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भिक्षु दर्शन प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन
अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के निर्देशन में भिक्षु दर्शन प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन तेरापंथ युवक परिषद गंगाशहर द्वारा उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनि कमलकुमार जी के सान्निध्य में किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत मुनिश्री द्वारा नमस्कार महामंत्र के उच्चारण से हुई। इसके पश्चात परिषद के सदस्यों द्वारा विजय गीत का संगान किया गया। पूर्व अध्यक्ष अरुण नाहटा ने श्रावक निष्ठा पत्र का वाचन किया। परिषद अध्यक्ष ललित राखेचा के प्रारंभिक वक्तव्य के उपरांत मुनि कमलकुमार जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि आचार्य भिक्षु ने लौकिक प्रवृत्तियों को नितांत सांसारिक बताया है। उन्होंने कहा कि गृहस्थावस्था में रहते हुए व्यक्ति को कुछ प्रवृत्तियाँ अपनानी पड़ती हैं जैसे चूल्हा जलाना, नल चलाना, विवाह आदि, परंतु इन्हें धर्म नहीं माना जाना चाहिए।
कर्तव्य और धर्म को एक नहीं समझना चाहिए, क्योंकि लौकिक कार्य प्रायः हिंसा प्रधान होते हैं, जबकि धर्म का आधार है अहिंसा, संयम और तप। मुनिश्री ने कहा कि किसी अज्ञानी को ज्ञानी बनाना, दुराचारी को सदाचारी बनाना और हिंसक को अहिंसक बनाना – यही सच्चा धर्म है, जिससे न केवल उसका, बल्कि उसके परिवार का भी उत्थान संभव है। उन्होंने समझाया कि असंयमी जीव के जीने की इच्छा रखना राग, उसके मरने की इच्छा रखना द्वेष, और उसके संसार से पार होने की इच्छा रखना ही वीतराग धर्म है। इस त्रिवेणी का विस्तार से बोध कराते हुए उन्होंने कहा कि आचार्य भिक्षु के सिद्धांत आज भी पूर्णतया प्रासंगिक और अकाट्य हैं। उन्होंने आगे कहा कि आचार्य भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में आचार्य श्री महाश्रमण जी द्वारा प्रस्तावित कार्यक्रमों में एक महत्वपूर्ण पहलु यह है कि उनके साहित्य का गहराई से अध्ययन किया जाए, जिससे उनके व्यक्तित्व और कर्तृत्व को समझा जा सके और श्रद्धा में वृद्धि हो। मंत्री मांगीलाल बोथरा ने बताया कि मुनिश्री की प्रेरणा से आयोजित इस कार्यशाला में तेयुप के परामर्शकगण, पदाधिकारी, युवा और किशोर साथी, तेरापंथी सभा, आचार्य तुलसी शांति प्रतिष्ठान, महिला मंडल, अणुव्रत समिति, कन्या मंडल तथा श्रावक-श्राविका समाज की उल्लेखनीय उपस्थिति रही। कार्यक्रम का संचालन उपाध्यक्ष देवेंद्र डागा ने किया।