
गुरुवाणी/ केन्द्र
अहिंसा के प्रति बनी रहे सजगता : आचार्यश्री महाश्रमण
कोबा स्थित प्रेक्षा विश्व भारती परिसर में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के चौथे अध्ययन के माध्यम से पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि अहिंसा व्यापक धर्म है। विभिन्न सम्प्रदाय दुनिया में हैं, जो धर्म से जुड़े हुए हैं, उनमें से कोई भी सम्प्रदाय ऐसा नहीं होगा जो अहिंसा को पूर्णतया नकारता हो। जैन धर्म में सूक्ष्मता से भी अहिंसा का निरूपण किया गया है। आयारो आगम में बताया गया है कि अतीत में जितने अर्हत हुए हैं, वर्तमान में हैं और भविष्य में होने वाले हैं, वे ऐसा कहते हैं कि सभी प्राण, जीव, भूत और सत्त्व हन्तव्य नहीं हैं। उनका हनन नहीं करना चाहिए, परिताप नहीं करना चाहिए, प्राण नियोजन नहीं करना चाहिए। सभी जीवों के प्रति अहिंसा की चेतना होनी चाहिए।
साधु-साध्वियां तो अहिंसा के पुजारी रहें, आचरण में अहिंसा हो। जो साधु तन, मन और वचन से किसी को दुःख नहीं देते, उनके दर्शन मात्र से पाप झड़ जाते हैं। साधु को पूर्ण जागरूकता के साथ अहिंसा का पालन करने का प्रयास करना चाहिए। साधु को बैठते समय रजोहरण व प्रमार्जनी से स्थान को पोंछकर, साफ कर बैठना चाहिए। चलते समय भी ईर्या समिति का पालन करना चाहिए, चक्षुरीन्द्रिय का उपयोग करना चाहिए। प्रतिलेखन की प्रक्रिया भी अहिंसा के प्रति जागरूकता के लिए होती है। कभी प्रतिलेखन नहीं हुआ हो तो उसकी आलोयणा लेनी चाहिए। गोचरी भी पूर्ण सजगता के साथ करनी चाहिए, काई आदि पर पांव न पड़े। सहज में जो मिल जाए, उसी पदार्थ की गोचरी करने का प्रयास होना चाहिए। साधुचर्या की अहिंसा बहुत सूक्ष्म है, इसके प्रति साधु की सचेष्टता बनी रहे, यह काम्य है।
साध्वीप्रमुखाश्रीजी ने संघ की सेवा भावना पर प्रकाश डालते हुए अपनी भावनाएं अभिव्यक्त कीं। साध्वी निर्वाणश्रीजी ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावाभिव्यक्ति दी। चतुर्दशी के अवसर पर हाजरी वाचन के अंतर्गत उपस्थित चारित्रात्माओं ने अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र का उच्चारण किया।आचार्यश्री ने उपासक श्रेणी के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा— 'परम पूज्य गुरुदेव तुलसी के सान्निध्य में प्रारंभ हुई यह श्रेणी आज उत्तरोत्तर सक्षमता की ओर अग्रसर है। जिन क्षेत्रों में साधु-साध्वियों की उपस्थिति नहीं हो पाती, वहाँ यह श्रेणी संथारा एवं अन्य आध्यात्मिक क्रियाओं में अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो सकती है। पर्युषण पर्व जैसे अवसरों पर भी इसका विशेष महत्व है।' आचार्य प्रवर ने आगे कहा कि उपासक वर्ग को संयम-साधना, ज्ञान-विकास, प्रेक्षाध्यान और धर्म-प्रचार के कार्यों में निरंतर सक्रिय रहना चाहिए। यही इस श्रेणी की सार्थकता और उपयोगिता है। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।