शक्ति होने पर हो उसके सदुपयोग का प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कोबा, गांधीनगर। 29 अगस्त, 2025

शक्ति होने पर हो उसके सदुपयोग का प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, महातपस्वी, ज्योतिपुंज, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आयारो’ आगम के माध्यम से अमृत देशना प्रदान करते हुए कहा कि आदमी को अपनी शक्ति का गोपन नहीं करना चाहिए। शक्ति का होना भी एक उपलब्धि है। दुनिया में शारीरिक, मानसिक शक्ति का महत्त्व है, और गृहस्थों के पास आर्थिक बल, जनबल, वचनबल आदि भी हो सकते हैं, परन्तु इन सबसे ऊपर आध्यात्मिक शक्ति अर्थात् धर्म की शक्ति होती है। यदि शक्ति नहीं है तो अच्छी शक्ति का विकास करें। शक्ति उपलब्ध हो जाए तो उसकी तीन स्थितियां होती हैं—शक्ति का दुरुपयोग, सदुपयोग और अनुपयोग। शक्ति को गलत कार्यों में, पापकर्मों के बंध में लगाए तो वह शक्ति का दुरुपयोग होता है। शक्ति को अच्छे कार्यों में लगाए तो वह शक्ति का सदुपयोग हो जाता है। और एक व्यक्ति न शक्ति का दुरुपयोग करता है, न सदुपयोग, तो वह शक्ति का अनुपयोग हो जाता है।
आज भाद्रव शुक्ला षष्ठी है। हमारे धर्मसंघ के आठवें आचार्यश्री परम पूज्य कालूगणी का महाप्रयाण दिवस है। वे राजस्थान के छापर नामक कस्बे में जन्मे थे। महापुरुष की जन्मस्थली भी मानो गौरवान्वित हो जाती है। वे छोटी अवस्था में आचार्यश्री मघवागणी के पास दीक्षित हो गए। मुनि कालू ने संस्कृत भाषा के अध्ययन में बहुत श्रम किया। मघवागणी के एक कृपापात्र शिष्य के रूप में वे रहे। मघवागणी के महाप्रयाण के बाद आचार्य पद पर माणकगणी और डालगणी रहे। सप्तम आचार्य डालगणी ने मुनि कालू जी 'छापर' को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। डालगणी के महाप्रयाण के बाद गुप्त पत्र के आधार पर मुनि कालू जी छापर आचार्य पद पर आरूढ़ हुए।
लगभग तैंतीस वर्ष की आयु में वे तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य बने और उनका लगभग सत्ताईस वर्षों का आचार्यकाल रहा। आचार्यश्री तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञ उन्हीं के पास दीक्षित हुए। कालूगणी ने अपने आचार्यकाल में एक चातुर्मास राजस्थान से बाहर हरियाणा के भिवानी में किया था, शेष सभी चातुर्मास राजस्थान में ही हुए। उनका विहार क्षेत्र अधिकांशतः राजस्थान रहा। हमारे धर्मसंघ में संस्कृत भाषा के विकास में परम पूज्य कालूगणी का बहुत योगदान रहा। उनका अंतिम चातुर्मास वि.सं. 1993 में मेवाड़ के गंगापुर में हुआ। स्वास्थ्य में गिरावट आई और उन्होंने मुनि तुलसी को गंगापुर में अपना युवाचार्य बनाया। आज से 89 वर्ष पूर्व भाद्रव शुक्ला षष्ठी के दिन सांयकाल के समय उन्होंने महाप्रयाण किया। आज आचार्यश्री कालूगणी की पुण्यतिथि है। आचार्यश्री कालूगणी का जीवनकाल लगभग साढ़े उनसठ वर्ष का रहा। उन्होंने राजस्थान के अतिरिक्त हरियाणा और मालवा प्रदेश की यात्राएं कीं, विहार भी किया, दीक्षाएं प्रदान कीं और संस्कृत भाषा के विकास का प्रयास किया। इस प्रकार अपनी शक्ति का उन्होंने अच्छा सदुपयोग किया था। आदमी को अपनी शक्ति का गोपन नहीं करना चाहिए और शक्ति होने पर उसका सदुपयोग करने का प्रयास करना चाहिए, दुरुपयोग से बचना चाहिए। कार्यक्रम में पृथ्वीराज कांकरिया (राजस्थान हॉस्पिटल) ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। ठाणे ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति देकर संकल्पों का उपहार अर्पित किया, जिस पर आचार्यश्री ने उन्हें मंगल आशीष प्रदान किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।