
गुरुवाणी/ केन्द्र
व्रतों के पालन में रहे दृढ़ता : आचार्यश्री महाश्रमण
द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के ज्ञाता परम पूज्य युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा के क्रम को आगे बढ़ाते हुए त्रिपृष्ठ के भव तक का वर्णन किया। पूज्य प्रवर ने फरमाया कि एक उम्र के बाद अपने आपको संयम की साधना में नियोजित करना चाहिए। ‘व्रत चेतना दिवस’ पर प्रेरणा प्रदान करते हुए आचार्य प्रवर ने कहा कि व्रतों के प्रति हमारी चेतना रहे, पालन करने में दृढ़ता रहे। लिए हुए व्रतों को और अधिक पुष्ट करने का प्रयास रहे। साधु-साध्वियां पचहत्तर वर्ष के पश्चात् अपने आपको स्वाध्याय, जप, खाद्य संयम आदि में नियोजित करें।
मुख्यमुनि प्रवर ने संयम धर्म की व्याख्या करते हुए कहा कि संयम के नहीं होने पर चारों ओर अराजकता, आतंक और भय का माहौल छा जाता है। जैसे एक नदी द्वारा संयम रूपी अपने तटों की मर्यादा तोड़ने पर कई लोगों का अपकार हो सकता है। संयम एक ऐसा सुरक्षा कवच है जो हमें मृत्यु से बचाता है, हमारे जीवन की शक्ति को बढ़ाता है और हमें अपनी आत्मा की ओर जाने की प्रेरणा देता है। जो अपनी आत्मा का साक्षात्कार करना चाहते हैं, उन्हें संयम धर्म का अवलंबन लेना चाहिए।
साध्वीप्रमुखाश्री जी ने व्रत चेतना दिवस पर अपनी अभिव्यक्ति देते हुए कहा कि मनुष्य त्याग के महत्व को जानता है, परंतु उसमें प्रवृत्ति नहीं करता। व्रत के मूल्य को समझता है, फिर भी स्वीकार नहीं करता। अव्रत को जानते हुए भी उसे छोड़ नहीं पाता। इसका कारण है—मोह। इसी के कारण मनुष्य भवभ्रमण कर रहा है। इस भवभ्रमण को सीमित करने के लिए व्रत की चेतना को जगाना होगा। मुनि प्रिंसकुमारजी ने भगवान मल्लिनाथ के जीवन वृतांत का वर्णन किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।