देह ममत्त्व है अध्यात्म साधना में बाधक : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कोबा, गांधीनगर। 30 जुलाई, 2025

देह ममत्त्व है अध्यात्म साधना में बाधक : आचार्यश्री महाश्रमण

जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अनुशास्ता युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने वीर भिक्षु समवसरण में ‘आयारो’ आगम के माध्यम से अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि भौतिकता और आध्यात्मिकता दो चीजें हैं। भौतिकता मूर्त है और आध्यात्मिकता अमूर्त है। आत्मा के साथ कर्म है। आत्मा अपने आप में विशुद्ध अमूर्त तत्त्व है, कर्म पुद्गल मूर्त हैं। इन्हें हम भौतिक पदार्थ कह सकते हैं, इनमें रूप, गंध, रस, स्पर्श है, अतः इन्हें पुद्गल कह सकते हैं और पुद्गल भौतिक तत्त्व है। इस प्रकार कर्म भौतिक है और आत्मा अभौतिक है। कर्म सूक्ष्म है और आंखों से दृश्य नहीं है। शरीर स्थूल है, यह हमारे लिए दृश्य है।
जैन विद्या में पांच प्रकार के शरीर बताए गए हैं - औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस और कार्मण। एक सामान्य मनुष्य के पास तीन शरीर होते हैं - औदारिक, तैजस और कार्मण शरीर। औदारिक शरीर स्थूल शरीर है, तैजस सूक्ष्म एवं कार्मण सूक्ष्मतर। हमारे जन्म-मरण का कारण कार्मण शरीर है। स्थूल शरीर बनने का कारण भी कार्मण शरीर है। हमारी प्रवृत्तियों का कारण कार्मण शरीर ही है, अतः इसे हम कारण शरीर के रूप में भी जान सकते हैं। ‘आयारो’ आगम में कहा गया है कि धर्म, आत्मा और अध्यात्म की बात वही जान सकता है और आगे बढ़ सकता है, जो देह के प्रति अनासक्ति का भाव रखता है। जिस आदमी का शरीर के प्रति मोह है, वह हिंसा में जा सकता है और अन्य पदार्थों के प्रति भी आसक्त हो सकता है। यह देह ममत्त्व अध्यात्म की साधना में बाधक तत्त्व है।
शरीर स्वस्थ और सक्षम रह सके, इसलिए द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के अनुसार कभी-कभी शरीर पर ध्यान देना भी अपेक्षित हो सकता है। देहासक्ति, पदार्थासक्ति के कारण व्यक्ति हिंसा में प्रवृत्त हो सकता है। जब मनुष्य आसक्ति को छोड़ देता है तो वह धर्मविद्य भी बनता है, ऋजु भी हो जाता है। साधना के क्षेत्र में ऋजुता का अपना महत्त्व है। जो ऋजुभूत है, सरल है, उसकी शोधि होती है। हम ऋजु भी रहें और गंभीर भी रहें, यह काम्य है। आज के कार्यक्रम में तेरापंथ समाज की सुदीर्घजीवी 'शासनश्री' साध्वी बिदामांजी की स्मृतिसभा का आयोजन किया गया। इस संदर्भ में साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभाजी और मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने उनके प्रति अपनी भावांजलि अर्पित की। आचार्यश्री ने उनका संक्षिप्त जीवन परिचय प्रदान करते हुए कहा कि वे केवल सुदीर्घजीवी ही नहीं, बल्कि सुदीर्घ संयम पर्याय वाली साध्वीजी थीं। आज के इस चिकित्सा जगत की सुविधाओं के बीच जीवन जीते हुए भी वे औषधमुक्त रहीं, यह एक विशिष्ट बात थी। मानो ऐतिहासिक साध्वीजी का प्रयाण हो गया हो। आचार्यश्री ने उनकी आत्मा के कल्याण के लिए चतुर्विध धर्मसंघ के साथ चार लोगस्स का ध्यान किया।
इस अवसर पर मुनि मदनकुमारजी, साध्वी जिनप्रभाजी, साध्वी परमयशाजी और साध्वी मधुरप्रभाजी ने अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। साध्वीवृंद ने गीत का संगान भी किया। कालू सभा के पूर्व अध्यक्ष विनोद सिंघी ने भी अपनी अभिव्यक्ति दी। साध्वी बिदामांजी के ज्ञातिजनों की ओर से प्रेम चावत, धर्मचंद दक और कालू सभा के अध्यक्ष बुद्धमल लोढ़ा ने अपनी अभिव्यक्ति दी। गुरुदर्शन समन्वय यात्रा की ओर से रमेश सिंघी ने भी अपने विचार रखे। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में जैन विश्व भारती की ओर से गंगादेवी सरावगी जैन विद्या पुरस्कार समारोह का आयोजन हुआ। वर्ष 2025 का जैन विद्या पुरस्कार राजकुमारी सुराणा (कोलकाता) को जैन विश्व भारती के पदाधिकारियों तथा अन्य गणमान्य लोगों द्वारा प्रदान किया गया। श्रीमती सुराणा का परिचय मालचंद बैंगानी ने कराया। पुरस्कार प्राप्ति के बाद राजकुमारी सुराणा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। इस कार्यक्रम का संचालन जैन विश्व भारती की ओर से जयंतीलाल सुराणा ने किया।