तेरापंथ धर्मसंघ की अद्वितीय साध्वी बिदामां जी

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साध्वी उज्ज्वलरेखा

तेरापंथ धर्मसंघ की अद्वितीय साध्वी बिदामां जी

इस दुनिया के गुलशन में अनेकों पुष्प खिलते हैं और मुरझा जाते हैं। कुछ पुष्प ऐसे होते हैं, जो अपनी सौरभ से समूचे संसार को महका देते हैं। जन्म और जीवन उसी का सार्थक होता है, जो अपने ज्योतिर्मय जीवन से समूचे विश्व को आलोकित कर देता है। सुदीर्घजीवी शासनश्री साध्वी बिदामां जी (छापली, पींपली) जिन्होंने अपने जीवन को अनेकों गुणों से सजाया एवं संवारा। उन्होंने दीर्घायु का वरदान प्राप्त कर धर्मसंघ में नया कीर्तिमान स्थापित कर दिया। आचार्य श्री महाश्रमण युग में 107वें वर्ष में पहुंचकर पूज्यप्रवर द्वारा प्राप्त आशीर्वचन को सार्थक बनाया।
दीर्घायु का वरदान
सन् 2012 का आचार्य श्री महाश्रमण जी का चातुर्मास जसोल में था। उन दिनों हमारा चातुर्मास्य भी गुरुकुलवास में था। साध्वी बिदामां जी को पूज्यप्रवर प्रायः प्रतिदिन ही दर्शन दिलाने पधारते थे। एक दिन पूज्यप्रवर साध्वी वैराग्यश्री जी को संथारे का प्रत्याख्यान करवाकर पुनः लौटते हुए साध्वी बिदामां जी को दर्शन देने पधारे। पूज्यप्रवर कुर्सी पर आसीन हुए। साध्वी बिदामां जी की सुख-पृच्छा की। वापिस पधारने लगे, उस वक्त साध्वी बिदामां जी ने निवेदन करते हुए कहा — 'गुरुदेव, मेरा भी वो दिन धन्य होगा, जिस दिन मैं भी इसी प्रकार संथारे करके आप श्री के चरणों में नैया पार करूं।' तत्काल गुरुदेव ने फरमाया — 'तुम अभी तपो-तपो, जल्दी मत करो।' समीपस्थ मुनि पानमल जी खड़े थे, उन्होंने फरमाया — 'बिदामां जी, आपको सौ वर्षों तक तो जीना ही होगा, क्योंकि गुरुदेव की वचनसिद्धि है।' उस समय आपकी 94 वर्ष की आयु थी। गुरुदेव की वचनसिद्धि ने ही आपको उम्र के 107वें वर्ष की यात्रा करवा दी।
स्वाध्याय ही औषध
साध्वी बिदामां जी सरेवड़ी जैसे छोटे से गांव में जन्मी थी। उस जमाने में लड़कियों को शिक्षा नहीं दिलाई जाती थी। अनपढ़ होते हुए भी साध्वी बिदामां जी की स्मरण-शक्ति बेजोड़ थी। पढ़ने की ललक हर समय रहती थी। दीक्षित होने के पश्चात साध्वी बख्तावर जी के ग्रुप में रहती हुई, उनके द्वारा अक्षर-ज्ञान प्राप्त कर आगे बढ़ती गई। रामायण जैसे व्याख्यान को कंठस्थ कर लिया और रात्रिकालीन प्रवचन कर देती थी। आप जब मेवाड़ के गांवों में व्याख्यान फरमाती, उस समय मेवाड़ी श्रावक बोल उठते — 'देखो रे, देखो रोडी में (कचरे का ढेर) में रतन पैदा हुआ है।' आप तीव्र बुद्धि वाली साध्वी थी। दैनंदिन कार्यों से निवृत्त होते ही आप पुस्तकों का पठन करती रहती थी। उम्र के 102 वर्ष तक स्वयंपाठी थी, तत्पश्चात साध्वियों द्वारा सुनाया जाता रहा। उन्होंने अपने स्वाध्याय को ही अपने जीवन की औषध बना रखा था। उन्हें यावज्जीवन किसी भी प्रकार की दवा लेने का त्याग था। जब कभी भी जी घबराता, बस एक ही काम बोलते — 'मुझे कुछ सुना दो, मेरा जीसोरा हो जाएगा।' जब साध्वियां चौबीसी, आराधना आदि सुनातीं, कितनी भी वेदना होती, स्वाध्याय सुनते ही उनकी वेदना शांत हो जाती थी। देवलोकगमन के पूर्व 10-12 दिनों तक उनके अत्यधिक वेदनीय कर्म उदय में आए। चार-पांच दिन तो ऐसे लग रहा था जैसे वेदनीय और आयुष्य, दोनों में संघर्ष चल रहा है।
समता की मूरत
अनंत वेदना के अंदर भी समता का अजस्र स्रोत बह रहा था। उनके मुंह से कभी 'उफ' नहीं निकलता। वेदना में भी चिंतन बहुत सकारात्मक रहता था। कई बार फरमाते — 'क्या पता इस समय ही सारे वेदनीय कर्म कैसे उदय में आ गए। उम्र के इतने लंबे पड़ाव में भी ऐसी वेदना कभी नहीं आई। इस वृद्धावस्था में एक साथ तीव्र वेदनीय कर्म उदय में किस जन्म के आए हैं। खैर! भोगना तो है ही, हंसते-हंसते भोगूंगी।'
सामंजस्य की कला
सुदीर्घजीवी शासनश्री साध्वी बिदामां जी में सामंजस्य की कला बेजोड़ थी। कैसे भी स्वभाव की साध्वी ग्रुप में आ जाए, उसे परोटने का अच्छा तरीका था। उन्हें दीक्षा के तीन महीनों पश्चात गुरुदेव श्री तुलसी ने साध्वी बख्तावर (डालगणी से दीक्षित) के साथ भेज दिया गया। साध्वी बिदामां जी एवं स्व. साध्वी भीखाजी (काकी-जेठूती) 16 वर्षों तक उनके साथ रही। तत्पश्चात साध्वी बख्तावर जी का देहावसान हो गया।
गणाधिपति गुरुदेव ने साध्वी आनंदकुमारी जी ‘मोमासर’ को साध्वी बख्तावर जी की चारों साध्वियों के लिए नया ग्रुप लीडर बना दिया। लगभग 25 वर्षों तक उनके ग्रुप में रहीं। जब उनका देहावसान हो गया, मेरा ग्रुप बना दिया। 6 वर्षों से उसी ग्रुप में थी। इस प्रकार वे 84 वर्षों के संयम पर्याय में एक ही ग्रुप में रही। मेरे ग्रुप में 35 वर्ष हो गए। साध्वी बिदामां जी और मेरा 42 वर्षों से सहवास रहा है — तीन-तीन आचार्यों द्वारा दीक्षित, तीन अग्रगण्यों का साथ। कई बार ग्रुप में अन्य स्वभाव वाली साध्वी आ ही जाती, तो साध्वी बिदामां जी उसका बहुत अच्छा ध्यान रखतीं और उस साध्वी को बहुत अपनत्व भाव देती थी। प्रसंगवश गणाधिपति गुरुदेव ने एक बार शासनमाता से फरमाया — 'देखो, साध्वी बिदामां जी बहुत सामंजस्य बैठाने वाली साध्वी है। ऐसी एक-एक साध्वी हर ग्रुप में हो जाए, तो हमारी आधी समस्या का समाधान हो जाएगा।'
गुरुकृपा
आचार्य महाप्रज्ञ जी द्वारा भी समय-समय पर उन पर कृपामृत बरसाया जाता रहा। आचार्य श्री महाश्रमण जी की जो अनुकंपा रही, उसको शब्दों में बयां करना मुश्किल है। साध्वी बिदामां जी जब 104वें वर्ष से गुजर रही थी, उस समय कालू में पूज्यप्रवर का पदार्पण हुआ। दो दिनों के प्रवास में तीन समय घंटों-घंटों सेवा करवाई। अमृतपत्र, अमृतग्रास बकसाते वक्त पूज्यप्रवर ने फरमाया — 'देखो, ग्रास लेने वाला बैठा है, देने वाला खड़ा है।' अगले दिन 16 कि.मी. का विहार था। साध्वी प्रमुखा श्री जी एवं हम सब साध्वियों ने पूज्यप्रवर से निवेदन किया — 'भगवन, कल प्रातः हम साध्वी बिदामां जी को पंचायत भवन में दर्शनार्थ ले आएंगे, वहां आप श्री के दर्शन करवा देंगे।' 23 मई 2022 का वो समय अत्यधिक उष्णता लिए हुए था। सूर्य का तापमान 40 डिग्री के आसपास चल रहा था।
हमने सोचा, पूज्यप्रवर को इतने लंबे विहार में देर न हो। किन्तु जब हम लोगों ने सतियों के ठिकाने न पधारने का निवेदन किया, तत्काल दो क्षण चिंतन कर पूज्यप्रवर ने फरमाया — 'देखो, ये साध्वियां कितनी सेवा कर रही है, अब इतनी सेवा हम ही करेंगे। इनको नहीं लाना, हम ही यहां आएंगे।' सुनने वाले अचंभित थे। प्रातः विहार के समय जब पधारे, तब भी लगभग आधे घंटे से भी अधिक निश्चिंतता पूर्वक सेवा करवाई। मंगलपाठ व पत्र, दोनों चीज पूज्यप्रवर ने पास खड़े होकर सुनाई। आचार्य महाश्रमण जी का अनहद कृपाभाव रहा है। समय-समय पर आप प्रवचन में साध्वी बिदामां जी का नामोल्लेख करवाते रहे हैं, संभावना यही है कि आगे भी करवाते रहेंगे।
शासनमाता की कृपा-दृष्टि भी बहुत रही है। साध्वी बिदामां जी को साहित्य-पठन की अत्यधिक रुचि थी। जब भी हम गुरुकुलवास में होते, उस वक्त उनके लिए शासनमाता पत्र, पत्रिकाएं, विज्ञप्ति आदि अपने पास उन्हें देने के लिए विशेष रूप से अलग रखते थे। ‘मेरा जीवन, मेरा दर्शन’ पुस्तकें शासनमाता से लेकर पढ़ती। जब वे सम्पन्न हो जातीं, आगे की मांगती, तब शासनमाता फरमाते कि — 'बिदामां जी महासतियां जी, जब और छपेगी, तब आपको देंगे।' ये थी उनके ऊपर गुरुओं का अनहद कृपाभाव।
साध्वी बिदामां जी की जीवन-गाथा कितनी भी गाएं, फिर भी वो अधूरी ही रहेगी। वो एक निडर, सरलमना, व्यवहार-कुशल, आचारनिष्ठ, आज्ञानिष्ठ, मर्यादानिष्ठ साध्वी थी। साध्वी श्री बिदामां तेरापंथ धर्मसंघ में नव-इतिहास रचकर अमर हो गई।
उनका जीवन निर्लिप्त, निस्वार्थ, निस्पृह था। वाणी की मधुरता, हृदय-कोमलता व करुणा से ओतप्रोत था। उन्होंने हर क्षण जागरूक जीवन जिया। प्रतिक्रमण, प्रतिलेखन, प्रत्याख्यान — इन सब कार्यों में पूर्ण सजगता रखती थी। हर समय माला हाथ में रहती। हजारों-हजारों लोग उनके दर्शनार्थ आते रहते। कई बार एक दिन में पांच-सात बार भी लोगों को मंगलपाठ सुनाना पड़े, तो भी वो अघाति नहीं थी। उनकी सोच निराली थी, चिंतन गंभीर था। ऐसी दिव्य मूर्ति, पुण्यात्मा को सादर श्रद्धार्पण।