सत्य वचन है विश्वास का स्थान : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कोबा, गांधीनगर। 12 सितम्बर, 2025

सत्य वचन है विश्वास का स्थान : आचार्यश्री महाश्रमण

वीतराग साधक युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आयारो’ आगम के माध्यम से अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि साधक को पाप से बचने का प्रयास रखना चाहिए। साधुओं के लिए सर्व सावद्य योग अकरणीय होता है। अशुभ योग रूपी पाप कर्म साधु के लिए परित्यक्त होता है। साधु के तीन करण, तीन योग से सर्व सावद्य योग का प्रत्याख्यान होता है। गृहस्थों को भी अपने जीवन में जितना हो सके पाप कर्मों से बचने का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थों को ऐसा झूठ नहीं बोलना चाहिए, जिससे दूसरा व्यक्ति ज्यादा तकलीफ में पड़ जाए। स्थूल रूप में मृषावाद से गृहस्थ भी बचने का प्रयास करें। पारदर्शिता, ईमानदारी, मोरालिटी जीवन में बनाए रखें। किसी व्यक्ति के बारे में यह विश्वास बन जाए कि यह झूठ नहीं बोलता है, तो यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। झूठ बोलने वाला कभी सत्य भी बोल दे तो उसका विश्वास नहीं होता। सत्य वचन विश्वास का स्थान है।
इसी प्रकार अदत्तादान भी अठारह पापों में एक पाप है। इस विषय में भी व्यक्ति पर यह विश्वास होना चाहिए कि इसके पास मेरी कोई वस्तु रखी जाएगी तो वह सुरक्षित रहेगी। यह विश्वास भी एक उपलब्धि है। छल-कपट, क्रोध आदि पापों से भी बचने का प्रयास करना चाहिए। मनुष्य जीवन में पुण्य के योग से पैसा, पद आदि मिल जाना कोई बड़ी चीज़ नहीं है, बड़ी चीज़ है धर्म की साधना करना, आत्मा के कल्याण के लिए कुछ करना। सामायिक, स्वाध्याय, त्याग, तपस्या आदि करना मनुष्य की बड़ी संपत्ति है। अतः धर्म की कमाई के लिए जागरूकता बनी रहनी चाहिए। शरीर की अनुकूलता के अनुसार तपस्या का क्रम बना रहना चाहिए। तपस्या की अनुकूलता न हो तो जप, स्वाध्याय आदि किया जा सकता है। धार्मिक, आध्यात्मिक सेवा का क्रम चलता रहे। अभी चातुर्मास का उत्तरार्ध है, तो बचे हुए समय में साधु-संतों की सन्निधि में तत्त्व ज्ञान, स्वाध्याय, सामायिक, तप आदि का क्रम यथानुकूल चलता रहना चाहिए।
परम पूज्य आचार्यश्री भिक्षु का जन्म त्रिशताब्दी वर्ष चल रहा है, उनके जीवन वृत्त, साहित्य आदि को देखें, पढ़ें। स्वाध्याय करने से ज्ञान में वृद्धि हो सकती है। मुमुक्षु, बोधार्थी अपने तत्त्व ज्ञान आदि का अच्छा विकास करने का प्रयास करें, जिससे आध्यात्मिक चेतना पुष्ट हो सके और उनका भावी साध्वी, समणी जीवन अच्छा रह सके। यह उनके प्रशिक्षण का समय है। व्यवहार शालीन, सद्भावपूर्ण और मैत्रीपूर्ण होना चाहिए। इस प्रकार आयारो में कहा गया है कि पाप का अन्वेषण मत करो, धर्म की ओर देखो, धर्म के रास्ते पर चलो। जीवन में संयम रहे। बुरा देखना नहीं, बुरा सुनना नहीं, बुरा बोलना नहीं, बुरा सोचना नहीं और किसी का बुरा नहीं करना चाहिए। सब अच्छा करना चाहिए। मुनि रत्नेश कुमार जी ने परम पूज्य गुरूदेव से 9 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। पूज्य प्रवर ने मुनि रत्नेश कुमार जी को तपस्या के क्षेत्र में आगे बढ़ने का आशीर्वाद दिया।