
स्वाध्याय
श्रमण महावीर
भगवान् ने संयम की साधना के लिए तीन गुप्तियों का निरूपण किया -
१. मनगुप्ति-मन का संवर, केन्द्रित विचार या निर्विचार ।
२. वचनगुप्ति-वचन का संवर, मौन।
३. कायगुप्ति-काय का स्थिरीकरण, शिथिलीकरण, ममत्व-विसर्जन ।
भगवान् ने देखा-अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य आदि संयम-साधना की निष्पत्तियां हैं। उनकी सिद्धि के लिए साधनों का सम्यक् अभ्यास होना चाहिए।
भाषा समिति और वचनगुप्ति के सम्यक् अभ्यास का अर्थ है-जीवन में सत्य की प्रतिष्ठा ।
ईर्या, एषणा, उत्सर्ग, कायगुप्ति और मनगुप्ति के सम्यक् अभ्यास का अर्थ है-जीवन में अहिंसा की प्रतिष्ठा।
कायगुप्ति और मनगुप्ति के सम्यक् अभ्यास का अर्थ है- जीवन में ब्रह्मचर्य की प्रतिष्ठा।
कायगुप्ति के सम्यक् अभ्यास का अर्थ है-जीवन में अपरिग्रह की प्रतिष्ठा। भगवान् महावीर ने भगवान् पार्श्व के चतुर्याम धर्म का विस्तार कर त्रयोदशांग धर्म की प्रतिष्ठा की है। जैसे -
इस विभागात्मक धर्म की स्थापना के दो फलित हुए-
१. भगवान् पार्श्व के श्रमणों में आ रही आन्तरिक शिथिलता पर नियन्त्रण।
२. आन्तरिक शिथिलता के समर्थक तत्त्वों का समाधान ।
भगवान् महावीर ने श्रामणिक, लौकिक और वैदिक-तीनों परम्पराओं के उन आचारों और विचारों का प्रतिवाद किया जो अहिंसा की शाश्वत प्रतिमा का विखंडन कर रहे थे। इस आधार पर भगवान् तीनों परम्पराओं के सुधारक या उद्धारक बन गए।
कुछ विद्वान् मानते हैं कि भगवान् महावीर यज्ञों और कर्मकाण्डों में संशोधन करने के लिए एक क्रान्तिकारी धर्म नेता के रूप में सामने आए और उन्होंने जैन धर्म का प्रवर्तन किया। किन्तु यह मत तथ्यों पर आधृत नहीं है। वास्तविकता यह है कि भगवान् श्रमण-परम्परा के क्षितिज में उदित हुए। उनका प्रकाश परम्परा से मुक्त होकर फैला। उसने सभी परम्पराओं को प्रकाशित किया। भगवान् के सामने वेदों की प्रामाणिकता और ब्राह्मणों की प्रधानता को अस्वीकृत करने का प्रश्न ही नहीं था। वह श्रमण-परम्परा के द्वारा पहले से ही स्वीकृत नहीं थी। श्रमण और वैदिक-ये दोनों महान् भारतीय जाति की स्वतंत्र शाखाएं स्वतंत्र रूप में विकसित हुई थीं। दोनों में भगिनी का सम्बन्ध था, माता और पुत्री का नहीं।
भगवान् महावीर समन्वयवादी थे। वे क्षत्रियों और ब्राह्मणों के बीच चल रही दीर्घकालीन कटुता को समाप्त करना चाहते थे। उन्होंने ब्राह्मणों को प्रधानता दी-एक जाति के रूप में नहीं, किन्तु व्यक्ति के रूप में। जातीय भेद-भाव उन्हें मान्य नहीं था।