संघ का प्राण तत्व है अनुशासन

संस्थाएं

नाथद्वारा।

संघ का प्राण तत्व है अनुशासन

श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में साध्वी रचनाश्रीजी के सान्निध्य में त्रिदिवसीय कार्यक्रम का आयोजन हुआ। कार्यक्रम का शुभारंभ साध्वी गीतार्थ प्रभा जी, साध्वी प्राज्ञ प्रभा जी एवं साध्वी नमन प्रभा जी द्वारा “भिक्षु को समझो और समझाओ” गीत की भावपूर्ण प्रस्तुति से हुआ। इसके उपरांत साध्वी गीतार्थ प्रभा जी ने अपने विचार रखे। साध्वी रचनाश्री जी ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि व्यक्ति के जीवन विकास की दृष्टि से अनुशासन का होना अत्यंत आवश्यक है। अनुशासन को बोझ नहीं, उपहार मानना चाहिए। जैसे रुग्ण व्यक्ति के लिए दवा-पानी आवश्यक है, जीने के लिए सम्यक श्वास आवश्यक है, अंधकार मिटाने के लिए दीपक आवश्यक है, उसी प्रकार आत्मानुशासन के जागृत होने से पूर्व गुरु का अनुशासन आवश्यक है। उन्होंने कहा कि एक समय था जब घर का प्रत्येक सदस्य मुखिया के संरक्षण और अनुशासन में अपना विकास करता था, किंतु वर्तमान समय में बड़े-बुजुर्गों के अनुशासन को विकास में बाधक समझा जाने लगा है। आपने आगे कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ के प्रत्येक सदस्य को आचार्य भिक्षु ने अनुशासन, व्यवस्था, मर्यादा और एकता की जन्मघूंटी प्रदान की।
कुछ पाना है, कुछ बनना है तो अनुशासन की दुर्गम घाटियों से होकर गुजरना होगा। आचार्य भिक्षु ने अनुशासन को संघ का प्राण तत्व बताया। अनुशासन से व्यक्तित्व निखरता है। आचार्य भिक्षु ने अपने प्रिय शिष्य भारमल, हेमराज, खेतसी और वेणीराम पर अनुशासन का प्रयोग कर पूरे संघ को अनुशासन का प्रशिक्षण दिया। तेरापंथ की मर्यादा और व्यवस्था पर उद्बोधन देते हुए साध्वी श्री ने कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ प्राणवान है, क्योंकि यहाँ अनुशास्ता से लेकर प्रत्येक सदस्य मर्यादा और व्यवस्था का अनुपालन करता है। संघ का गौरव निरंतर बढ़ रहा है, जिसका मूल कारण है शिष्यों का समर्पण और गुरु का वात्सल्य। आचार्य भिक्षु ने आगमसम्मत साधना को ही अपने जीवन का आचार बनाया। उन्हें संख्या का मोह नहीं था और साध्वाचार में शैथिल्य उन्हें कभी स्वीकार्य नहीं था। मर्यादा वाचन करते हुए आपने अनेक उदाहरणों के माध्यम से तेरापंथ की प्राणवत्ता के महत्व को उजागर किया।
रक्षाबंधन के पावन अवसर पर साध्वीश्री ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि त्योहार एक माध्यम है आपसी भाईचारे को बढ़ाने और मिलने-जुलने का। रक्षाबंधन का पवित्र त्योहार न तो पटाखों के प्रदूषण से जुड़ा है, न ही होली की तरह उच्छृंखलता से। यह मात्र एक कच्चे धागे में कर्तव्यनिष्ठा जगाने का प्रतीक है। रक्षाबंधन के अवसर पर साध्वी श्री द्वारा “आध्यात्मिक राखी” एग्ज़ीबिशन लगाई गई।