यश-कीर्ति की भावना के बिना निष्काम भाव से हो कार्य : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कोबा, गांधीनगर। 10 सितम्बर, 2025

यश-कीर्ति की भावना के बिना निष्काम भाव से हो कार्य : आचार्यश्री महाश्रमण

प्रेक्षा विश्व भारती, कोबा में वीर भिक्षु समवसरण में संयम सुमेरु आचार्य श्री महाश्रमण जी द्वारा सात दिन पूर्व दीक्षित हुए साधु-साध्वियों की बड़ी दीक्षा प्रदान की गई। परम पूज्य गुरुदेव ने नव दीक्षित साधु-साध्वियों को आर्षवाणी के साथ पाँच महाव्रतों का व्याख्यापूर्वक स्वीकरण कराते हुए छेदोपस्थापनीय चारित्र प्रदान किया। नवदीक्षित समणियों को भी अपनी चर्या में विशेष जागरूकता रखने हेतु निर्देशित किया। बड़ी दीक्षा के कार्यक्रम की सम्पन्नता के पश्चात् ‘आयारो’ आगम के माध्यम से अमृत देशना प्रदान करते हुए परम पूज्य गुरुदेव ने फरमाया कि यश-कीर्ति के लिए कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए। कार्य निष्काम भाव से करना चाहिए। निर्जरा के दो भेद हैं - सकाम और अकाम। जो तप मोक्ष कामना से किया जाता है, वह सकाम निर्जरा होती है। तप इहलोक, परलोक, कीर्ति, वर्ण, यश आदि के लिए नहीं करना चाहिए। तप का लक्ष्य केवल निर्जरा होना चाहिए। जहाँ नाम-यश की भावना जुड़ जाती है, वहाँ मलिनता आ सकती है।
नवदीक्षितों को छेदोपस्थानीय चरित्र प्रदान करने के संदर्भ में पूज्य गुरुदेव ने कहा कि सामायिक चारित्र में साधु-साध्वी थोड़ी अन्य सामाचारी में थे, अब ये समान सामाचारी में आ गए हैं। नवदीक्षित साधु-साध्वियों और समणियों को प्रेरणा प्रदान करते हुए पूज्य गुरुदेव ने फरमाया कि साधना-संयम का जीवन बहुत बड़ी चीज है। इसके सामने बड़ी से बड़ी भौतिक वस्तु भी न के बराबर है, तुच्छ है। हमारा साधुत्व और समणित्व के प्रति आस्था, समर्पण व निष्ठा बनी रहनी चाहिए। यह संयम जीवन अमूल्य है। पाँच महाव्रत एक हीरे के समान हैं, इनकी सुरक्षा के प्रति जागरूकता बनी रहनी चाहिए। शरीर में कोई कष्ट हो जाए तो उसे समता से सहन करें, तो वह महान फल देने वाला बन जाता है। सभी दीक्षार्थियों ने गृहवास को छोड़कर साधुत्व और समणित्व को स्वीकार किया है, यह बहुत बड़ा कार्य है। ज्ञान, दर्शन और चारित्र, विनय और गुरु-इंगित की आराधना के प्रति तत्पर रहना चाहिए।
आचार्य प्रवर की पावन सन्निधि में भारत सरकार के कानून एवं न्याय राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल पहुँचे। उनके अतिरिक्त अखिल भारतीय संत समिति, निष्कलंकी नारायण तीर्थ धाम, प्रेरणा तीर्थ के जगद्गुरु सत्पंथाचार्य ज्ञानेश्वर देवाचार्य महाराज भी आचार्यवर के सान्निध्य में आए और अपनी विचाराभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री के सान्निध्य में अणुव्रत क्रिएटिविटी कॉन्टेस्ट की राष्ट्रीय प्रतियोगिता का मंचीय कार्यक्रम आयोजित हुआ, जिसमें विभिन्न विद्यालयों के विद्यार्थियों द्वारा प्रस्तुति दी गई। कार्यक्रम में अणुविभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रताप दूगड़ और राजेश सुराणा ने अपने विचार रखे।
अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने प्रेरणा देते हुए कहा कि अणुव्रत विद्यार्थियों के भविष्य को संवारने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। बच्चों में ज्ञान के साथ-साथ संस्कारों और अनुशासन का विकास होता है। जीवन में प्रामाणिकता और नैतिकता बनी रहती है। कर्त्तव्यनिष्ठा और अनुशासन दोनों आवश्यक हैं। आज मेघवाल जी आए हैं, जो न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका से जुड़े हुए हैं। जैन विश्व भारती और तेरापंथ से भी जुड़े हुए हैं। राजनीति के साथ भी अणुव्रत और अध्यात्म जुड़े रहें, यह आवश्यक है।