
गुरुवाणी/ केन्द्र
सुख और दु:ख होता है स्वकृत, भोग में नहीं बनता कोई भागीदार : आचार्यश्री महाश्रमण
जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें और वर्तमान अधिशास्ता, महातपस्वी, ज्योतिपुंज, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के माध्यम से उपस्थित जन समूह को अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि सुख प्रत्येक होता है, दुःख भी प्रत्येक होता है, यानी अपना-अपना होता है। जिसने जो कर्म किया है, उस कर्म का फल उसी को भोगना होता है। पाप कर्म किया है तो पाप के रूप में फल भोगना होगा और संवर-निर्जरा की है तो वह आत्म-स्वभाव के निकट अथवा आत्म-स्वभाव में ले जाने वाली है, कर्म का अभाव रूप हो जाता है।
व्यक्ति यह चिंतन करे कि मेरे कर्म मुझे ही भोगने हैं, दूसरे के कर्म दूसरे को भोगने हैं, दूसरे उसमें भागीदार नहीं बनेंगे। चौरासी लाख जीव योनियों में यह दुर्लभ मानव जीवन मिला है, तो इसमें प्रयत्नपूर्वक धर्म साधना करनी चाहिए। वर्तमान में भी हम देखते हैं कि परिवार में कोई बालक मानसिक रूप से अविकसित रह जाता है, बोल नहीं पाता है और न विशेष समझ पाता है। यहाँ बालक के अविकसित रहने के पीछे यह संभावना लगती है कि पिछले जन्मों में उसने ऐसे पाप कर्म किए हैं, ज्ञानावरणीय कर्म का बंध हुआ होगा। फलस्वरूप वह इतना असामान्य या अविकसित रह गया। उसी बालक का भाई बुद्धिमान हो सकता है क्योंकि उसके पूर्व जन्मों में ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम किया होगा और पुण्य भी बंधा होगा। यह कर्मों का अपना परिणाम है।
कोई व्यक्ति छोटी उम्र में बीमार हो जाता है, उसका कारण यह हो सकता है कि उसने पूर्व में असातवेदनीय कर्म का बंध किया होगा। एक व्यक्ति छोटी उम्र में उच्च, प्रतिष्ठित पद पर पहुंच जाता है, हो सकता है कि उसने पूर्व में पुण्य कर्मों का बंध किया हो। किसी व्यक्ति को विशेष प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं होती, संभव है उसने पूर्व में ऐसे पाप किए होंगे। शरीर की दृष्टि से कोई सुंदर होता है तो कोई इतना सुंदर नहीं भी होता, यह सब पूर्व कर्मों का फल है।
इस प्रकार शास्त्र में कहा गया है कि सुख अपना-अपना होता है और दुःख भी अपना-अपना होता है। अतः हमें इस मानव जीवन में जितनी संवर-निर्जरा, धर्म की साधना कर सकें वह करनी चाहिए और पाप कर्मों के बंधन से बचने का प्रयास करना चाहिए। मुख्य प्रवचन के पश्चात् आयोजित समारोह में अणुव्रत विश्व भारती द्वारा अणुव्रत गीत गायन सहित कई प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया। प्रतिवर्ष अणुविभा द्वारा होने वाली इन प्रतियोगिताओं में इस वर्ष 25 राज्यों की 3175 स्कूलों के लगभग डेढ़ लाख विद्यार्थियों ने भाग लिया। गीत गायन, निबंध लेखन, चित्रकला, भाषण आदि प्रतियोगिताओं के कई चरण इस अंतर्गत हुए। फाइनल राउंड के तहत गुरूदेव के सान्निध्य में 18 राज्यों से 350 विद्यार्थी प्रस्तुति देने पहुंचे।