आत्मा को उज्ज्वल और पवित्र करने का साधन है तपस्या

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हैदराबाद।

आत्मा को उज्ज्वल और पवित्र करने का साधन है तपस्या

तेरापंथ भवन सिकंदराबाद में आयोजित मासखमण तप अभिनंदन कार्यक्रम में डॉ. साध्वी गवेषणाश्रीजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि निर्जरा के बारह प्रकार बताए गए हैं, जिनमें से एक है अनशन अर्थात तपस्या। तपस्या आत्मा को उज्ज्वल और पवित्र करने वाला साधन है। यह कर्मों को क्षीण करती है और जीवन को आलोकित बनाती है। साध्वीश्री ने स्पष्ट किया कि तपस्या का उद्देश्य न तो इहलोक-परलोक की प्राप्ति है, न सम्मान या प्रशंसा पाना, बल्कि इसका सच्चा उद्देश्य है – कर्म निर्जरा। आज के समय में जहां एक व्यक्ति दिनभर में कई बार भोजन करता है, वहीं सजोड़े मासखमण जैसी कठिन तपस्या करना आत्म साधना का महान कार्य है। इस अवसर पर आचार्य प्रवर, साध्वीप्रमुखाश्री तथा चरित्रात्माओं के संदेशों का वाचन क्रमशः सुशील संचेती, नमिता सिंघी, राहुल गोलछा, लक्ष्मीपत डूंगरवाल, वीरेंद्र घोषल आदि ने किया। अभिनंदन पत्र का वाचन हेमंत संचेती और लक्ष्मीपतजी ने किया।
एकता बैंगानी ने ग्यारह उपवास का प्रत्याख्यान किया। महिला मंडल तथा पारिवारिक जनों ने गीतिकाएं प्रस्तुत कर तपस्विनी की अनुमोदना की। कौशल्या जैन मारडपल्ली की बहनों ने मंगलाचरण किया। साध्वी दक्षप्रभा जी ने मधुर स्वर में गीत प्रस्तुत किया। साध्वी मयंकप्रभाजी ने कहा कि जैन साधना पद्धति में आश्रव को बंध और संवर को मोक्ष का हेतु माना गया है, किंतु संवर के साथ निर्जरा भी अनिवार्य है, और निर्जरा का श्रेष्ठ साधन तप है। साध्वी मेरुप्रभाजी ने अपने संबोधन में कहा कि तपस्या साधु का धन है और यह सभी के लिए अनुकरणीय है। कार्यक्रम का संचालन साध्वी मेरुप्रभाजी ने कुशलतापूर्वक किया तथा आभार ज्ञापन सभा मंत्री हेमंत संचेती ने किया।