अंतराय कर्म को कैसे तोड़ें? कार्यशाला का आयोजन

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विजयनगर, बैंगलोर।

अंतराय कर्म को कैसे तोड़ें? कार्यशाला का आयोजन

तेरापंथ महिला मंडल विजयनगर के तत्वावधान में "अंतराय कर्म को कैसे तोड़े?' विषय पर कार्यशाला का आयोजन अर्हम भवन में साध्वी संयमलता जी के सान्निध्य में किया गया। साध्वी श्री ने अपने उद्बोधन में कहा कि अंतराय कर्म की पाँच प्रकृतियाँ होती हैं, जिनसे जीव बंधन करता है और उन्हीं को तोड़कर मुक्त भी हो सकता है। दानांतराय की व्याख्या करते हुए साध्वीश्री ने समझाया कि जिसके भीतर सुपात्र दान की भावना होती है और जो दान का सही मूल्य समझता है, वही अपने अंतराय कर्म को तोड़ पाता है। आगमों में ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं जहाँ सुपात्र दान से कर्म कटते हैं और शुभ आयुष्य कर्म का बंध होता है।
उन्होंने यह भी कहा कि यदि कोई व्यक्ति दान देकर पश्चाताप करता है, तो वह भवभ्रमणकारी कर्मों का बंधन करता है और अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए भटकता रहता है। इस तथ्य को साध्वीश्री ने मम्मण सेठ का उदाहरण देते हुए स्पष्ट किया। आगे उन्होंने बताया कि सेवा करने से भी अंतराय कर्म टूटता है। सेवा भावी व्यक्ति के वीर्यातंराय कर्म का क्षय या क्षयोपशम होता है, जिससे अनंत शक्ति, बल और सामर्थ्य प्राप्त होता है। साध्वीश्री ने प्रेरणा देते हुए कहा कि अंतराय कर्म को तोड़ने के अनेक माध्यम हैं, बस हमें पुरुषार्थ की दिशा में निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए। कार्यक्रम का शुभारंभ साध्वीश्री द्वारा नमस्कार महामंत्र और भिक्षु स्तुति के साथ हुआ। इस अवसर पर महिला मंडल अध्यक्ष महिमा पटावरी, मंत्री सरिता छाजेड़, कर्नाटक प्रभारी मधु कटारिया तथा अखिल भारतीय तेरापंथ राष्ट्रीय कार्यसमिति से शशि नाहर सहित पदाधिकारी एवं कार्यकारिणी सदस्य उपस्थित रहे। अध्यक्ष महिमा पटावरी ने साध्वीश्री के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कृतज्ञता ज्ञापित की। इस कार्यशाला में लगभग 250 से अधिक भाई-बहनों की उपस्थिति रही।