
गुरुवाणी/ केन्द्र
साधना के छोटे-छोटे उपायों से जीतें आत्मा को : आचार्यश्री महाश्रमण
जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आयारो’ आगम के माध्यम से पावन संबोध प्रदान करते हुए फरमाया कि दुनिया में युद्ध की बात चलती है। दो राष्ट्रों के बीच युद्ध हो जाता है, परिवारों में कलह हो जाती है, व्यक्ति-व्यक्ति में भी लड़ाई हो सकती है। आयारो आगम में आध्यात्मिक युद्ध की बात बताई है—कि आत्मा के साथ युद्ध करो, बाहर के युद्ध से तुम्हें क्या मतलब? आत्मा के साथ जो कार्मण शरीर है, उसके साथ युद्ध करो। इस आत्म-युद्ध में किसी बाहरी शस्त्र की आवश्यकता नहीं है।
आठ प्रकार की आत्माएं होती हैं, इनमें एक कषाय आत्मा है और योग आत्मा में अशुभ योग आत्मा, दर्शन आत्मा में मिथ्यादर्शन आत्मा है। हमें इन आत्माओं को खत्म करना है, नष्ट करना है। इन आत्माओं को नष्ट करने के लिए हमें शुभ योग आत्मा का उपयोग करना है, सम्यक्दर्शन आत्मा को पुष्ट करना है और चारित्र आत्मा का उपयोग करना है। इनसे अशुभ योग अस्तित्वहीन बन सकेगा, मिथ्यादर्शन आत्मा खत्म हो सकेगी और कषाय आत्मा नष्ट हो सकेगी। चौथे गुणस्थान अविरति सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में भी पूरी तरह से मिथ्यादर्शन आत्मा और सम्यग्-मिथ्या दृष्टि आत्मा की समाप्ति हो सकती है और युद्ध में एक बड़ी सफलता प्राप्त हो सकती है। चारित्र ग्रहण कर लें और थोड़ा आगे सप्तम गुणस्थान में ज्यादा रहना हो जाए तो अशुभ योग आत्मा भी नियंत्रण में आ सकती है। कषाय आत्मा का अस्तित्व दसवें गुणस्थान तक रहता है और ग्यारहवें गुणस्थान में भी कषाय भीतर में रहता है। बारहवें गुणस्थान में कषाय आत्मा पूर्णतया विनष्ट हो जाती है। योग आत्मा पूर्ण रूप से चौदहवें गुणस्थान में नष्ट होती है।
यह आत्म-युद्ध पूरी तरह से अहिंसात्मक है। यदि क्रोध, मान, माया, लोभ कषायों को पूर्णतया नष्ट कर दिया जाए तो न तो अशुभ योग रह पाएगा और न ही मिथ्यादर्शन। क्रोध को जीतना है तो उपशम की साधना करें, अहंकार को जीतने के लिए मार्दव की अनुप्रेक्षा का अभ्यास करें, माया-छलना को जीतने के लिए आर्जव का प्रयास करें और लोभ को जीतने के लिए संतोष की आराधना करें।
इन चारों को जिसने जीत लिया, वह आत्मा को जीत लेता है। शत-प्रतिशत यदि सफलता न भी मिले तो कुछ विजय तो हमें प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। व्यक्ति को जिसे नियंत्रित करने का चिंतन हो जाए, संकल्प हो जाए तो सफलता भी मिल सकती है। लक्ष्य निर्धारित करने के पश्चात् ही उस दिशा में पुरुषार्थ किया जा सकता है। छोटी-छोटी बातों पर भी ध्यान दें तो यह भी आत्म-युद्ध का अंग हो जाता है कि किसी पर मिथ्या आरोप नहीं लगाने का संकल्प कर लें, क्रोध में आकर किसी को गाली न देना, दिल दुखाने की भावना से किसी को कड़वी बात न कहना, नशा न करने का संकल्प करना—ये आत्म-युद्ध के छोटे उपाय हो सकते हैं। अणुव्रत में भी इन्हीं संकल्पों की बात है। भगवान महावीर ने कई जन्मों तक साधना की और अंतिम भव में बारह वर्षों से अधिक साधना करके इस युद्ध में विजय प्राप्त की। बारहवें गुणस्थान में मोहनीय कर्म का सर्वथा नाश हुआ, तेरहवें गुणस्थान में ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, अन्तराय का नाश हुआ और सिद्धावस्था के प्रथम समय में चारों अघाती कर्मों का नाश करके परम विजय को प्राप्त किया। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद् द्वारा द्वि-दिवसीय ‘तेरापंथ टास्क फोर्स’ के सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस संदर्भ में तेयुप के राष्ट्रीय अध्यक्ष रमेश डागा व महामंत्री अमित नाहटा ने अपनी अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने उपस्थित संभागियों को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि व्यक्ति अपने सामर्थ्य का क्या प्रयोग करता है, यह महत्वपूर्ण बात होती है। शक्ति का सदुपयोग भी किया जा सकता है और दुरुपयोग भी। इसलिए सेवा के उपक्रम के साथ जुड़कर व्यक्ति को अपनी शक्ति का सदुपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।