
गुरुवाणी/ केन्द्र
दुर्लभ मनुष्य जीवन में ही कर सकते हैं धर्म का आचरण : आचार्यश्री महाश्रमण
अध्यात्म के हिमालय शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पर्वाधिराज पर्युषण के तृतीय दिवस अपनी पावन देशना में भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा के अंतर्गत मरीचि कुमार के भव का वर्णन करते हुए फरमाया कि आगम में मनुष्य जन्म को दुर्लभ बताया है। मनुष्य जन्म भी यदि सुकुल में हो और धार्मिक माहौल में हो तो वह ज्यादा लाभदायी होता है। नयसार की आत्मा को मनुष्य जन्म का अवसर भगवान ऋषभ के संसार पक्षीय परिवार में प्राप्त होता है और नयसार की आत्मा भरत के पुत्र रूप में जन्म लेती है। पुत्र का नाम मरीचि कुमार रखा गया। दादा — अध्यात्म जगत के उत्कृष्ट पुरुष अर्थात् तीर्थंकर और पिता — भौतिक जगत के उत्कृष्ट पुरुष अर्थात् चक्रवर्ती, ऐसा कुल मरीचि को प्राप्त हुआ। चतुर्दशी के संदर्भ में गुरुदेव द्वारा हाजरी का क्रम संपादित किया गया।
साध्वीवर्याजी ने दस धर्मों में आर्जव धर्म और मार्दव धर्म पर अपनी अभिव्यक्ति दी। आर्जव धर्म के दो आयाम हैं — भाव विशुद्धि और विसंवादन। तीन योग — मन, वचन व काय योगों की ऋजुता ही आर्जव है। यदि भाव अशुद्ध हों तो मन, वचन और काय योगों में वक्रता आ जाती है। इससे व्यक्ति माया करने लगता है। ऋजुता के लिए दूसरी चीज है, कथनी और करनी में समानता। आत्मा को सरल बनाने के लिए मार्दव को अपनाना होगा। मार्दव का तात्पर्य है — मद का निग्रह करना। आर्जव और मार्दव के ये दो पृष्ठ पढ़कर ही हम आत्मा की पोथी रूपी पुस्तक को पढ़ पाएँगे। मुख्यमुनि महावीर कुमारजी ने गीतिका के माध्यम से ऋजुता और मृदुता पर अपनी भावाभिव्यक्ति दी।
साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभाजी ने ‘सामायिक दिवस’ पर अपनी अभिव्यक्ति में कहा कि साधु की सामायिक और गृहस्थ की सामायिक में अंतर होता है। साधु की सामायिक यावज्जीवन के लिए है जबकि श्रावक की सामायिक एक मुहूर्त की होती है। सामायिक का अर्थ है — सावद्य योग को छोड़ना और निरवद्य योग को स्वीकार करना। सामायिक एक आध्यात्मिक अनुष्ठान है। सामायिक में अठारह पापों का प्रत्याख्यान किया जाता है, इसलिए हमें अठारह पापों की जानकारी होनी चाहिए। तभी सामायिक की सही साधना की जा सकती है। सामायिक में घर-गृहस्थी की चर्चा नहीं करनी चाहिए। सामायिक में आत्मा के बारे में ही चिंतन होना चाहिए। सामायिक दिवस पर साध्वी कमनीयप्रभाजी, साध्वी आर्षप्रभाजी व साध्वी काम्यप्रभाजी ने गीत की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।