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संघ प्रभावक विदेश प्रवास में हुयी धर्माराधना
आचार्यश्री महाश्रमण जी की विदुषी शिष्या डॉ. समणी निर्देशिका ज्योतिप्रज्ञा जी व डॉ. समणी मानसप्रज्ञा जी का बैंकाक में छ: दिनों का प्रवास अत्यधिक संघ प्रभावक रहा। सकल जैन समाज में तेरापंथ की प्रभावना हुई। प्रथम कार्यक्रम तेरापंथ समाज के बीच हुआ। बैंकाक में तेरापंथ के करीब तीस परिवार हैं। जैन समाज के लगभग 400 परिवार हैं। प्रथम कार्यक्रम में समणीजी ने तेरापंथी भाई-बहनों को विशेष रूप से तेरापंथ के संस्कारों को जागृत करने व गुरु श्रद्धा पर सुदृढ़ रहने की प्रेरणा दी। द्वितीय दिन विशेष रूप से लोगस्स के रहस्यों को चित्रों के माध्यम से सरल भाषा में समझाया। डा. समणी ज्योतिप्रज्ञा ने कहा लोगस्स की स्तुति से सम्यक्त्व पुष्ट होता है। समणी जी ने लोगस्स के विभिन्न बिन्दुओं को सविस्तार समझाया। कार्यक्रम में सकल जैन समाज की उपस्थिति होने से लोगों के मन में तेरापंथ के प्रति आकर्षण का भाव पैदा हुआ। समणी मानसप्रज्ञा जी ने कहा सत्संगति से ऊर्ध्वारोहण होता है।
तृतीय दिन भगवान महावीर की आरती से कार्यकम प्रारंभ हुआ। समणी मानसप्रज्ञा जी ने क्षणिक इंद्रिय सुख, सापेक्ष सुख को छोड़ने की तथा शाश्वत, अतीन्द्रिय, निरपेक्ष सुख की चर्चा की। डा. समणी ज्योतिप्रज्ञा जी ने जैन धर्म की नींव : नव तत्वों को सविस्तार समझाया। आपने कहा- जीव का चिंतन अजीव की ओर है। इसलिए उसे मोक्ष पहुंचने में बहुत लंबा समय लगता है। आपने कहा- हमें नौ तत्वों को समझना है और संवर व निर्जरा पर ध्यान केन्द्रित करना है।
15 अगस्त का कार्यक्रम संस्कृत स्टडीज सेंटर शिल्पकार्न यूनिवसिर्टी बैंकाक में समायोजित था। डा. समणी ज्योतिप्रज्ञा जी ने जैन साधुओं की कठोर जीवन चर्या, भगवान महावीर के त्याग व संयम को बताते हुए विशेष रूप से कर्म सिद्धान्त को विश्लेषित किया। कार्यक्रम में यूनिवसिर्टी के संस्कृत विभागाध्यक्ष पद्यश्री से सम्मानित चीरा पाथ विशेष रूप से उपस्थित थे। जिज्ञासा-समाधान का क्रम काफी लाभप्रद रहा। रात्रिकालीन कार्यक्रम में समणी ज्योतिप्रज्ञाजी ने श्वास प्रेक्षा पर चर्चा की। आपने श्वास क्या, श्वास का आलंबन क्यों? श्वास के शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक लाभ, श्वास से संस्कार व आदतों में परिवर्तन आदि महत्वपूर्ण मुद्दों पर जानकारी दी। कार्यक्रम समाप्ति से पूर्व श्रोताओं ने श्वास प्रेक्षा का प्रेक्टिकल प्रयोग भी किया।
अगले सायंकाल पैंसठिया छंद अनुष्ठान किया गया। सफेद वस्त्रों में भाई एवं लाल वस्त्रों में बहनें अनुष्ठान कर रहे थे। लगभग 50 युगल तथा 100 अन्य अनुष्ठान कर्ता, कुल 200 की उपस्थिति रही। डा. समणी ज्योतिप्रज्ञाजी ने – पैंसठिया छंद की महत्ता के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी। सभी ने एक घंटे तक पूरी एकाग्रता से मधुर संगान के साथ पैंसठिया मंत्र का अनुष्ठान किया। अगले दिन जैन समाज की प्रार्थना पर उपसर्गहर स्तोत्र का अनुष्ठान करवाया गया। ज्ञानशाला के नन्हें-मुन्नों की प्रस्तुति भी रही। राजेन्द्र खिवेसरा, अजय, नीलम व कर्मठ कार्यकर्ता व बैंकाक यात्रा संयोजक पद्यश्री गेलड़ा ने अपने विचार रखते हुए समणीजी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की। स्थानकवासी समाज के निवेदन पर समणी जी का एक कार्यक्रम स्थानक में भी रहा। जिसमें समणी मानसप्रज्ञाजी ने धर्म को उत्कृष्ट मंगल बताते हुए अपनी बात रखी।
समणी ज्योतिप्रज्ञाजी ने ‘परमात्मा बनने की राह’ विषय पर अपने विचार रखे। समणी जी के सभी कार्यक्रम संभवनाथ मंदिर के विशाल हॉल में आयोजित थे। कार्यक्रम की सफलता में विशेष रूप से पद्यश्री गेलड़ा व शीतल जैन का विशेष योगदान रहा। इस अवसर पर अर्पिता बांठिया ने अठाई की तपस्या भी की।समणीजी की प्रेरणा से लगभग 35 भाई-बहनों ने ॐ भिक्षु के सवा लाख जप का संकल्प लिया।