अनुशासन व्यवस्था के सुंदर सृजनकार थे श्रीमद् जयाचार्य : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कोबा, गांधीनगर। 20 अगस्त, 2025

अनुशासन व्यवस्था के सुंदर सृजनकार थे श्रीमद् जयाचार्य : आचार्यश्री महाश्रमण

साधना के शिखर पुरुष भगवान महावीर के प्रतिनिधि, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में महान आध्यात्मिक पर्व, पर्युषण महापर्व का शुभारंभ हुआ। आचार्यश्री ने अपार जन समूह को पावन पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि परमाराध्य भगवान महावीर लोकोत्तम थे। मंगल पाठ में अर्हत्, सिद्ध, साधु और केवली प्रज्ञप्त धर्म को लोकोत्तम कहा गया है। अर्हत् लोकोत्तम होते हैं और प्रभु महावीर भी अर्हत् थे। वर्तमान जैन शासन भगवान महावीर से संबद्ध है। इस जम्बू द्वीप के भरत क्षेत्र की इस अवसर्पिणी के भगवान महावीर चौबीसवें और अंतिम तीर्थंकर हुए। भगवान महावीर के शासन में दिगंबर और श्वेतांबर दो परम्पराएं हैं। पर्युषण और दशलक्षण मोटा-मोटी आपस में कनेक्टेड हैं। आज से जैन श्वेतांबर तेरापंथ की परंपरा में पर्युषण पर्व प्रारंभ हो गया है। भगवती संवत्सरी से पूर्ववर्ती एक सप्ताह, और भगवती संवत्सरी को जोड़ देने पर अष्टान्हिक आराधना का यह कालमान होता है।
आज का दिन भाद्रव कृष्ण द्वादशी पर्युषण के प्रथम दिन के साथ-साथ परम पूज्य प्रज्ञापुरुष श्रीमज्जयाचार्य का महाप्रयाण दिवस भी है। जयपुर में उनका महाप्रयाण हुआ। श्रीमज्जयाचार्य विशिष्ट व्यक्तित्व के धनी थे। वे तत्त्ववेत्ता थे, उनका शास्त्रीय ज्ञान काफी निर्मल था। उनके उपलब्ध ग्रंथ झीणी चर्चा, भ्रम विध्वंसनम्, प्रश्नोत्तर तत्त्व बोध, भगवती जोड़ आदि विशिष्ट ग्रंथ हैं। ज्ञानवेत्ता के साथ-साथ वे अध्यात्मवेत्ता, अध्यात्म साधक भी थे। चौबीसी जैसे छोटे ग्रंथ में भी उन्होंने साधना, तेरापंथ की मान्यता, तत्त्वज्ञान, अमूर्तिपूजा आदि को सन्निहित किया है। आराधना भी सुंदर ग्रंथ है।
श्रीमज्जयाचार्य अनुशासन व्यवस्था के सुंदर सृजनकार और निर्माता थे। उनके आचार्यकाल में तेरापंथ में एक नया उन्मेष आया था। तेरापंथ की प्रथम शताब्दी की संपन्नता जयाचार्य के समय और दूसरी शताब्दी की संपन्नता आचार्य तुलसी के समय में हुई। श्रीमज्जयाचार्य और आचार्य तुलसी में भी समानताएं थीं। दोनों ने राजस्थानी भाषा में आख्यानों की रचना की। दोनों ने ही संघीय व्यवस्थाओं में कुछ परिवर्तन किए थे। जयाचार्य एक महान साहित्यकार थे। राजस्थानी भाषा में संभवतः पिछले पांच सौ वर्षों में इतनी रचनाएं किसी जैनाचार्य ने नहीं की हैं।
खाद्य संयम दिवस के अवसर पर पूज्य प्रवर ने फरमाया कि जितना संभव हो सके तपस्या करें, खाने में संयम रखने का प्रयास करें। अनेक रूपों में खाद्य संयम किया जा सकता है। जिसके प्रति ज्यादा आकर्षण हो, उसे छोड़ने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने भी साधु-साध्वियों को चातुर्मास काल में नवकारसी की प्रेरणा प्रदान की और कहा कि व्यक्ति को खाद्य संयम की दिशा में भी आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए।
इससे पूर्व मुख्य मुनिश्री महावीर कुमारजी ने गीतिका के माध्यम से जयाचार्य के प्रति अपनी श्रद्धा की अभिव्यक्ति दी। पर्युषण के संदर्भ में मुख्यमुनि प्रवर ने कहा कि मनुष्य विवेक संपन्न प्राणी है, अपने हित-अहित को भली प्रकार समझता है। जब व्यक्ति आत्मस्थ हो जाता है तो वह सुख और आनंद की स्थिति में पहुँच जाता है, किन्तु आत्मा से दूर होने पर दुखों का क्रम प्रारंभ हो जाता है। पर्युषण पर्व सभी में चेतना जागृत करने वाला पर्व है, जो हमें बाहरी जगत से भीतरी जगत की ओर ले जाने वाला पर्व है, जो आध्यात्मिक साधना की प्रेरणा देता है।
साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभाजी ने खाद्य संयम दिवस पर अपनी अभिव्यक्ति देते हुए कहा कि आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने चिंतन प्रदान किया कि सामायिक दिवस के स्थान पर खाद्य संयम दिवस से पर्युषण का प्रारंभ करना चाहिए, क्योंकि खाद्य संयम हमारी साधना की पृष्ठभूमि है। खाद्य संयम होने की स्थिति में ही हम स्वाध्याय, ध्यान, मौन कर सकते हैं। गहरा चिंतन कर सकते हैं और नए चिंतन की स्फुरणा भी कर सकते हैं, इसीलिए खाद्य संयम का महत्त्व है। साध्वीवर्या श्री संबुद्धयशाजी ने प्रज्ञापुरुष जयाचार्य पर अपनी विचाराभिव्यक्ति देते हुए कहा कि परमपूज्य जयाचार्य के जीवन में तीन बातों का योग था - आशीर्वाद, दूरदृष्टि और शक्ति संपन्नता। इसी के संयोग से वे एक सफल आचार्य बने। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।