
गुरुवाणी/ केन्द्र
ऊनोदरी के अभ्यास से जीवन रह सकता है संयमित : आचार्यश्री महाश्रमण
जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, तीर्थंकर के प्रतिनिधि, महातपस्वी, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आयारो’ आगम के माध्यम से पावन देशना प्रदान करते हुए कहा कि हमारे शास्त्र साधना मार्ग के पथप्रदर्शक हैं। शास्त्र न केवल हमें त्राण देते हैं, बल्कि अनुशासन और मर्यादा में जीने की दिशा भी प्रदान करते हैं। आचार्य प्रवर ने फरमाया कि आयारो में ऊनोदरी का विशेष महत्व बताया गया है। ऊनोदरी का अर्थ है पेट में आवश्यकता से कम भोजन डालना। यह साधना, तपस्या और संयम की दृष्टि से अत्यंत उपयोगी है। उपवास की क्षमता न होने पर भी यदि मन नियंत्रित है, तो ऊनोदरी का अभ्यास सहजता से किया जा सकता है। यह द्रव्य, समय और आहार की सीमा के आधार पर कई प्रकार से अपनाई जा सकती है। आचार्यश्री ने कहा ऊनोदरी स्वास्थ्य के लिए भी हितकारी है। महीने में कुछ दिन विगय वर्जन (छः प्रकार के खाद्य पदार्थों का त्याग) किया जा सकता है। रात्रि भोजन विरमण, सूर्यास्त से सूर्योदय तक भोजन-पानी का त्याग, महान संयम साधना है। वर्षीतप करने वालों का चौविहार त्याग अत्यंत प्रशंसनीय है। आचार्य प्रवर ने प्रेरणा दी कि गृहस्थ जीवन में भी आंशिक रूप से साधु जीवन के संयम को अपनाया जा सकता है। भोजन, वस्त्र और उपकरणों की अल्पता रखना ऊनोदरी का ही स्वरूप है। साधु जीवन का मूलमंत्र अल्पोपधि है, जिसे गृहस्थ भी सीमित रूप में साध सकते हैं। पूज्य प्रवर की अमृत देशना के पश्चात् मुनि मदन कुमारजी ने तप और त्याग की महत्ता पर प्रकाश डाला। प्रोफेसर धर्मचन्द जैन ने अपनी पुस्तक ‘भारतीय जनता पार्टी से मोदी तक’ का लोकार्पण आचार्यश्री की पावन सन्निधि में किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।