
गुरुवाणी/ केन्द्र
अहिंसा की साधना के लिए अपेक्षित है अनासक्ति की साधना : आचार्यश्री महाश्रमण
जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आयारो’ आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि पांच इन्द्रियों के विषयों को दृष्ट कहा जाता है। मानव शरीर में पांच इन्द्रियां होती हैं, उनके पांच विषय होते हैं और उन विषयों की पांच प्रवृत्तियां होती हैं। जैसे श्रोतेन्द्रिय अर्थात् कान का विषय है — शब्द, और इसकी प्रवृत्ति है — सुनना। इसी प्रकार, आंख से देखना, नाक से सूंघना, जिह्वा से स्वाद लेना और त्वचा से स्पर्श करना होता है। जिस प्राणी के पास श्रोतेन्द्रिय होती है, वह निश्चय ही पंचेन्द्रिय होता है। सुनने की क्षमता सभी प्राणियों में नहीं होती। कान से आदमी सुनता है। शब्द जब कान में आते हैं, तो उनके प्रति राग-द्वेष उत्पन्न हो सकता है। आगम में बताया गया है कि इन्द्रिय विषयों में विशेषतः स्वाद के प्रति आसक्ति से बचना चाहिए; इनके प्रति न तो राग होना चाहिए, न द्वेष। अहिंसा की साधना करने के लिए अनासक्ति की साधना करना अपेक्षित है। यदि दृष्ट विषयों के प्रति राग होता है, तो व्यक्ति हिंसा की ओर भी प्रवृत्त हो सकता है। आंख का विषय है — रूप।
जब आदमी आंखों से देखता है, तो देखने से उसके मन में राग भाव जुड़ सकता है। भौतिकता की चकाचौंध आंखों को लुभा सकती है, और उनके प्रति राग की भावना जागृत हो सकती है। इसलिए अहिंसा की साधना के लिए इन्द्रिय विषयों के प्रति अनासक्त रहने की अपेक्षा है। इसी प्रकार, व्यक्ति को गंध, रस और स्पर्श के प्रति भी अनासक्ति की चेतना विकसित करने का प्रयास करना चाहिए। विषयों के आकर्षण के कारण व्यक्ति दूसरों को कष्ट देने का प्रयास कर सकता है। इसलिए व्यक्ति को विषय-आकर्षण से बचकर, उनके प्रति अनासक्त रहने का प्रयास करना चाहिए। जब आकर्षण होता है, तब व्यक्ति प्रवृत्त होता है, और वह हिंसा तक भी पहुंच सकता है। भौतिकता का उपयोग आवश्यकतानुसार किया जा सकता है, लेकिन इसमें अधिक समय नहीं लगाना चाहिए। आधुनिक उपकरणों, जैसे मोबाइल आदि की उपयोगिता में भी संयम अपेक्षित है।
बाह्य आकर्षण की दुनिया में व्यक्ति को भौतिकता के मोह को त्यागकर अपने चित्त को अध्यात्म में लगाने का प्रयास करना चाहिए। त्रिदिवसीय उपासक सेमिनार के अंतिम दिन पूज्य प्रवर की सन्निधि में आयोजित कार्यक्रम में उपासक श्रेणी के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि योगेशकुमारजी ने अपनी अभिव्यक्ति दी। उपासक श्रेणी के राष्ट्रीय संयोजक सूर्यप्रकाश सामसुखा ने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि उपासक श्रेणी हमारे धर्मसंघ की एक संपदा बन रही है। जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्वावधान में यह श्रेणी वर्षों से वर्धमान है। इस श्रेणी में धर्म के प्रति प्रवृत्ति और गौरव की भावना निरंतर बढ़ती रहे। यह उपासक श्रेणी धर्मसंघ की एक समृद्ध ‘संपदा’ बनकर निरंतर वृद्धिंगत होती रहे। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।