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तपस्या है जीवन को मंगलमय बनाने वाला मंगल कलश
साध्वी अणिमाश्रीजी के सान्निध्य में अमृत सभागार में मासखमण एवं सिद्धितप अनुमोदना का भव्य कार्यक्रम आयोजित हुआ। श्रावक बाबूलाल देवता ने तेतीस, संगीता चौपड़ा ने इकतीस, मोनल छाजेड़ ने अठाईस का तप तथा मोहिनी देवी गोलेच्छा ने सिद्धितप का प्रत्याख्यान किया। श्रद्धा सिंघवी ने पंद्रह, पायल सालेचा ने ग्यारह, भावना सालेचा ने नौ, खुश चोपड़ा ने नौ तथा आरती गोलेच्छा और गीता देवी श्रीश्रीमाल ने अठाई तप का साध्वीश्री से प्रत्याख्यान किया। साध्वी अणिमाश्रीजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि गुरु कृपा और गुरु की ऊर्जा शक्ति से भाई-बहनों की तपस्या अच्छी चल रही है। तपस्या जीवन को मंगलमय बनाने वाला मंगलकलश है, जीवन को ज्योतिर्मय बनाने वाला ज्योतिकलश है। तपस्या तप-मोतियों का हार है, जीवन का भव्य श्रृंगार है। यह सत्य-शिव-सुंदर के भव्य महल में प्रविष्ट कराने वाला द्वार है। चातुर्मास विशेषकर सावन-भाद्रपद में तपस्या की बहार आ जाती है। यह तपस्या का मौसम है और इस तप-सीजन में हर व्यक्ति के भीतर तप की तरंगें उमड़ने लगती हैं। जिनका क्षयोपशम प्रबल होता है, वही तप के रथ पर आरूढ़ होकर आत्मनगर की सैर कर सकता है।
बालोतरा में तपस्या का रेला बह रहा है। मासखमण और सिद्धितप करने वालों का मानो मेला-सा लग रहा है। तपोनिष्ठ श्रावक बाबूलाल देवता की तपस्या के आँकड़े रोमांचित करने वाले हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि उन्हें तपस्या में स्वाद आ गया है और भोजन नीरस लगने लगा है। संगीता, मोनल और मोहिनीबाई ने नव इतिहास रचा है। सभी तपस्वी तप के द्वारा संघ की प्रभावना कर रहे हैं। साध्वी कर्णिकाश्रीजी, डॉ. साध्वी सुधाप्रभाजी, साध्वी समत्वयशाजी और साध्वी मैत्रीप्रभाजी ने सभी तपस्वियों की अनुमोदना में विभिन्न राग-रागिनियों में गीत का संगान किया। साध्वी प्रमुखाश्रीजी के संदेश का वाचन सभाध्यक्ष महेंद्र वेदमूथा ने किया। साथ ही सभी संस्थाओं की ओर से तप की अनुमोदना की गई। ढेलडिया (देवता), सिंघवी, ओस्तवाल और छाजेड़ परिवारों ने गीत व वक्तव्य के द्वारा अपने भावों से तपस्वियों की अनुमोदना की। सभा अध्यक्ष महेंद्र वेदमूथा, सिवांची मालाणी संस्थान अध्यक्ष शांतिलाल डागा और तेयुप अध्यक्ष संदीप रेहड़ ने तपस्वियों का अभिनंदन पत्र व साहित्य से सम्मान किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन साध्वी समत्वयशाजी ने किया।