आचार्य भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष, वर्षावास स्थापना एवं तेरापंथ स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में विविध आयोजन

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आचार्य भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष, वर्षावास स्थापना एवं तेरापंथ स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में विविध आयोजन

मुनि डॉ. ज्ञानेंद्र कुमार जी ने स्थानीय तेरापंथ धर्मस्थल में कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ के आद्य प्रवर्तक आचार्य भिक्षु का जन्म जिनशासन की प्रभावना के लिए ही हुआ था। वह समय राजनीतिक दृष्टि से उथल-पुथल का था। राजसत्ता समाप्त होती जा रही थी और अंग्रेजों ने राजाओं-महाराजाओं को गुलाम बनाकर देश को अपने अधीन कर लिया। उस समय जैन धर्म में बिखराव रुक नहीं रहा था। भगवान महावीर के निर्वाण के अनेकों वर्षों बाद भी जिनशासन में अनेक गच्छ बनते जा रहे थे। आचार्य भिक्षु ने भगवान महावीर की वाणी एवं परंपरा को आगे बढ़ाते हुए इस बिखराव को रोकने का कार्य किया। उन्होंने आगे चलकर एक अनुशासित एवं मर्यादित तेरापंथ धर्मसंघ की स्थापना की । मुनि रमेश कुमारजी ने आचार्य भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष के शुभारंभ पर जय सभागार में उपस्थित जनमेदिनी को संबोधित करते हुए कहा कि व्यक्ति अपनी कृतियों से महान होता है। व्यक्ति की कृतियां उसकी मृत्यु के बाद ही आंकी जाती है तथा उसी अनुरूप उनकी कृतियां हजारों-लाखों वर्षों तक जीवित रहती हैं। इस दृष्टि से हम आचार्य भिक्षु को महान कह सकते हैं, जिनके द्वारा स्थापित आचार, विचार, अनुशासन एवं मर्यादा आज भी जीवित हैं। मुनि पद्म कुमार जी ने कहा कि हम आचार्य भिक्षु के सिद्धांतों को पहचानेंगे तभी उनका जन्म दिवस मनाना सार्थक होगा। मुनि रत्न कुमार जी ने कहा कि महापुरुषों का जन्म दिवस आध्यात्मिक रूप से त्याग करके मनाएं तभी वह सार्थक होगा। इस अवसर पर तेरापंथी सभा के पदाधिकारियों ने सुमधुर गीतिका का संगान किया।