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शोध, शिक्षा और चमत्कार : ‘सुपर ब्रेन’ क्षमता का प्रदर्शन
आईआईटी मंडी में नए विद्यार्थियों के स्वागत कार्यक्रम में विशेष आकर्षण रहा। अणुव्रत न्यास के प्रबंध न्यासी के सी. जैन को नवागत प्रवेश पाने वाले विद्यार्थियों हेतु मुख्य वक्ता के रूप में संबोधन के लिए आमंत्रित किया गया। इस अवसर पर वे अपने दो रिसर्च एसोसिएट्स के साथ पहुँचे। साथ ही, सूरत से रेनू नाहटा और उनके दो छात्र भी आए, जिन्होंने प्रेक्षा ध्यान के प्रयोगों के माध्यम से आँखें बंद करके वस्तुओं की पहचान, पेंटिंग और पज़ल हल करने की विशिष्ट क्षमता अर्जित की है। कार्यक्रम के दौरान इन छात्रों ने लाइव डेमोंस्ट्रेशन प्रस्तुत किया, जिसे देखकर आईआईटी मंडी के विद्यार्थी चकित रह गए।
दिन में आईआईटी मंडी के निदेशक प्रो. लक्ष्मीधर बेहरा और उनकी शोध टीम के साथ लगभग डेढ़ घंटे की विस्तृत बैठक हुई। इसमें दो संयुक्त शोध परियोजनाओं पर चर्चा हुई— पहली, मानसिक रूप से कमजोर बच्चों पर प्रेक्षा ध्यान के लाभ; दूसरी, विद्यालयों में संचालित सुपर ब्रेन कार्यक्रम पर अध्ययन। संस्थान ने इन विषयों पर सहयोग के लिए सिद्धांततः सहमति दी। प्रो. बेहरा, जो वैज्ञानिक होने के साथ-साथ आध्यात्मिक दृष्टिकोण भी रखते हैं, ने इस तकनीक के विस्तार की संभावना पर विशेष ध्यान दिया। उन्होंने सुझाव दिया कि यदि बिना किसी इंद्रिय का उपयोग किए दूरस्थ वस्तुओं की पहचान संभव हो सके, तो यह एक क्रांतिकारी उपलब्धि होगी।
रेणु नाहटा ने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए आश्वस्त किया कि एक वर्ष के भीतर इसका प्रदर्शन संभव है। अणुव्रत न्यास की ओर से घोषणा की गई कि जो भी विद्यार्थी इस क्षमता को विकसित कर सकेगा, उसे ₹1,00,000 का पुरस्कार दिया जाएगा। विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए के. सी. जैन ने कहा कि उनका लक्ष्य केवल “बड़ा पैकेज पाने” तक सीमित न रहे, बल्कि “बड़ा पैकेज देने” की दिशा में होना चाहिए। उनके दृष्टिकोण में यह परिवर्तन उनकी सफलता के नए आयाम तय कर सकता है।
उन्होंने ज़ोर दिया कि सफलता केवल बौद्धिक या इंद्रिय विकास तक सीमित नहीं है, बल्कि इंद्रियों और बुद्धि से परे विकास की असीम संभावनाएँ हैं। तभी शिक्षा का उद्देश्य पूर्ण हो पाता है जब हम इन संभावनाओं पर कार्य करें। छोटे-छोटे बच्चों द्वारा आँखें बंद कर प्रस्तुत किए गए प्रयोग इसका एक छोटा सा उदाहरण मात्र है। कार्यक्रम ने छात्रों में जिज्ञासा और उत्साह दोनों को जन्म दिया, साथ ही अनुसंधान और मानव क्षमताओं की नई संभावनाओं पर चर्चा के नए रास्ते खोले।