सुयोग्य उत्तराधिकारी का गरिमापूर्ण चिंतन है 'विकास महोत्सव' : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कोबा, गांधीनगर। 01 सितम्बर, 2025

सुयोग्य उत्तराधिकारी का गरिमापूर्ण चिंतन है 'विकास महोत्सव' : आचार्यश्री महाश्रमण

भाद्रव शुक्ला नवमी का दिन। जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्म संघ में यह दिवस ‘विकास महोत्सव’ के रूप में प्रतिष्ठित है। अहमदाबाद के पास कोबा में स्थित प्रेक्षा विश्व भारती के वीर भिक्षु समवसरण में चतुर्विध धर्म संघ को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए तेरापंथ धर्म संघ के एकादशमाधिशास्ता युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने कहा कि हमारे यहां दो महोत्सव चल रहे हैं। शेष काल में वर्धमान महोत्सव और चातुर्मास काल में विकास महोत्सव का आयोजन होता है। दोनों में काफी समानता है। विकास महोत्सव चातुर्मास काल में आता है तो बहिर्विहारी साधु-साध्वियां, समणियां इसमें सम्मिलित नहीं हो सकें, तो वर्धमान महोत्सव, जो मर्यादा महोत्सव के थोड़ा पहले आयोजित होता है, उसमें वे बहिर्विहारी साधु-साध्वियां, समणियां सम्मिलित होने का अवसर प्राप्त करते हैं।
विकास महोत्सव एक तिथि से जुड़ा हुआ है। विकास महोत्सव की देन में गुरुदेव तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का योगदान है। एक आचार्य अपने आचार्य पद को छोड़ देते हैं, यह एक विशेष बात है। हमारी परंपरा में सामान्यतः आचार्य पद जीवन भर के लिए रहता है। ऐसी स्थिति में आचार्यश्री तुलसी ने आचार्य पद का विसर्जन किया, उसमें संभावना की जा सकती है कि आचार्यश्री तुलसी ने संघ हित देखा होगा, यद्यपि और भी कारण हो सकते हैं।
आचार्यश्री तुलसी का हमारी परंपरा में आज तक के इतिहास में सर्वाधिक आचार्य काल रहा है। उन्होंने लगभग 80 वर्ष की अवस्था में आचार्य पद का विसर्जन किया और युवाचार्य महाप्रज्ञजी को आचार्य के रूप में प्रतिष्ठित किया। विकास महोत्सव की स्थापना की पृष्ठभूमि में त्याग और विसर्जन है। पद विसर्जन के पश्चात् गुरुदेव का यह कथन कि अब मेरा पट्टोत्सव नहीं मनाया जाए, यह मेरी दृष्टि में एक अच्छा प्रशंसनीय चिंतन था। ऐसा चिंतन, परंपरा को अच्छी रखने की विचारशीलता का द्योतक था। इस चिंतन की मैं विनयपूर्ण अनुमोदना करता हूं। दूसरी ओर आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की यह बात कि पट्टोत्सव भले न मने, परन्तु जीवन काल में आचार्य पद छोड़ने जैसा जो बड़ा कार्य हुआ है, उसकी स्मृति में “विकास महोत्सव” का आयोजन हो — यह भी एक सुयोग्य उत्तराधिकारी का गरिमापूर्ण चिंतन है। इन दो विचारों से विकास महोत्सव का जन्म हुआ है। पूज्य गुरुदेव द्वारा आचार्यश्री तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के संयुक्त हस्ताक्षरों से युक्त विकास महोत्सव के आधार पत्र का वाचन किया गया।
किसी भी संगठन के विकास के लिए तटस्थ समीक्षा आवश्यक होती है। उजले पक्ष के साथ-साथ अंधेरे पक्ष को भी देखें और जहाँ कमजोरियां नजर आती हैं, उन्हें हटाएं, दूर करें और उनका परिष्कार करें। उनके उपायों पर चिंतन करके अच्छाई का विकास करने का प्रयास करना चाहिए।
हमारे धर्म संघ के आद्य आचार्य का यह तीन सौवां जन्म शताब्दी वर्ष चल रहा है। आज हम विकास महोत्सव मना रहे हैं, आगे ‘योगक्षेम वर्ष’ का भी कुछ हिस्सा इसी आचार्य भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष में आ सकेगा। आचार्यश्री तुलसी के समय योगक्षेम वर्ष लाडनूं में आयोजित हुआ और आगामी योगक्षेम वर्ष भी लाडनूं में जैन विश्व भारती में ही पुनः आयोजित करने का निर्णय किया है। उसके लिए हमें आगे बढ़ना है और मर्यादा महोत्सव छोटी खाटू में करने के पश्चात् 06 फरवरी 2026 को जैन विश्व भारती में यथासंभव प्रवेश करने का निर्णय किया हुआ है। इस योगक्षेम वर्ष के आयोजन हेतु साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी का अनुरोध था, उसी अनुरोध के अनुसार यह निर्णय लिया गया है। योगक्षेम वर्ष का प्रारंभ उन्नीस फरवरी 2026 को, जो कि परम पूज्य श्री कालूगणी का जन्म दिवस है और वे आचार्यश्री तुलसी तथा आचार्यश्री महाप्रज्ञ — दोनों गुरुओं के भी गुरु थे, उस दिन योगक्षेम वर्ष का शुभारंभ करने का निर्णय किया है। वर्ष 2027 के मर्यादा महोत्सव में योगक्षेम वर्ष की संपन्नता की घोषणा करने का भी निर्णय किया है। लगभग बारह महीने योगक्षेम वर्ष की कालावधि रहेगी। परम पूज्य गुरुदेव ने संघ में विकास की मंगल कामना करते हुए कहा कि समण श्रेणी का विकास हो, मुमुक्षुओं की संख्या बढ़े और मुमुक्षा भाव भी बढ़े। उपासक श्रेणी का अच्छा विकास हो रहा है और ज्ञानशाला का भी अच्छा क्रम चल रहा है। प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष चल रहा है, इसमें विदेश में भी अच्छा कार्य हुआ है। जीवन विज्ञान भी शिक्षा जगत में कार्य कर रहा है। सबमें समर्पण भाव रहे — आत्मा के प्रति और संघ के प्रति। चारित्रात्माओं में सेवा भावना रहे। भिन्न-सामाचारी की अग्लान भाव से सेवा होती रहे। समाज के श्रावक-श्राविकाओं और संस्थाओं द्वारा भी धार्मिक-आध्यात्मिक गतिविधियां चलती रहें। पूज्य गुरुदेव द्वारा विकास महोत्सव से संदर्भित गीत का संगान किया गया और चातुर्मास संपन्नता के पश्चात् साधु-साध्वियों के विहार संबंधी निर्देश प्रदान किए। साध्वीप्रमुखाश्रीजी ने अपने उद्बोधन में तेरापंथ धर्म संघ को विकासशील धर्मसंघ की संज्ञा दी। विकास महोत्सव के संदर्भ में आचार्यश्री तुलसी के अवदानों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि आचार्यश्री तुलसी ने साधु-साध्वियों के कार्यों को व्यापकता दी। उन्होंने अपने चिंतन, गहरी सोच और दूरदृष्टि से युग की नब्ज पर हाथ रखा और सकारात्मक परिवर्तनों के सिलसिले आरंभ किए। उनके द्वारा किए गए परिवर्तन तेरापंथ धर्मसंघ के विकास के लिए आधार सिद्ध हुए। साध्वी वृंद द्वारा गीत की प्रस्तुति दी गई। विकास परिषद् के संयोजक मांगीलाल सेठिया एवं विकास परिषद् सदस्य पदमचंद पटावरी ने अपनी विचाराभिव्यक्ति दी। मुनि कुमारश्रमणजी ने गृहमंत्री अमित शाह की आचार्यश्री महाश्रमणजी से हुई भेंट का सार प्रस्तुत किया। साध्वीवर्याजी ने विकास महोत्सव के संदर्भ में अपने उद्बोधन में कहा कि आचार्यश्री तुलसी उभयानुकंपी व्यक्तित्व के धनी थे। वे स्व-विकास के साथ-साथ पर-विकास का भी चिंतन करते थे। वे सृजनशीलता में विश्वास रखते थे। उन्होंने अपने बहुमूल्य समय और अदम्य पुरुषार्थ का उपयोग सृजन और निर्माण में किया। धर्म संघ की विकास यात्रा में उनका बहुमूल्य समय लगा।
आचार्यश्री महाश्रमण योगक्षेम वर्ष व्यवस्था समिति-लाडनूं के पदाधिकारियों आदि के द्वारा आचार्यश्री के समक्ष योगक्षेम वर्ष के लोगो का अनावरण किया गया। आचार्यश्री ने इस संदर्भ में मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। प्रवास व्यवस्था समिति-लाडनूं के अध्यक्ष प्रमोद बैद, जैन विश्व भारती के अध्यक्ष अमरचंद लुंकड़ ने अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।