आचार्य भिक्षु की मासिक पुण्यतिथि का आयोजन

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गंगाशहर।

आचार्य भिक्षु की मासिक पुण्यतिथि का आयोजन

गंगाशहर। उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनि कमलकुमार जी के सान्निध्य में आचार्य भिक्षु की मासिक पुण्यतिथि पर केंद्र द्वारा निर्णीत विषय आचार्य श्री भिक्षु की अनुशासन शैली पर अपने उद्गार प्रकट करते हुए कहा — स्वामीजी अनुशासनप्रिय आचार्य थे। उनका चिंतन था कि साधु हो या श्रावक, सबका जीवन अनुशासनमय होना चाहिए, अन्यथा व्यक्ति, परिवार, समाज व संगठन का स्तर नहीं बन सकता। परंतु अनुशासन किस पर, कब, कैसे करना चाहिए, इसका पूरा ध्यान रखना चाहिए। हीरे पर कितनी ही चोटें की जाएं, वह टूटता नहीं है, बल्कि उसका रूप और निखरता है। परंतु यदि काँच पर चोट करनी प्रारंभ कर दें तो वह चूर-चूर हो जाता है और किसी काम का नहीं रहता।
स्वामीजी ने भी कहीं मृदु और कहीं कठोर अनुशासन का ही प्रयोग किया था। कहीं स्वामीजी तेले का दंड भी देते तो कहीं मृदु शब्दों के द्वारा हेमराज जेसौ को जागरूक कर देते कि — हेमड़ा सोए-सोए अवगुण मेरे देखता है या अपने! हमें भी अनुशासन करते समय पात्रता का ध्यान रखना चाहिए, ताकि किसी का अहित न हो और उसके व्यक्तित्व का सांगोपांग निर्माण हो सके। तपस्या के क्षेत्र में पवन छाजेड़ (28), तारा देवी बैद (25), प्रज्ञा सेठिया (8), हीरा देवी बाफना (8) ने तपस्या का प्रत्याख्यान किया।