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आत्मिक सुख प्राप्ति का श्रेष्ठ प्रयोग है प्रेक्षा ध्यान
प्रेक्षा फाउंडेशन के निर्देशानुसार प्रेक्षा वाहिनी के तत्वावधान में समणी जयंतप्रज्ञा जी के सान्निध्य में मासिक प्रेक्षा ध्यान कार्यशाला का आयोजन स्थानीय तेरापंथ भवन में किया गया, जिसमें लगभग 65 साधकों ने भाग लिया। कार्यक्रम का शुभारंभ प्रेक्षा गीत के संगान से हुआ। समणी जयंत प्रज्ञा जी ने प्रेक्षा ध्यान के विभिन्न प्रयोग कराते हुए उनके महत्व को समझाया। उन्होंने बताया कि श्वास प्रेक्षा, प्रेक्षा ध्यान का एक महत्वपूर्ण अंग है। हमें आने-जाने वाली श्वास पर ध्यान देना चाहिए, और यही प्रेक्षा ध्यान की शुरुआत है। प्रेक्षा ध्यान आत्मिक सुख प्राप्ति का एक श्रेष्ठ प्रयोग है।
समणी सन्मतिप्रज्ञा जी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि जैन धर्म में ध्यान की पद्धति का प्रारंभ भगवान महावीर से हुआ है। ध्यान और तपस्या के माध्यम से ही केवलज्ञान की प्राप्ति संभव है। उन्होंने कहा कि प्रेक्षा का अर्थ है गहराई से देखना एवं आत्मा का अनुभव करना, जबकि ध्यान का अर्थ है एकाग्रता की साधना। ध्यान से पहले भाव-क्रिया, अर्थात जागरूकता का विकास आवश्यक है। ध्यान के लिए हल्का, सुपाच्य, स्वच्छ और शाकाहारी भोजन आवश्यक है। ध्यान करते समय प्रतिक्रिया नहीं होनी चाहिए। ध्यानी को सोच-समझकर बोलना चाहिए और मितभाषी होना चाहिए। उन्होंने बताया कि आचार्य महाप्रज्ञ जी का कहना था कि 'अनावश्यक न बोलना भी मौन की एक उत्कृष्ट विधा है।'