
गुरुवाणी/ केन्द्र
बंधन और मुक्ति हमारे ही भीतर है : आचार्यश्री महाश्रमण
अध्यात्म जगत के महासूर्य युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आयारो’ आगम के माध्यम से अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि यह भावों का जगत है। आसक्ति व मोह के कारण व्यक्ति के भीतर अनेक भाव उभरते हैं। भावों से व्यक्ति अधोगति को प्राप्त हो सकता है तो भावों से व्यक्ति मोक्ष की दिशा में भी प्रस्थान कर सकता है। भावों से बंधन और भावों से व्यक्ति मुक्ति की ओर अग्रसर हो सकता है। आसक्ति और मोह सघन होते हैं, हिंसा-झूठ का प्रयोग होता है, 18 पापों का उपभोग होता है तो व्यक्ति अधोगति की ओर चला जाता है। 18 पापों का सेवन है तो आत्मा बंधन में जाती है। 18 पापों का विरमण है तो आत्मा मोक्ष की ओर अग्रसर होती है।
आसक्ति, मोह, पाप का सेवन—यह सब बंधन का कार्य है। संवर और निर्जरा की साधना हमें मोक्ष की ओर आगे बढ़ाने वाली है। एक मिथ्यात्वी जीव भी तपस्या करता है तो उसको भी थोड़ा कुछ लाभ मिलता है। अभव्य मिथ्यात्वी कितनी भी तपस्या कर ले, मोक्ष में कभी जा नहीं पाएगा। पुण्य का बंध हो सकता है, नव ग्रैवेयक तक चला जाए, परन्तु मोक्ष में कभी भी नहीं जा सकता। आश्रव हमें बंधन की ओर तथा संवर तथा निर्जरा हमें मोक्ष की ओर ले जाने वाले हैं। इसलिए हिंसा, झूठ, चोरी आदि पापों से, मोह, आसक्ति से बचने का प्रयास रखें।
पर्युषण के दिनों में धर्म-ध्यान, तपस्या, सामायिक आदि में ज्यादा समय लगाना चाहिए, मन लगाना चाहिए। शाम को प्रतिक्रमण करना चाहिए। किशोर, बच्चे आदि को भी पर्युषण में कम से कम एक सामायिक तो करनी ही चाहिए। संवत्सरी के दिन उपवास का प्रयास करना चाहिए। शास्त्र में कहा गया है कि बंधन-मुक्ति तुम्हारे भीतर ही है। आसक्ति को कम करें, मोह, बंधन, कषायों को छोड़ेंगे तो हमेशा के लिए मुक्ति मिल जाएगी। मंगल प्रवचन के उपरान्त गुरुदेव ने तेरापंथ प्रबोध आख्यानमाला के क्रम को आगे बढ़ाया। मुनि राजकुमारजी ने गीत के माध्यम से तपस्या की प्रेरणा दी एवं मुनि मदन कुमारजी ने तपस्या की जानकारी दी। महाप्रज्ञ स्कूल-जगराओ के विद्यार्थियों ने आचार्यश्री के समक्ष गीत की प्रस्तुति दी। आचार्यश्री ने विद्यार्थियों को सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति की प्रेरणा प्रदान की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने लिया।