विस्तृत विवेचन प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में साध्वी जयंतमाला जी ने सुमधुर गीत की प्रस्तुति दी। साध्वीवृंद ने सामूहिक रूप से 'मेरे तो भिक्षु ही भगवान' गीत का संगान किया। साध्वी सुमंगलाश्री जी ने आचार्य भिक्षु के व्यक्तित्व को गृहमंत्री, रक्षा मंत्री, प्रधानमंत्री और शिक्षा मंत्री के रूपक के माध्यम से श्रद्धांजलि अर्पित की। साध्वी संबोधयशा जी ने 'सुख वैभव भावी पीढ़ी को' पंक्तियों के माध्यम से भावपूर्ण कविता पाठ किया। साध्वी आलोकप्रभा जी ने अपने विचारों की अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का मंगलाचरण महिला मंडल की विजयलक्ष्मी सेठिया द्वारा किया गया। सभा अध्यक्ष सुरपत बोथरा, मंत्री सुरेश बैद, सुंदरलाल झाबक, जयचंदलाल बोथरा, पारस छाजेड़ सहित अनेक श्रावकों ने आद्य प्रवर्तक आचार्य भिक्षु के प्रति अपनी आस्था प्रकट की। महिला मंडल ने 'भिक्षु बगिया बड़ी निराली रे' गीत को स्वर देकर भाव वातावरण को सरस बना दिया। कार्यक्रम का संचालन साध्वी सुलभयशा जी द्वारा किया गया।