
गुरुवाणी/ केन्द्र
जीवन में विवेक युक्त पुरुषार्थ का हो प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण
पुरुषार्थ के प्रबल प्रेरक, महातपस्वी, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन संबोध प्रदान करते हुए फरमाया कि मोक्ष में स्थित आत्माएं अनंत सुख संपन्न होती हैं। जो आत्माएं अनंत सुख संपन्न बनी हैं, उनकी आत्मा में जरूर ऐसे अध्यवसाय, ऐसे परिणाम आए होंगे, तभी उन्होंने उस परम अवस्था को प्राप्त किया है। प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव मरूदेवा माता का जीव वनस्पतिकाय में रहा और एक ही मनुष्य का जीवन लिया, और उसी में केवल ज्ञान को प्राप्त कर लिया। यह हो सकता है कि उनके कर्म बहुत हल्के होंगे कि एक मनुष्य जीवन लिया और मोक्ष चली गईं।
व्यक्ति को कुछ पाने के लिए पुरुषार्थ भी करना चाहिए। जो पुरुषार्थ हम करते हैं, उसका कभी न कभी, किसी रूप में कोई न कोई फल जरूर मिलता है। फल जल्दी भी मिल सकता है और देरी से भी प्राप्त हो सकता है, फल अवश्य ही प्राप्त होता है। हमें अपने जीवन में सम्यक् पुरुषार्थ करना चाहिए। कभी-कभी स्थूल रूप में हमें लगता है कि पुरुषार्थ किया और उसका फल नहीं मिला। ऐसी स्थिति में हमें यह सोचना चाहिए कि मेरे हाथ में पुरुषार्थ करना था और वह मैंने कर लिया। तत्काल फल प्राप्त कर ही लेना मेरे हाथ की बात नहीं है। प्रयत्न करने पर भी यदि सफलता नहीं मिले तो इसमें कोई दोष वाली बात नहीं है। स्थूल रूप से चाहे हमें लगे कि पुरुषार्थ किया और फल नहीं मिला, परंतु किसी रूप में फल जरूर मिलेगा। इसलिए सत्पुरुषार्थ करते रहना चाहिए।
आलस्य मनुष्य के शरीर में रहता है तो वह महान शत्रु की भूमिका भी अदा कर देता है। पुरुषार्थ गलत भी हो सकता है और सम्यक् भी हो सकता है। गलत इरादे से भी हो सकता है और सही इरादे से भी हो सकता है। गलत तरीके से भी हो सकता है और सही तरीके से भी हो सकता है। इसलिए हमें अपने जीवन में विवेक युक्त पुरुषार्थ करने का प्रयास करना चाहिए। सही पुरुषार्थ का फल हमें बहुत जल्दी भी प्राप्त हो सकता है। कार्य दृष्टि, विजन के साथ करना चाहिए। अच्छी योजना से करें तो उसका फल जल्दी भी मिल सकेगा।
लीडर का भी चिंतन ठीक हो, दृष्टि ठीक हो और दूसरों को साथ ले जाने की क्षमता हो तो वे अपने समुदाय को आगे बढ़ाने में यथासंभव सफलता प्राप्त करते हैं। सभी लोगों के पास विजन हो, दृष्टि हो—यह आवश्यक नहीं है। परंतु जिनके पास हो, वे सबको साथ लेकर चलें तो पुरुषार्थ का सही फल प्राप्त हो सकता है। विजन के साथ हिम्मत भी होनी चाहिए। संस्थाओं में, समाज में विभिन्न क्षमताओं के लोग हो सकते हैं। जब वे मिल-जुलकर कार्य करते हैं तो अवश्य प्राप्ति कर सकते हैं, निष्पत्ति आ सकती है। क्षमतानुसार कार्य का विभाजन होना चाहिए। योजक, संयोजक, नेतृत्व करने वाले में यह क्षमता होनी चाहिए कि किससे किस प्रकार का, योग्यतानुसार उपयोग किया जा सकता है, नियोजित किया जा सकता है। इसलिए लीडर निडर हो, विजन वाला हो, दूसरों को जोड़ने वाला होना चाहिए तो संगठन अच्छा रह सकता है। प्रवचन के पश्चात् कार्यक्रम में अणुविभा द्वारा सम्मान समारोह का भी आयोजन हुआ।