
गुरुवाणी/ केन्द्र
पदार्थ जगत से परे, आत्मजगत में जीने का हो प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण
जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्म संघ के एकादशमाधिशास्ता, महातपस्वी, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आयारो’ आगम के माध्यम से पावन संबोध प्रदान करते हुए फरमाया कि आत्मा और शरीर दो चीजें हैं। आत्मा आध्यात्मिकता से जुड़ा हुआ तत्व है और शरीर पौद्गलिक जगत, भौतिकता से जुड़ा हुआ होता है। व व्यक्ति जितना पदार्थों में रचा-पचा रहता है, तृष्णा, लालसा, लोभ, आसक्ति में निमग्न रहता है, आत्मा से दूर रहता है, स्वभाव से दूर रहता है। जितना वह आत्मा के आस-पास रहता है, उसकी श्रद्धा, आस्था और विचार आत्मा से जुड़े रहते हैं।
संस्कृत में कहा गया है कि जैसे-जैसे हमारी बुद्धि में अध्यात्म तत्त्व प्रवेश करता है, वैसे-वैसे हमारी विषय जगत से दूरी हो जाती है। शब्द, रूप, गंध, रस, स्पर्श में रूचि नहीं रहती है। ज्यों-ज्यों हम शब्द, रूप, रस, गंध, स्पर्श से विकर्षण करते हैं, त्यों-त्यों हमारी आत्मा की तरफ गति होती जाती है। इस प्रकार दो भाग हो जाते हैं - आध्यात्मिकता और भौतिकता। भौतिकता में जितनी आसक्ति है, वह व्यक्ति को दुखी बनाने वाली होती है। जितना व्यक्ति बाह्य चीजों में अनासक्त रहता है, वह स्वभाव में आ जाता है और उसे भीतर का सुख और शांति मिल सकती है। आत्मा निर्मल बनती है, वह सुख है। पदार्थों का सुख क्षण मात्र का होता है। हमारा चिंतन यह रहे कि पदार्थों का अपेक्षानुसार उपयोग करें, लेकिन वह मुख्य नहीं है; मुख्य चीज आत्मसाधना है। मुख्य को गौण कर दें और गौण को मुख्य कर दें तो विपर्यास हो सकता है। दुनिया में रहते हुए भी हमें आत्मा में रहना चाहिए। 'रहें भीतर, जीएं बाहर।' हमारा दृष्टिकोण आत्मपरक होना चाहिए।
आगम में कहा गया है कि एक आत्मा की ओर ध्यान रहे, अभिमुखता रहे। चलते समय, बोलते समय आदि में हमेशा ध्यान रहे कि मैं साधु हूँ, मेरी साधुता रहे, संयम रहे। संयम का ध्यान रखना आत्मा की तरफ अभिमुखता हो जाती है। देव, गुरु और धर्म के प्रति निष्ठा, श्रद्धा और सम्मान का भाव रहे। जितना हम आत्मा के आस-पास रहेंगे, कल्याण की दिशा में गति करेंगे। तपस्या, ध्यान, स्वाध्याय, प्रवचन आदि आत्मा के आस-पास रहने की क्रियाएं हैं, उपक्रम हैं। इस प्रकार एक आत्मा की तरफ मुख करके हम रहें, संयम और मोक्ष की ओर हमारा रूझान हो तो हम संवर और निर्जरा की साधना कर सकते हैं और मोक्ष की ओर गतिमान हो सकेंगे।
परम पूज्य गुरुदेव की सन्निधि में श्री श्वेताम्बर तेरापंथ मानव हितकारी संघ, विद्याभूमि राणावास से विद्यार्थी, अध्यापक, अभिभावकों और पदाधिकारियों का दल उपस्थित हुआ। संस्था के अध्यक्ष मोहन गादिया ने संस्था की संक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत की। विद्यार्थियों ने सामूहिक गीत की प्रस्तुति दी। पूज्य गुरुदेव ने फरमाया कि परम पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी ने राणावास में चातुर्मास किया था। राणावास शिक्षा भूमि है और तेरापंथ नाम से शिक्षा संस्थान है। राणावास में विद्या और धार्मिक संस्कारों का अच्छा विकास होता रहे। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।