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अध्यात्म का मार्ग कठिन है, पर मंजिल है अत्यंत श्रेष्ठ : आचार्यश्री महाश्रमण
महातपस्वी, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘वीर भिक्षु समवसरण’ में ‘आयारो’ आगम के माध्यम से अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया – एक मार्ग दुर्गम होता है और एक सुगम। किसी मार्ग पर चलना बड़ा कठिन होता है और किसी पर चलना आसान। जैसे नेशनल हाइवे बढ़िया बना हुआ हो तो उस पर चलना आसान हो सकता है, और कहीं कंकरीला, पथरीला, ऊबड़-खाबड़ पथ हो, उस पर नंगे पांव चलना हो तो वह मार्ग कठिन हो सकता है। यह तो भौतिक मार्ग का उदाहरण है, पर एक है अध्यात्म का पथ। अध्यात्म का पथ प्रथम दृष्टया कठिन हो सकता है, जबकि भौतिक सुखों का मार्ग सुगम और रुचिकर लग सकता है। अध्यात्म का मार्ग कठिन है, पर उसकी मंजिल अत्यंत श्रेष्ठ है।
रास्ता कैसा है, इसका भी महत्व है, पर इससे अधिक महत्व इस बात का है कि मंजिल कैसी है। यदि मंजिल श्रेष्ठ और उत्तम है तो चाहे मार्ग कठिन हो, व्यक्ति को उस पर चलना चाहिए। मार्ग चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो, यदि मंजिल खराब है तो उस पर आगे बढ़ने का औचित्य नहीं है। एक मार्ग आपात पटु और परिणाम कटु होता है, दूसरा आपात कटु और परिणाम पटु। हमें तात्कालिक सुख-दुःख को गौण करके परिणाम पर ध्यान देना चाहिए। संयम का मार्ग, अध्यात्म का मार्ग है। साधु-साध्वियां दीक्षित होकर संयम और महाव्रतों के मार्ग पर चलने का संकल्प स्वीकार करती हैं। सांसारिक सुखों का मार्ग प्रथम दृष्टया सुखद लग सकता है, पर संयम का मार्ग कठिन होते हुए भी उसका परिणाम श्रेष्ठ है। मंजिल का महत्व मार्ग से अधिक है, मार्ग तो साधन है। यह मार्ग दुर्गम है, पर इस कठिन पथ पर चलने से परम सुख की प्राप्ति की संभावना है। इसलिए साधु इसे स्वीकार कर लेते हैं। छोटी उम्र में साधुपना ग्रहण कर अंतिम सांस तक उसका पालन करना महान सफलता है।
गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी एक सीमा तक संयम की साधना करनी चाहिए। श्रावक के लिए बारह व्रत हैं, वे हर कोई न ले पाए तो कुछ संयम का पालन करें। प्रतिदिन नवकार मंत्र की माला या कम से कम 21 बार जप करें। बच्चों में भी यह संस्कार विकसित हो। प्रतिदिन सामायिक करें, संभव न हो तो प्रत्येक शनिवार सायं 7 से 8 बजे सामायिक करने का प्रयास करें। गृहस्थ कार्य करते हुए भी धार्मिक कार्यों के लिए समय निकालें। नशीली चीजों के सेवन से बचें। हॉस्टल और होटल में यदि भोजन नॉनवेज हो तो उससे बचने की जागरूकता रखें। दवाओं में भी नॉनवेज तत्व से बचें। व्यापार और लेन-देन में ईमानदारी का प्रयास करें।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीवर्या श्री सम्बुद्धयशाजी ने समुपस्थित जनता को उद्बोधित किया। आचार्यश्री ने अनेक तपस्वियों को उनकी धारणा के अनुसार तपस्या का प्रत्याख्यान कराया। मुनि मदनकुमारजी ने नवरंगी तपस्या के संदर्भ में जानकारी व प्रेरणा प्रदान की। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा द्वारा आयोजित द्विदिवसीय ‘तेरापंथ ग्लोबल समिट' में उपस्थित अप्रवासी भारतीयों के साथ पधारे दुबई ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी प्रस्तुति दी। आचार्यश्री ने उन बच्चों को मंगल आशीष और प्रेरणा प्रदान की। लन्दन से सम्मेलन में समागत जीतूभाई ढेलड़िया व सुनील दूगड़ ने अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।