
गुरुवाणी/ केन्द्र
ऊँचाई से गिराने वाली बन सकती है आसक्ति : आचार्यश्री महाश्रमण
आचार्यश्री भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष के द्वितीय चरण के त्रिदिवसीय कार्यक्रम के द्वितीय दिवस के विषय – 'कब तक चलेगा तेरापंथ?' के संदर्भ में ‘आयारो’ आगम के माध्यम से अपनी पावन देशना प्रदान करते हुए तीर्थंकर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण ने फरमाया कि व्यक्ति रूपों में, इन्द्रिय विषयों में और हिंसा में आसक्त होता है तो वह धर्म से च्युत हो जाता है। आसक्ति आध्यात्मिक ऊँचाई से गिराने वाली बन सकती है और आसक्ति हो तो ऊँचाई को प्राप्त न भी किया जा सकता है। पांच इन्द्रियों के पांच विषय होते हैं। श्रोतेन्द्रिय का विषय शब्द, चक्षुरिन्द्रिय का विषय रूप, घ्राणेन्द्रिय का विषय गंध, रसनेन्द्रिय का विषय रस और स्पर्शेन्द्रिय का विषय स्पर्श होता है। इन पौद्गलिक विषयों में जो व्यक्ति आसक्त होता है, वह व्यक्ति यदि धर्म को स्वीकार किए हुए है तो उतने अंशों में धर्म से च्युत हो जाता है। जैन शासन में यदि कोई दीक्षित होता है और दीक्षित होने के बाद आसक्ति में रचा-बसा हो जाता है, फिर वह धर्म से, साधुता से च्युत भी हो सकता है।
तीन ऐतिहासिक प्रसंगों से जुड़ा भाद्रव शुक्ला द्वादशी का दिन आज भाद्रव शुक्ला द्वादशी है और आज का दिन तीन प्रसंगों से जुड़ा हुआ है। पहला प्रसंग आचार्यश्री भिक्षु से जुड़ा हुआ है। आज के दिन आचार्यश्री भिक्षु ने सिरियारी में संथारा ग्रहण किया था। आचार्यश्री भिक्षु ने एक विशेष अभिनिष्क्रमण किया था और उनसे जुड़ा यह तेरापंथ धर्मसंघ है, जिसे शुरू हुए दो सौ पैंसठ वर्ष हो चुके हैं। आचार्यश्री भिक्षु ने बड़े राज मार्ग और संकरी पगडंडी में से संकरी पगडंडी का चुनाव किया था। आचार्यश्री भिक्षु ने एक परंपरा को छोड़कर अभिनिष्क्रमण किया और तेरापंथ की स्थापना हुई।
किसी ने आचार्यश्री भिक्षु से पूछा कि आपका ऐसा संकरा मार्ग कितने वर्षों तक चलेगा? आचार्यश्री भिक्षु ने फरमाया कि सिद्धान्त और आचार में जब तक दृढ़ता रहेगी, वस्त्र-पात्र आदि की मर्यादा का अतिक्रमण नहीं होगा, साधुओं के लिए आधाकर्मी स्थानक नहीं बनेंगे, तब तक मार्ग भली भांति चलेगा। साधु के निमित्त स्थानक बनने, वस्त्र और पात्र की मर्यादा का अतिक्रमण करने, विहार कल्प का उल्लंघन कर एक स्थान पर रहने से शिथिलता आती है। जब तक मर्यादा के अनुसार चलते हैं, तब तक शिथिलता नहीं आती। स्वामीजी के कथनानुसार जब तक आचार और विचार में दृढ़ता रहेगी, मर्यादा में रहेंगे, तब तक हमारा यह मार्ग चलता रहेगा।
आज का दूसरा प्रसंग तेरापंथ धर्मसंघ के सप्तम आचार्यश्री डालगणी से जुड़ा हुआ है। आज के दिन उनका महाप्रयाण हुआ था। भाद्रव शुक्ला द्वादशी को आचार्यश्री डालगणी ने अंतिम श्वास लिया था। डालगणी हमारे धर्मसंघ के तेजस्वी आचार्य के रूप में प्रख्यात हैं। उनका आचार्य काल लगभग बारह वर्षों का रहा था। वे विलक्षण आचार्य थे। विलक्षण आचार्य इसलिए थे कि हमारी सामान्य परंपरा के अनुसार वर्तमान आचार्य, भावी आचार्य का मनोनयन करते हैं, परन्तु डालगणी धर्मसंघ द्वारा या धर्मसंघ के प्रतिनिधि मुनिश्री कालूजी स्वामी 'रेलमगरा' द्वारा घोषित, स्थापित आचार्य थे। डालगणी ने अपना उत्तराधिकारी मुनिश्री कालूजी स्वामी 'छापर' को गुप्त रूप से पत्र लिखकर बनाया था। तीसरा प्रसंग आचार्यश्री महाप्रज्ञजी और स्वयं मेरे साथ जुड़ा हुआ है। आज के दिन परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने गंगाशहर में मुझे अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने सन् 2002 में इसी प्रेक्षा विश्व भारती के तेरापंथ भवन में चातुर्मास किया था। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने आगम संपादन, प्रेक्षाध्यान जैसे अनेक कार्य किए। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के साथ आज का दिन इसलिए जुड़ा हुआ है कि आज के दिन उन्होंने एक महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी – भावी आचार्य के निर्धारण की होती है वह संपन्न की थी। इस प्रकार भाद्रव शुक्ला द्वादशी तीन प्रसंगों से जुड़ी हुई है।
प्रवचन के पश्चात् रायचंद लूणिया, छतरसिंह बोथरा ने अपने विचार व्यक्त किए। कंटालिया निवासी अहमदाबाद प्रवासी नरेन्द्र पोरवाल ने भी विचाराभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री महाश्रमण मर्यादा महोत्सव समिति छोटी खाटू के सदस्यों द्वारा मर्यादा महोत्सव के लोगो का अनावरण एवं बाद में सामूहिक गीत की प्रस्तुति की गई। मर्यादा महोत्सव समिति की ओर से मनसुखलाल सेठिया ने अपनी भावाभिव्यक्ति प्रस्तुत की।