व्यक्ति की चाह बनाती है उसे गतिमय

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किलपॉक, चेन्नई।

व्यक्ति की चाह बनाती है उसे गतिमय

व्यक्ति स्वयं का जीवन जीता है। वह परिवार और समाज के साथ भी जीता है। इस जीने के साथ उसके भीतर कुछ करने और कुछ बनने की भावना का विकास होता है। यही विकास उसे ऊँचाई प्रदान करता है। व्यक्ति की चाह ही उसे गतिमय बनाती है। ये विचार मुनि मोहजीत कुमार ने भिक्षु निलयम के महाश्रमणम सभागार में आयोजित थिंक डिफरेंट वर्कशॉप में प्रकट किए। ‘थिंक डिफरेंट वर्कशॉप’ के तृतीय चरण में 'मैं कर्ता हूँ या कृत हूँ' विषय को प्रतिपादित करते हुए मुनि जयेश कुमारजी ने कहा कि मनुष्य स्वयं को कृत मानता है, परंतु उसने अपने कर्तृत्व से ऐसे कार्य किए, जिन्होंने उसे कर्ता की भूमिका में खड़ा कर दिया और संसार का सबसे महत्वपूर्ण प्राणी बना दिया।
उसने अपनी मेधा से अस्तित्वहीन वस्तु में भी प्राण डाल दिए और निर्जीव में भी सजीव का आभास कर लिया। किंतु आज व्यक्ति का निर्माण ही उसके ध्वंस का कारण बन रहा है और उसके कर्तृत्व के लिए चुनौती बन गया है। इसलिए आवश्यक है कि मानव अपने अस्तित्व की पहचान कर आत्मशक्ति को ऐसी दिशा में नियोजित करे, जो उसे निरंतर अपने लक्ष्य की ओर गतिशील बनाए। कार्यक्रम के दूसरे चरण में बैंगलुरु से पधारे दीक्षार्थी भाई प्रीत कोठारी के अभिनंदन समारोह का आगाज़ हुआ। कार्यक्रम में परिवारजनों की ओर से तथा महिला मंडल, किलपॉक की ओर से अभिनंदन स्वर प्रकट किए गए। किलपॉक की सभी सामाजिक इकाइयों की ओर से दीक्षार्थी का स्वागत किया गया। इस अवसर पर मुनि मोहजीत कुमारजी, मुनि भव्य कुमारजी और मुनि जयेश कुमारजी ने गुरु इंगित की आराधना और साधना के लक्ष्य के साथ समर्पित रहने की प्रेरणा प्रदान की।