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सत्य के पुजारी थे आचार्य भिक्षु
सत्य की आन, बान पर कुर्बान होने वाले मसीहा आचार्य भिक्षु, 'सत्यं शिवं सुन्दरम्' के पर्याय थे। वीतराग वाणी पर सर्वात्मना समर्पण, जिनके पौर पौर से उद्भाषित हुआ। अतीत के आइने में अंकित होकर सदियों-सदियों को अध्यात्म के आलोक से आलोकित किया। मक्खन सदैव पानी पर तैरता है, कभी डूबता नहीं। वैसे ही आचार्य भिक्षु की सत्यक्रांति कभी ओझल नहीं हुई अपितु सरकते समय के साथ वह अधिक प्रभावी बनी। तेरापंथ धर्मसंघ उसी क्रांति की निष्पत्ति है।
दृढ़ प्रतिज्ञा
भिक्षु मन-वचन-कर्म से सत्यपथ पर चलने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ थे। उनका फौलादी निर्णय इतिहास पुरुष भीष्म की याद दिलाता है। अपनी प्रतिज्ञा के बारे में भीष्म ने कहा था - 'मैं त्रिलोकी का राज्य, ब्रह्मा का पद और इन दोनों से अधिक मोक्ष का भी परित्याग कर सकता हूँ, पर सत्य का त्याग नहीं कर सकता।' हिमालय की भांति अपनी प्रतिज्ञा पर अटल रहने वाले भीष्म पितामह कौरव-पांडव दोनों के लिए पूज्य बनें। इसी तरह आचार्य भिक्षु विरोधी और अनुयायी दोनों के लिए आदरास्पद बनें।
अटल आत्मबल
संघर्ष को सफलता का प्रतीक मानकर बढ़ते रहे। मंतव्य के मुताबिक उनके 'जीवन-पट पर ताना अध्यात्म का था, तो बाना संघर्ष का।' उनका संघर्ष धार्मिक जगत में व्याप्त अनाचार, कुरूढ़ियों और मिथ्या धारणाओं के बाबत था। संघर्षों में कभी हार नहीं मानी। उनके फौलादी साहस के बाबत कवि की निम्न पंक्तियाँ सटीक ठहरती हैं -
'परवाह नहीं अगर जमाना खिलाफ है, रास्ता वही चलूंगा जो नेक और साफ है।'
अटल आत्मबल के सन्मुख संघर्षों के तूफान निष्प्रभावी बनते गए। उनके साहस, धैर्य, पुरुषार्थ और पॉजिटिव थिंकिंग की बदौलत विरोधी अनुरागी बनते गए। इक्कीसवीं सदी में अध्यात्म के नवोन्मेष उकेरने वाला तेरापंथ धर्म संघ आचार्य भिक्षु के दृढ़ संकल्प और अदम्य साहस का पुष्ट प्रमाण है।
सत्य की शक्ति
असीम शक्ति के पुञ्ज थे आचार्य भिक्षु। माना कि दिव्य शक्तियों के सहारे कोई भी व्यक्ति आनंदित रह सकता है। जैसा कि इतिहास बताता है, सुदामा के साथ कृष्ण थे, शबरी के साथ राम थे, गौतम के साथ महावीर थे। इसी वजह से वे हर स्थिति में आनंदित थे। प्रश्न है, भिक्षु के साथ कौनसी शक्ति थी? इसका सही-सही उत्तर अणुव्रत अनुशास्ता युगप्रधान आचार्यश्री तुलसी की पंक्तियों में मिलता है -
'सत्य सिराणे सदा राखतो त्यागी सारी सुविधावां, जिनवाणी पर जीवन जामा झोंक्या बलिहारी जावा।
बणी साधना सिद्धि स्वयं ही, चीर-चल्यों सब बाधावा, आत्म-समर रै अमर वीर री म्हें गौरव गाथा गावां'
जाहिर है, सिर्फ और सिर्फ सत्य की असीम शक्ति के सहारे उन्होंने अपना लक्ष्य हासिल किया। देश की डिफेंस प्रणाली में मुख्य स्थान 'तेजस', 'राफेल', 'सुखोई-30' और 'सुदर्शन चक्र' का है। इनसे कई गुना शक्तिशाली और पारदर्शी हथियार आचार्य भिक्षु का एकमात्र सत्य था, जिसके सहारे उन्होंने कदम कदम पर विजय हासिल की।
साधना की सुवास
सत्य संधित्सु आचार्य भिक्षु एक पुण्यशाली महापुरुष थे। उनके नाम का प्रभाव, दर्शन की सामयिकता और साधना की सुवास आज भी प्राणवान है। काल का अन्तराल उनके अतिशय को आच्छादित या लुप्त नहीं कर पाया। 'स्वर्ण' और 'कस्तूरी' की नाई उनका वैशिष्ट्य कायम है। धातु पर वातावरण का असर होता है। इसे जंग लगता है, विद्रूप होने लगता है, पर सोना इसका अपवाद है। सोना धातु होने पर भी न उसे जंग लगता है, न उसकी चमक नष्ट होती है। सुगंधित पदार्थ पर भी समय और वातावरण का असर देखा जाता है। धीरे-धीरे सुगंध घटती है। पर इसमें भी 'कस्तूरी' अपवाद है। वर्षों गुजर जाने पर भी उसकी सुगंध न लुप्त होती है, न न्यून होती है। आचार्य भिक्षु का प्रभाव भी कालातीत से न कम हुआ और न ही शून्य हुआ। इस अप्रतिम प्रभाव का अहम सेतु है वीतराग वचनों पर मर मिटने का उनका जज्बा।
अस्तु, आचार्य भिक्षु ने वीतराग वाणी के मर्म को आत्मसात किया। जीवन में आने वाले संघर्षों से कभी विचलित नहीं हुए। भिक्षु का इस्पाती मनोबल सत्य की डगर पर डटा रहा। सत्य के पुजारी का तीनसौवां जन्मशताब्दी वर्ष 'भिक्षु चेतना वर्ष' के रूप में मनाया जा रहा है। यह भिक्षु के सूक्ष्म सिद्धांतों को समझने का सुनहरा मौका है। बाबा ने आगमिक आधार पर तेरापंथ की नींव रखी, महल की ऊँचाइयाँ प्रदान कीं। श्रद्धालुजन उन ऊँचाइयों को छूने की अर्हता हासिल कर भिक्षु के वफादार भक्त बनें। यही समय की गुहार है।