परिग्रह बन सकता है भय का कारण : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कोबा, गांधीनगर। 18 अगस्त,, 2025

परिग्रह बन सकता है भय का कारण : आचार्यश्री महाश्रमण

तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आयारो’ आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि परिग्रह परिग्रही व्यक्ति के लिए महान भय का कारण बनता है। जहाँ परिग्रह है, वहाँ भय भी जन्म ले सकता है। धन की उपलब्धि के बाद यह भय मन में आ सकता है कि कहीं धन छीना न जाए। इस प्रकार परिग्रह के साथ मूर्च्छा और भय दोनों का संबंध जुड़ जाता है। आचार्यश्री ने फरमाया कि परिग्रह तीन प्रकार का होता है—शरीर, कर्म और पदार्थ। शरीर के प्रति मोह हो तो शरीर भी परिग्रह का रूप ले लेता है। कर्म से आसक्ति परिग्रह कहलाती है। पदार्थों के प्रति मोह भी परिग्रह है। जब तक परिग्रह, मोह और आसक्ति का त्याग नहीं होगा, तब तक आत्मा की प्रगति मोक्ष की दिशा में नहीं हो सकती। साधु यदि जप और ध्यान करता है, तो वह उत्तम है; लेकिन उससे भी बड़ा साधन है—परिग्रह और मोह का त्याग। इसी कारण अपरिग्रह का नियम साधु के जीवन की महान साधना है।
आयारो में कहा गया है कि परिग्रह और मूर्च्छा अनेक जीवों के लिए महान भय का कारण बन जाते हैं। साधु यदि रुपये-पैसे, भौतिकता और शरीर के मोह से बचकर रहे, तो वही उसकी सबसे बड़ी साधना है। भौतिकता संसार और जन्म-मरण के बंधन की ओर ले जाती है, जबकि आध्यात्मिकता मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करती है। दीक्षा लेकर संयम, तप और अध्यात्म का जीवन जीने वाला साधु राजा और देवताओं के लिए भी वंदनीय बन जाता है। परिग्रह त्यागने वाला वंदनीयता को प्राप्त करता है, जबकि परिग्रह से आसक्त रहने वाला वंदनीयता से वंचित रह जाता है। इसलिए साधु के लिए परिग्रह का त्याग अनिवार्य है। मंगल प्रवचन के उपरांत गुरुदेव ने तेरापंथ प्रबोध आख्यानमाला के क्रम को आगे बढ़ाया। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन व आख्यान के उपरान्त साध्वीवर्या साध्वी श्री सम्बुद्धयशाजी ने भी समुपस्थित जनता को उद्बोधित किया। अहमदाबाद के पूर्व मेयर गौतमभाई शाह ने आचार्यश्री के दर्शन कर मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया।