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बच्चों को स्विमिंग, डांस क्लासेस के साथ ज्ञानशाला में भी भेजें
साध्वी रचनाश्री जी के सान्निध्य में ज्ञानशाला दिवस का भव्य आयोजन हुआ। रैली के साथ ज्ञानार्थी बच्चे, प्रशिक्षिकाएं एवं अभिभावक तेरापंथ सभा भवन पहुंचे। कार्यक्रम का शुभारंभ साध्वी श्री द्वारा नमस्कार महामंत्र एवं ज्ञानार्थियों के मंगलाचरण से हुआ। साध्वी रचनाश्री जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि ज्ञानशाला का शुभारंभ आचार्य तुलसी का जागृत अवस्था में लिया हुआ सपना है। भावी पीढ़ी को सुसंस्कारी बनाने, नींव को मजबूत करने और शुद्ध सात्विक जीवन जीने की कला सिखाने के लिए ज्ञानशाला की स्थापना हुई। उन्होंने आगे कहा कि 21वीं शताब्दी का यह युग कंप्यूटर, लैपटॉप और मोबाइल जैसी तकनीकी शिक्षा से जुड़ा हुआ है। बच्चे और अभिभावक करियर को बेहतर बनाने में लगे हैं, वहीं श्रेष्ठ भारतीय संस्कृति का ज्ञान – बड़ों का सम्मान, नम्रता, सहिष्णुता, सदाचार और सद्विचार गौण होते जा रहे हैं तथा पाश्चात्य संस्कृति हावी हो रही है। ऐसे समय में सुसंस्कारों की वृद्धि के लिए ज्ञानशाला एक अत्यंत महत्वपूर्ण उपक्रम है।
साध्वी श्री ने कहा कि ज्ञानशाला में प्रशिक्षिकाएं बच्चों को रहना, कहना और सहना सिखाती हैं। उन्होंने अभिभावकों से आग्रह किया कि जैसे वे अपने बच्चों को स्विमिंग, डांस और पेंटिंग की कक्षाओं में भेजते हैं, वैसे ही उन्हें ज्ञानशाला जैसी प्रशिक्षण शाला में भी अवश्य भेजें ताकि बच्चे आदर और सम्मान करना सीख सकें। ज्ञानशाला बच्चों के ब्रेन शार्पनिंग का स्थान है, जहां सम्यक ज्ञान से कर्मों की निर्जरा होती है। यह अच्छे संस्कार, अच्छी आदत और उत्तम चरित्र निर्माण का पवित्र स्थल है। साध्वी गीतार्थ प्रभा जी ने भी अपने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर तेरापंथ सभा उपाध्यक्ष शिवलाल डागलिया और महासभा कार्य समिति सदस्य कांतिलाल धाकड़ ने अपने विचार प्रस्तुत किए। जीविशा सामोता, कीवा सामोता, नमन बाफना, अर्हम बाफना, रिद्धि राठौर और हर्ष मेहता ने अपनी प्रसतुई दी। ज्ञानशाला मुख्य प्रशिक्षिका चेतना बाफना ने स्वागत उद्बोधन दिया। कार्यक्रम का संचालन ज्ञानशाला संयोजिका सीमा डागलिया ने किया और आभार ज्ञापन सह संयोजिका रंजना कच्छारा ने प्रस्तुत किया। अंत में सभी ज्ञानार्थियों एवं प्रशिक्षिकाओं को पारितोषिक प्रदान किए गए, जिनके प्रायोजक ललित मेहता और सीता देवी पूजा मेहता रहे।