
स्वाध्याय
संबोधि
२७. तनुतमक्रोध-मान-माया-लोभो जितेन्द्रियः।
प्रशान्तचित्तो दान्तात्मा, पद्मलेश्यो भवेत् पुमान्॥
जिसके क्रोध, मान, माया और लोभ बहुत अल्प हैं, जो जितेन्द्रिय है, जिसका मन प्रशांत है और जिसने आत्मा का दमन किया है, वह व्यक्ति पद्मलेश्या वाला होता है।
२८. आर्त्तरौद्रे वर्जयित्वा, धर्म्यशुक्ले च साधयेत्।
उपशान्तः सदा गुप्तः, शुक्ललेश्यो भवेत् पुमान्॥
जो आर्त्त और रौद्रध्यान का वर्जन करता है, जो धर्म और शुक्लध्यान की साधना करता है, जो उपशांत है और जो निरंतर मन, वचन और काया से गुप्त है, वह व्यक्ति शुक्ललेश्या वाला होता है।
२९. लेश्याभिरप्रशस्ताभिर्मुमुक्षो! दूरतो व्रज।
प्रशस्तासु च लेश्यासु, मानसं स्थिरतां नय॥
हे मुमुक्षु ! तू अप्रशस्त लेश्याओं से दूर रह और प्रशस्त लेश्याओं में मन को स्थिर बना।
लेश्या जैन पारिभाषिक शब्द है। उसका संबंध मानसिक विचारों या भावों से है। यह पौद्गलिक है। मन, शरीर और इन्द्रियां पौद्गलिक हैं। मनुष्य बाहर से पुद्गलों को ग्रहण करता है और तदनुरूप उसकी स्थिति बन जाती है। आज की भाषा में इसे 'ओरा' या 'आभा मंडल' कहा जाता है। इस पर बहुत अनुसंधान हुआ है। इसके फोटो लिए गए हैं। जीवित और मृत का निर्णय इसी आधार पर किया जा सकता है। योग-सिद्ध गुरु के लिए आवश्यक है कि वह 'ओरा' का विशेषज्ञ हो। शिष्य की परीक्षा 'ओरा' देखकर करें। वह शिष्य पर दृष्टि डालकर प्रकाश को देखता है और निर्णय लेता है। 'ओरा' हमारी आंतरिक स्थिति का प्रतिबिंब है। आप अपने को कितना ही छिपाएं, किन्तु आभामंडल के विशेषज्ञ व्यक्ति से गुप्त नहीं रह सकते। आपके विचारों या भावों का प्रतिनिधित्व शरीर से निकलने वाली आभा प्रतिक्षण कर रही है। वह रंगों के माध्यम से अभिव्यक्त होती है। हम महापुरुषों के सिर के पीछे आभा-वलय देखते हैं। वह और कुछ नहीं, मन की पूर्ण शांत स्थिति में निर्मित 'ओरा' आभा मंडल है।
शरीर से निकलने वाले सूक्ष्म प्रकाश-किरणों का 'अंडाकार' आभा मंडल 'ओरा' है। इसे साइकिक एटमोसफियर, मेग्नेटिक एटमोसफियर भी कहते हैं। यह शरीर से दो-तीन फुट की दूरी तक रहता है। मानस परिवेश ६ से १० फुट तक रहता है। यह शरीर के मध्य में बहुत गहरा और आसपास हल्का होता है। जिनके आचार-विचार में स्थायित्व आ जाता है उनका 'ओरा' स्थायी बन जाता है, अन्यया वह प्रतिक्षण भावों के साथ बदलता रहता है। ओरा के रंग तथा छाया आश्चर्यजनक व रुचिकर होते हैं, स्थूल शरीर की भांति मेंटल-मानसिक शरीर भी बड़ा इंटरेस्टिंग है। ओरा को समुद्र की तरह समझा जा सकता है। कभी शांत और कभी भयंकर अशांत।