
गुरुवाणी/ केन्द्र
अहिंसक चेतना को पुष्ट करने के लिए करें कामनाओं पर नियंत्रण : आचार्यश्री महाश्रमण
जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, ज्योतिपुंज आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आयारो’ आगम पर आधारित पावन देशना प्रदान करते हुए कहा - दुनिया में हिंसा भी चलती है। जहां राग-द्वेष होता है, वहां हिंसा की भी संभावना बन जाती है। आदमी हिंसा, हत्या की प्रवृत्ति करता है तो उसके कारण राग-द्वेष होते हैं। आदमी अर्थ, काम, सम्प्रदाय और सत्ता पाने के लिए हिंसा में प्रवृत्त हो सकता है। इस प्रकार हिंसा के कई प्रयोजन हो जाते हैं। आयारो में कहा गया है कि हिंसा में प्रवृत्त लोगों में कामनाएं बहुत ज्यादा हो जाती हैं, जिससे वे हिंसा में प्रवृत्त होते हैं। यदि अपरिग्रह की सम्पूर्ण चेतना जाग जाए तो फिर आदमी संभवतः हिंसा-हत्या की ओर जा ही नहीं सकता। ‘अपरिग्रह’ भी बड़ा महान धर्म है। जहां परिग्रह से पकड़ है, मूर्च्छा है, आसक्ति है, वहां हिंसा भी पकड़ी जा सकती है। अहिंसा की चेतना को पुष्ट करने के लिए आदमी कामनाओं पर नियंत्रण करे। असीम और अनियंत्रित कामनाएं आदमी में न हों।
परिग्रह के दो प्रकार बताए गए हैं - द्रव्य परिग्रह और भाव परिग्रह। द्रव्य परिग्रह पदार्थ है और भाव परिग्रह है मूर्च्छा, आसक्ति। पदार्थ कर्मों का बंध नहीं करा सकते, कर्मों का बंध तो आसक्ति और मोह ही करा सकता है। कहा गया है - ये काम, भोग, पदार्थ, इन्द्रिय विषय न तो समता पैदा कर सकते हैं और न ही विकृति। भीतर में जो द्वेष, मूर्च्छा, आसक्ति के भाव हैं, वे पदार्थों में मोह हो जाने के कारण विकृति को प्राप्त कर लेते हैं। साधु के पास भी धर्मोपकरण होते हैं। यदि इनमें साधु की मूर्च्छा नहीं हो, आसक्ति का भाव न हो तो इन पदार्थों के रहते हुए भी कर्मों का बंध नहीं हो सकता। ये पदार्थ केवल मूर्च्छा में निमित्त बन सकते हैं। साधना के क्षेत्र में उपादान तो मूल है ही, पर इन निमित्तों पर भी ध्यान देना चाहिए। निमित्त कई बार उपादान को उत्तेजित करने में सहायक बन सकते हैं।
गृहस्थ परिग्रह से एकदम बच जाएं यह संभव नहीं है, लेकिन भीतर से अनासक्ति का भाव रहे, ज्यादा मोह-मूर्च्छा न हो। जो परिग्रह है, उसका व्यक्तिगत उपभोग में संयम रखें। पैसा होते हुए भी खान-पान, कपड़े आदि में व्यक्तिगत संयम रखें। ‘मैं अकेला हूं’ यह भाव रहे। आसक्ति नहीं रहती तो परिग्रह का आत्मा पर इतना भार नहीं रहता। अपरिग्रह की चेतना पुष्ट होगी तो अहिंसा की भावना भी जीवन में पुष्ट हो सकेगी। अतः श्रावक को परिग्रह को छोड़ने का जितना संभव हो सके, प्रयास करना चाहिए। कामना, लालसा को हल्का करने का प्रयास करना चाहिए और आसक्ति भी ज्यादा न हो, ऐसा प्रयत्न रहना चाहिए। द्रव्य परिग्रह का भी एक उम्र आने के बाद जितना स्वामित्व छोड़ा जा सके, उसे छोड़ने का प्रयास करना चाहिए।
मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने जनता को ‘तेरापंथ प्रबोध’ के आख्यान से लाभान्वित किया। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीवर्याजी ने जनता को उत्प्रेरित किया। मुमुक्षु हनुमान दूगड़ ने अपनी भावनाओं के द्वारा गुरुचरणों में अर्ज लगाई तो आचार्यश्री ने मुमुक्षु की अर्जी पर विशेष कृपा बरसाते हुए कहा कि प्रेक्षा विश्व भारती में कार्तिक शुक्ला पंचमी, 26 अक्टूबर 2025 (रविवार) को हनुमानजी दूगड़ को मुनि दीक्षा देने का भाव है। आचार्यश्री की इस कृपा से मुमुक्षु हनुमान दूगड़ ही नहीं, उनके परिजन व पूरा प्रवचन पण्डाल जयघोष कर उठा।