
संस्थाएं
गुरु के आशीर्वाद से ही संभव है शिष्य की सफलता
महातपस्वी युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी मधुस्मिता जी ने उल्लास और उमंग से भरे वातावरण में विनोद संचेती के घर से एक भव्य और विशाल जुलूस के साथ लाल जैन मंदिर, महावीर साधना केंद्र, जवाहर नगर, जयपुर में मंगलमय प्रवेश किया। स्वागत समारोह का शुभारंभ श्री जैन श्वेतांबर संघ, जवाहर नगर महिला मंडल द्वारा किया गया। अध्यक्ष उम्मेद कुमार मूसल ने स्वागत वक्तव्य देते हुए पधारे साध्वी वृंद, अतिथिगण और समस्त पदाधिकारियों का हृदय से अभिनंदन किया। तेरापंथ महिला मंडल, जयपुर शहर की ओर से स्वागत गीत की प्रस्तुति दी गई। जवाहर नगर सहित आदर्श नगर, तिलक नगर और जनता कॉलोनी से बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की उपस्थिति रही। तेरापंथ सभा, जयपुर के अध्यक्ष शांतिलाल गोलछा ने स्वागत के साथ ऐतिहासिक चातुर्मास की मंगलकामना व्यक्त की। मंत्री सुरेंद्र सेखानी ने साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी का संदेश वाचन कर साध्वी वृंद और श्रावक समाज के उत्साह को और अधिक सशक्त किया।
तेरापंथ महिला मंडल, सी-स्कीम की ओर से प्रज्ञा सुराणा ने स्वागत भाषण दिया। साध्वी धन्यप्रभा जी ने सुमधुर गीत की प्रस्तुति दी। तेरापंथ युवक परिषद की ओर से शरद बरडिया ने तथा युवा प्रकोष्ठ, जवाहर नगर की ओर से आशीष छजलानी और शशांक चौधरी ने साध्वी वृंद का स्वागत करते हुए चातुर्मासिक सफलता की शुभकामनाएं दीं।
साध्वी सहजयशा जी ने चातुर्मास को धर्म की फसल उगाने का समय बताते हुए श्रावक-श्राविका समाज को धर्माराधना की प्रेरणा दी और पाली में चातुर्मास करने वाली साध्वी काव्यलता जी द्वारा भेजे गए मंगलभावना पत्र का वाचन किया। साध्वी अक्षयप्रभा जी और साध्वी प्रदीपप्रभा जी ने भी श्रावक-श्राविकाओं को चातुर्मास में विशेष रूप से त्याग, तपस्या और आत्मिक साधना करने की प्रेरणा प्रदान की। खरतरगच्छ संघ, जयपुर के अध्यक्ष पदम पुगलिया ने भी स्वागत प्रस्तुत किया। जैन एकता समग्र परिषद के अनुरोध पर साध्वी मधुस्मिता जी ने अपने प्रवचन में उपस्थित श्रद्धालुओं के स्वागत को स्वीकार करते हुए कहा कि इस वर्ष परम पूज्य गुरुदेव की असीम अनुकंपा, अनुग्रह और मेहरबानी से यह चातुर्मास जैन समाज के चारों संप्रदायों—खरतरगच्छ, तपागच्छ, स्थानकवासी और तेरापंथी—के बीच प्रदान हुआ है। उन्होंने इसके लिए परम पूज्य आचार्य प्रवर के प्रति हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त की और कहा कि शिष्य की सफलता गुरु के आशीर्वाद, अनुग्रह और ऊर्जा से ही संभव बनती है।
उन्होंने सत्संग की महिमा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जैसे पारस पत्थर लोहे को सोना बना देता है, वैसे ही सत्संग श्रवण से पापी भी पुनीत बन जाता है। उन्होंने आचार्य श्री भिक्षु के त्रिशताब्दी जन्म वर्ष के उपलक्ष्य में तेले की तपस्या करने की प्रेरणा दी। चातुर्मासिक प्रवेश के संदर्भ में उन्होंने स्वयं द्वारा रचित एक गीत का सुमधुर संगान किया तथा जीवन को सरस, मधुर और समुन्नत बनाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करने की प्रेरणा दी—जैसे कि सकारात्मक सोच बनाए रखना, समय का मूल्यांकन करना, उद्देश्यपूर्ण जीवन जीना, आत्मनियंत्रण विकसित करना, ग्रहणशील बनकर व्यक्तित्व को निखारना और तप-जप के मधुर फलों का आनंद लेना। उन्होंने 31 वर्ष पूर्व जयपुर में संपन्न अपने चातुर्मास को याद करते हुए उस काल के श्रम, प्रयास और जागृति को स्मरण किया, जिसका उल्लेख ओम जैन और राजेंद्र बाठिया ने भावपूर्वक किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन जवाहर नगर संघ के नितिन दुगड़ द्वारा किया गया, जिन्होंने साध्वी वृंद का परिचय भी प्रस्तुत किया।