तप-रूपी अग्नि से जला सकते हैं कर्म-रूपी काष्ठ : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कोबा, गांधीनगर। 01 अगस्त, 2025

तप-रूपी अग्नि से जला सकते हैं कर्म-रूपी काष्ठ : आचार्यश्री महाश्रमण

तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आयारो’ आगम के माध्यम से अपनी पावन देशना प्रदान करते हुए कहा— शास्त्र में जीर्ण-शीर्ण लकड़ी और अग्नि का उदाहरण बताया गया है। अग्नि जला देती है, अग्नि से ऊष्मा भी मिलती है। सर्दी के समय अग्नि के आस-पास बैठने से शीत दूर होती है, परंतु अग्नि में हाथ डाल दें तो नुकसान हो सकता है। इसलिए चीज़ों का विवेकपूर्वक उपयोग करना चाहिए। एक सीमा तक एक वस्तु का सेवन लाभदायक है। श्लोक है— ‘अति सर्वत्र वर्जयेत’। सीमा का ध्यान रखो। अति किसी भी चीज़ की मत करो।
अग्नि में यदि जीर्ण-शीर्ण काष्ठ डाला जाए तो अग्नि शीघ्र उसको जला देती है। अग्नि के द्वारा जैसे शीर्ण काष्ठ जला दिया जाता है, इसी प्रकार हमारे कर्मों की निर्जरा भी हो सकती है। तपस्या को अग्नि के समान मान लें तो तप-रूपी अग्नि में कर्म-रूपी काष्ठ पड़ता है, तो तप-रूपी अग्नि उस कर्म-रूपी काष्ठ को भी जला डालती है।
साधना के क्षेत्र में संवर का तो महत्त्व है ही, निर्जरा का भी बहुत महत्त्व है। साधु तपस्या, साधना, सेवा, स्वाध्याय करता है, जिससे कर्मों की निर्जरा होती है। गृहस्थ श्रावक भी कर्म निर्जरा कर सकते हैं। श्रावक के पूर्णव्रत संवर नहीं हैं, देशविरति है। साधु जितना संवर तो नहीं है, परंतु जितना संवर है, उसे बढ़ाने की चेष्टा करे। द्रव्यों की सीमा का संकोच करें, मौन करें— इस प्रकार त्याग, संयम को बढ़ाने और अव्रत को कम करने का प्रयास करें। साथ में निर्जरा की साधना भी चले— स्वाध्याय, ध्यान, तपस्या आदि करने से निर्जरा हो सकती है। लंबी तपस्या न हो तो भी उपवास करें। पारणे में भी संयम रखें। उपवास भी न हो तो नवकारसी की साधना करें। जो भी तप अनुकूल हो, उसे करने का प्रयास करें। शास्त्र में कहा गया है कि— ‘अग्नि जीर्ण-शीर्ण काष्ठ को शीघ्र जला देती है, वैसे ही जो शांत चित्त वाला व्यक्ति है, समाहित आत्मा वाला है, कषायों से अप्रताड़ित है— ऐसा आदमी अपनी तपस्या, साधना के द्वारा कर्मों को, कर्म शरीर को नष्ट करता है, कृश कर देता है।’
तेरापंथ प्रबोध की आख्यानमाला को आगे बढ़ाते हुए आचार्यश्री ने परम पूज्य आचार्य भिक्षु के प्रेरणादायी जीवन प्रसंगों का वर्णन किया। आचार्यश्री की पावन सन्निधि में एक माह तक चलने वाले सपाद कोटि जप अनुष्ठान का प्रारम्भ हुआ। इस जप में भाग लेने वाले लोगों को आचार्यश्री नवकार मंत्र का जप कराकर जप अनुष्ठान का शुभारम्भ कराया। मुनि राजकुमारजी ने भावपूर्ण गीत की प्रस्तुति देकर उपस्थित जनों को तप की प्रेरणा दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।