भाव विशुद्धि कर क्षमापना करने वाला जीव बन जाता है निर्भय : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कोबा, गांधीनगर। 28 अगस्त, 2025

भाव विशुद्धि कर क्षमापना करने वाला जीव बन जाता है निर्भय : आचार्यश्री महाश्रमण

आठ दिनों के महापर्व पर्युषण के शिखर दिवस भगवती संवत्सरी के बाद का दिवस क्षमापना दिवस परम पावन युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की सन्निधि में आयोजित हुआ। आचार्यश्री ने वृहद् मंगल पाठ समुच्चारित कर विशाल जनमेदिनी में नवीन ऊर्जा का संचार किया।
क्षमापना दिवस से संदर्भित कार्यक्रम में खमत खामणा के क्रम में तेरापंथी सभा अहमदाबाद के अध्यक्ष अर्जुनलाल बाफना, प्रेक्षा विश्व भारती के अध्यक्ष भैरूलाल चौपड़ा, निर्मल बोथरा, तेरापंथ महिला मंडल (अहमदाबाद) अध्यक्षा सुशीला खतंग, तेरापंथ युवक परिषद् (अहमदाबाद) के अध्यक्ष प्रदीप बागरेचा, पारमार्थिक शिक्षण संस्था की ओर से बजरंग जैन, जय तुलसी फाउंडेशन की ओर से बाबूलाल सेखानी, जैन विश्व भारती के अध्यक्ष अमरचंद लुंकड़, अमृतवाणी के अध्यक्ष ललित दुगड़, टी.पी.एफ. की ओर से जागृत संकलेचा, प्रेक्षा इंटरनेशनल व आचार्यश्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति अहमदाबाद के अध्यक्ष अरविंद संचेती ने आचार्यश्री सहित समस्त चारित्रात्माओं से खमत खामणा किया।
मुख्य मुनिश्री महावीर कुमारजी, साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुत विभाजी व साध्वीवर्या श्री सम्बुद्धयशा जी ने क्षमापना दिवस के संदर्भ में अपनी अभिव्यक्ति दी। तदुपरांत साध्वीप्रमुखाजी सहित समस्त साध्वी समाज ने सविधि वंदन कर आचार्यश्री से खमत खामणा किया।
महातपस्वी शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने इस अवसर पर पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आगम में प्रश्न किया गया कि—भगवन! क्षमापना से जीव को क्या मिलता है? उत्तर दिया गया कि क्षमापना से प्रह्लाद भाव पैदा होता है, वैर भाव विनष्ट होता है। प्रह्लाद भाव पैदा होने से सभी प्राणों, भूतों, जीवों के प्रति मैत्री का भाव उत्पन्न हो जाता है। मैत्री भाव से आत्मा सुवासित हो जाती है और भाव विशोधि होती है। भाव विशोधि करके क्षमापना करने वाला जीव निर्भय बन जाता है।
जैन शासन में जैन श्वेतांबर तेरापंथ परंपरा में पर्युषण व संवत्सरी का क्रम चलता है। हमने सात दिन और भगवती संवत्सरी के दिन कुल आठ दिनों की आराधना की। आज उसके नवें दिन खमत खामणा का दिन है और अष्टान्हिक कार्यक्रम के समापन का भी दिन है। बारह महीनों में भगवती संवत्सरी के दिन भी यदि कोई व्यक्ति वैर की गांठ न खोले तो उसके सम्यक्त्व खो देने या नष्ट होने की स्थिति बन सकती है। संवत्सरी के दिन सबसे खमत खामणा कर लेना चाहिए और मन में गांठ नहीं रखनी चाहिए।
आज का खमण खामणा दिवस कल का परिशिष्ट माना जा सकता है और आज प्रैक्टिकल खमत खामणा का दिन है। हम सभी समूह में जीते हैं, समाज में रहते हैं। अनेक लोगों से बोलने का कार्य पड़ सकता है। नेतृत्स करने के संबंध में भी चतुर्विध धर्मसंघ से व्यवहार होता है। साध्वी प्रमुखाश्री जी से खमत खामणा करते हुए पूज्य गुरुदेव ने कहा कि आपसे अनेकानेक विषयों पर चर्चा, वार्ता, निर्णय-निर्देश, चिंतन आदि में कुछ भी कठोर व्यवहार हो गया हो तो खमत खामणा। इसके बाद आचार्यश्री ने साध्वी वर्याजी, समस्त साध्वी समाज से खमत खामणा किया। फिर समणी वृंद, मुमुक्षु वृंद और श्राविका समाज से खमत खामणा किया। तदुपरांत मुख्य मुनि प्रवर से, मुनिश्री धर्म रूचिजी स्वामी से खमत खामणा किया।
सभी साधुओं से खमत खामणा किया और समस्त श्रावक समाज से भी खमत खामणा किया। तत्पश्चात् आचार्यश्री ने बहिर्विहार में स्थित साधु-साध्वियों से खमत खामणा किया। अन्य धर्म-समुदाय के संतों, राजनीतिक लोगों से भी खमत खामणा किया। उपस्थित जनता ने आचार्यश्री को करबद्ध होकर खमत खामणा किया। श्रावक समाज की ओर से अरुण बैद ने आचार्यश्री व चारित्रात्माओं, समणी वृंद से खमत खामणा किया। इस प्रकार खमत खामणा के साथ पर्युषण महापर्व सुसंपन्न हुआ।