जीवन रूपी गाड़ी में हो सम्यक् ज्ञान रूपी लाइट और संयम रूपी ब्रेक : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कोबा, गांधीनगर। 13 सितम्बर, 2025

जीवन रूपी गाड़ी में हो सम्यक् ज्ञान रूपी लाइट और संयम रूपी ब्रेक : आचार्यश्री महाश्रमण

मोक्ष मार्ग प्रदर्शक धर्म दिवाकर आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आयारो’ आगम के माध्यम से पावन देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि जहां सम्यक्त्व होता है, वहां ज्ञान होता है। जहां ज्ञान होता है, वहां सम्यक्त्व होता है। जैन दर्शन में तीन शब्द हैं - मिथ्या दृष्टि, सम्यक् दृष्टि और सम्यक् मिथ्या दृष्टि। मिथ्या दृष्टि जीव के बोध को जैन दर्शन में अज्ञान कहा गया है और सम्यक् दृष्टि जीव के पास जो जानकारी होती है, उसे ज्ञान कहा गया है। सम्यक्त्व और ज्ञान का अविनाभावी संबंध है। सम्यक्त्व है तो ज्ञान भी है और ज्ञान है तो सम्यक्त्व भी होगा ही। हमारे जीवन में सम्यक् ज्ञान का भी महत्त्व है और चारित्र का भी महत्त्व है। जहां चारित्र है, वहां निश्चित ही सम्यक् ज्ञान होगा, परन्तु जहां सम्यक् ज्ञान हो वहां चारित्र हो ही, यह नियम नहीं है। एक साधु में चारित्र है तो सम्यक् ज्ञान भी है, परन्तु कोई सामान्य चतुर्थ गुणस्थानवर्ती जीव सम्यक्त्वी है, उसमें चारित्र भी है, यह नियम नहीं बैठ सकता। ज्ञान और चारित्र के योग से जीव मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। हमारे जीवन में सम्यक् ज्ञान और संयम दोनों का विकास होना चाहिए। जीवन में ज्ञान और संयम है तो यह एक अच्छी संपदा हो जाती है।
गृहस्थ जीवन में भी सम्यक् ज्ञान और संयम दोनों विकसित होने चाहिए। युवावस्था में शरीर में शक्ति है, पैसे की शक्ति है, तो साथ में संयम रहना चाहिए। शक्ति का कहीं दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। शक्ति की अभिव्यक्ति का बढ़िया उपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। हमारे जीवन रूपी गाड़ी में सम्यक् ज्ञान रूपी लाइट और संयम रूपी ब्रेक होना चाहिए। हमारी वाणी, आहार में संयम होना चाहिए। चिंतन भी सम्यक् होना चाहिए। यदि हमारे जीवन में सम्यक् ज्ञान और संयम का विकास हो तो हमारी आत्मा आध्यात्मिक उत्थान को प्राप्त कर सकती है।
परम पूज्य गुरुदेव के पावन सान्निध्य में छठे राष्ट्रीय प्रशासनिक कॉन्फ्रेंस का आयोजन हुआ। जैन विश्व भारती के अध्यक्ष अमरचंद लुंकड़ और पंकज बोथरा ने अपने विचार रखे। जैन विश्व भारती द्वारा 'प्रज्ञा पुरस्कार सम्मान' आयोजित हुआ, जिसमें आई.पी.एस. अरुण बोथरा को पुरस्कार प्रदान किया गया। प्रशासनिक अधिकारियों को प्रेरणा प्रदान करते हुए पूज्य गुरुदेव ने कहा कि प्रशासन के क्षेत्र में शुद्धि रहे, यह आवश्यक है। प्रशासन में आना हर किसी के लिए सरल नहीं होता। प्रशासनिक कार्य में ईमानदारी और नैतिकता के प्रति जागरूकता रहनी चाहिए। कई बार ऐसा अवसर भी हो सकता है कि जब बेईमानी से धन कमाया जा सकता है, किन्तु ऐसे समय पर भी अपनी ईमानदारी न छोड़ें। प्रशासन में नैतिकता के रास्ते पर चलें। लौकिक के साथ-साथ लोकोत्तर धर्म भी व्यक्तिगत जीवन में रहे। लौकिक सेवा की अपनी उपयोगिता है, परन्तु धर्म व्यक्ति का अपना होता है। टी.पी.एफ. द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय प्रशासनिक ऑफिसर्स सम्मेलन के अंतर्गत एडिशनल डी.जी.पी. रेलवे एंड कोस्टल सिक्योरिटी से आई.पी.एस. अरुण बोथरा ने अपने विचार रखे। पुष्प जैन ने भी अपनी विचाराभिव्यक्ति दी।