आत्मा का साक्षात्कार ही जीवन का वास्तविक लक्ष्य : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कोबा, गांधीनगर। 14 सितम्बर, 2025

आत्मा का साक्षात्कार ही जीवन का वास्तविक लक्ष्य : आचार्यश्री महाश्रमण

मैनेजमेंट गुरु, कुशल प्रशासक युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आयारो’ आगम के माध्यम से पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि हमारे जीवन में एक मूल और महत्त्वपूर्ण तत्त्व है – आत्मा। आत्मा के साथ शरीर भी है। एक स्थूल शरीर है, जिसका ध्यान रखा जाता है, चिकित्सा कराई जाती है, खाना-पीना आदि क्रियाएं इसी शरीर के लिए होती हैं। इस स्थूल शरीर में भीतर अनेक तंत्र कार्य करते हैं, जिनकी गहराई तक हर कोई नहीं पहुँच सकता। चिकित्सा शास्त्र के मर्मज्ञ व्यक्ति ही शरीर के भीतर की प्रक्रियाओं का ज्ञान रखते हैं।
शरीर में बीमारी होने पर डॉक्टर यंत्रों के द्वारा एक्स-रे, सोनोग्राफी आदि प्रक्रियाओं से कारण का पता लगाकर इलाज करते हैं। यह निदान स्थूल शरीर का होता है, जिसे औदारिक शरीर कहा गया है। स्थूल शरीर से सूक्ष्मतर तैजस शरीर और उससे भी सूक्ष्म कार्मण शरीर होता है, जो वास्तविक कारण है। चिकित्सा विज्ञान स्थूल स्तर पर कारण की खोज करता है, जबकि अध्यात्म और धर्मशास्त्र कार्मण शरीर तक पहुँचते हैं। प्रत्येक जीव के पास कम से कम तीन शरीर रहते हैं। जब जीव एक शरीर को त्यागकर दूसरे में जाता है तो अन्तराल गति में भी तैजस और कार्मण शरीर साथ रहते हैं। आयारो में कहा गया है कि मुनि ज्ञान और संयम से कर्म शरीर को प्रकंपित करे। अध्यात्म की साधना में संवर और निर्जरा दो महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं। ध्यान की गहराई में भी कर्म शरीर को प्रकंपित करने की क्षमता होती है। अच्छी ध्यान साधना से संवर और निर्जरा दोनों संभव हो सकते हैं।
आचार्यश्री ने कहा कि इस वर्ष प्रेक्षा ध्यान के नामकरण का 50वां वर्ष (प्रेक्षा ध्यान कल्याण वर्ष) है। आचार्यश्री तुलसी की निश्रा और सान्निध्य में प्रेक्षा ध्यान की शुरुआत हुई थी और आचार्यश्री महाप्रज्ञ इसके अन्वेषक और संवाहक बने। प्रेक्षा ध्यान से न केवल शारीरिक बीमारियां दूर हो सकती हैं बल्कि अनेक समस्याएं हल हो सकती हैं। कायोत्सर्ग, शिथिलीकरण और चित्तशांति इसके महत्त्वपूर्ण अंग हैं। साधक जब साधना करता है तो उसके कर्म शरीर कमजोर होते जाते हैं और आत्मिक उत्थान संभव होता है। साधुप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि दूसरों का साक्षात्कार करना सरल है, किन्तु आत्मा का साक्षात्कार अत्यंत कठिन है। बाह्य जगत को देखने के लिए आँखें खोलनी होती हैं, जबकि आत्मा को देखने के लिए आँखें बंद करनी पड़ती हैं। ध्यान की साधना आत्मा साक्षात्कार की कला सिखाती है।तत्पश्चात शाहीबाग, अहमदाबाद ज्ञानशाला की सुंदर प्रस्तुति हुई। पूज्य गुरुदेव ने ज्ञानशाला के बच्चों को आशीर्वचन प्रदान किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।